दुलहिन अँगिया काहे न धोवाई हिंदी मीनिंग Dulhaniya Angiya Kahe Na Dovai Meaning

दुलहिन अँगिया काहे न धोवाई हिंदी मीनिंग Dulhaniya Angiya Kahe Na Dovai Meaning : Kabir Ke Pad Hindi Arth/Bhavarth Sahit

दुलहिन अँगिया काहे न धोवाई।
बालपने की मैली अँगिया विषय-दाग़ परिजाई।
बिन धोये पिय रीझत ना हीं, सेज सें देत गिराई।
सुमिरन ध्यान कै साबुन करि ले सत्तनाम दरियाई।
दुबिधा के भेद खोल बहुरिया मन कै मैल धोवाई।
चेत करो तीनों पन बीते, अब तो गवन नगिचाई।
पालनहार द्वार हैं ठाढ़ै अब काहे पछिताई।
कहत कबीर सुनो री बहुरिया चित अंजन दे आई॥
 
दुलहिन अँगिया काहे न धोवाई हिंदी मीनिंग Dulhaniya Angiya Kahe Na Dovai Meaning : Kabir Ke Pad Hindi Arth/Bhavarth Sahit
 
इस दोहे में संत कबीर दास जी ने सांसारिक मोह माया से मुक्ति पाने के लिए ज्ञान की आवश्यकता पर बल दिया है, कबीर साहेब ने जीवात्मा को दुल्हन कहकर संबोधित किया है. जीवात्मा रूपी दुल्हन तुमने अपनी अंगिया क्यों नहीं धुलवाई/धोई है ? तुम्हारी अंगिया तो बचपन से ही मैली है। इस अंगिया पर विषय वासना के धब्बे लगे हुए हैं। तुम्हारी अंगिया को यदि तुम नहीं धोते हो। ईश्वर के सुमिरन से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। इस वस्त्र को यदि तुम गन्दा करके रखोगे तो ये तुम्हे सेज से निचे गिरा देंगे। तुम ईश्वर के सुमिरन को ही अपना साबुन बना लो और सत्य के नाम को अपना आधार बना लो। तुम थोड़ा विचार कर लो तुम अब क्यों उदास हो ? कबीर साहेब सन्देश देते हैं की अपने मन की आँख में ज्ञान का काजल लगा लो। दोहे का मूल सार है की इश्वर की भक्ति ही मुक्ति का द्वार है.

कबीर के दोहों का अर्थ जानिये-

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