भूखा भूखा क्या करै कहा सुनावै लोग हिंदी मीनिंग Bhukha Bhukha Kya Kare Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Me

भूखा भूखा क्या करै कहा सुनावै लोग हिंदी मीनिंग Bhukha Bhukha Kya Kare Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Me

कबीर के दोहे हिंदी में/Kabir Dohe Hindi Me
 
भूखा भूखा क्या करै, कहा सुनावै लोग।
भांडा घड़ि जिनि मुख दिया, सोई पूरण जोग॥
 
भूखा भूखा क्या करै कहा सुनावै लोग हिंदी मीनिंग Bhukha Bhukha Kya Kare Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Me

 
bhookha bhookha kya karai, kaha sunaavai log.
bhaanda ghadi jini mukh diya, soee pooran jog. 
 
तुम भूखा भूखा कहकर लोगों को अपनी पीडाओं से क्यों अवगत करवा रहे हो, लोगों को क्यों सुना रहे हो ? जिस पूर्ण ब्रह्म ने उदर रूपी बर्तन दिया है वही इसे भरेगा, पूर्ण करेगा। भाव है की हरी पर अगाध विश्वाश होना चाहिए। गर्भ से लेकर अब तक किसने उसको अन्न दिया है, पोषण दिया है, उसी हरी ने जो सबका आधार है। हरी को ही आधार मान कर हरी से ही अरदास की जानी चाहिए, अन्य लोगों को सुनाने से कोई फायदा नहीं है।

ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होइ॥
Aisee Baannee Boliye, Man Ka Aapa Khoi.
Apana Tan Seetal Karai, Auran Kaun Sukh Hoi. 

मन के अहम् को समाप्त करके जीव को हरी को आधार मान कर शीतल और मृदु वाणी का उपयोग करना चाहिए। सदैव ऐसी वाणी का उपयोग करना चाहिए जिससे स्वंय को भी शीतलता मिले और दूसरों को भी सुख की प्राप्ति हो। गर्व से भरा हुआ व्यक्ति अहम् के कारण कटु वचन बोलता है जो दूसरों को दुःख देते हैं।

कबीर संसा दूरि करि जाँमण मरण भरंम।
पंचतत तत्तहि मिले सुरति समाना मंन॥
Kabeer Sansa Doori Kari Jaanman Maran Bharamm.
Panchatat Tattahi Mile Surati Samaana Mann.


जनम और मरण का भ्रम दूर कर दो, यह भ्रम इसलिए है क्योंकि मन में संशय है। शंशय के समाप्त हो जाने पर यह मन पंचतत्व में मिल जाएगा जिनसे वस्तुतः यह निर्मित है और हृदय और मन में सुरती की अवस्था हो जायेगी जिससे स्वतः ही भक्ति की प्राप्ति संभव है। सुरती से आशय है की मन बुद्धि चित्त और अहम्, सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व ही सुरती है, प्राण वायु सुरती है। भाव है की जिससे हम ईश्वर को रिसीव कर सकते हैं, आत्मा जो ईश्वर को समझ सकती है सुरती है, यह अवस्था तभी आती है जब तमाम तरह के भरम और शंका का त्याग करके जीव हरी सुमिरण में ध्यान लगाता है।

ग्रिही तौ च्यंता घणीं, बैरागी तौ भीष।
दुहुँ कात्याँ बिचि जीव है, दौ हने संतौं सीष॥
Grihee Tau Chyanta Ghaneen, Bairaagee Tau Bheesh.
Duhun Kaatyaan Bichi Jeev Hai, Dau Hamain Santaun Seesh. 
 
गृहस्थ और बैरागी दोनों को ही विभिन्न तरह की चिंताएं लगी रहती हैं जैसे गृहस्थ को गृहस्थी की चिंता लगी रहती है और बैरागी को भिक्षा की चिंता सताती है। यह ऐसा ही है जैसे कैंची की दोनों फलक के बीच जीव फसा हो, यह संतो की शिक्षा है और इस भ्रम/संसय को संतजनों की शिक्षाओं से ही दूर किया जा सकता है। भाव है की यह तभी नष्ट हो सकती है जब संत के बताए गये मार्ग पर व्यक्ति चले।

बैरागी बिरकत भला, गिरहीं चित्त उदार।
दुहै चूकाँ रीता पड़ै, ताकूँ वार न पार॥
Bairaagee Birakat Bhala, Giraheen Chitt Udaar.
Duhai Chookaan Reeta Padai, Taakoon Vaar Na Paar. 

वैरागी विरक्त भला होता है और गृहस्थी को उदार चित्त का होना चाहिए। यदि इन दोनों ने अपने इन गुणों का त्याग कर दिया है, यथा यदि वैरागी विरक्त नहीं है और गृहस्थ उदार चित्त का नहीं है तो सभी व्यर्थ हो जाता है वे रीते ही रह जाते हैं, उनके भक्ति या सांसारिकता कुछ भी पल्ले नहीं पड़ती है। ऐसे व्यक्तियों का कोई ठौर ठीकाना नहीं रहता है।

जैसी उपजै पेड़ सु, तैसी निबहै ओरि।
पैका पैका जोड़ताँ, जुड़िसा लाष करोड़ि॥
Jaisee Upajai Ped Moon, Taisee Nibahai Ori.
Paika Paika Jodataan, Judisa Laash Karodi. 

 किसी मार्ग पर सतत रूप से चलने पर उसकी प्राप्ति हो ही जाती है। जैसे एक एक पैसा जोड़ने पर लाखो हो जाते हैं वैसे ही यदि हम पेड़ के फल को सुरक्षित करे तो, यह एक अभ्यास की बात है वह अंत तक उसी रूप में बना रहता है। साधना के मार्ग पर भी धीरे धीरे आगे बढ़ने से सफलता की प्राप्ति संभव होती है। निरंतर और सतत भक्ति ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

कबीर हरि के नाँव सूँ, प्रीति रहै इकतार।
तौ मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अंत न पार॥
Kabeer Hari Ke Naanv Soon, Preeti Rahai Ikataar.
Tau Mukh Tain Motee Jhadain, Heere Ant Na Paar. 
 
साधक यदि हरी के नाम से निरंतर प्रेम करे, एक समान भक्ति करे तो समझिये की उसके मुख से मोती झड़ने लग पड़ते हैं और उसे अवश्य ही हरी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कोइ एक राखै सावधान, चेतनि पहरै जागि।
बस्तन बासन सूँ खिसै, चोर न सकई लागि॥
Kō'i Ēka Rākhai Sāvadhāna, Cētani Paharai Jāgi.
Bastana Bāsana Sūm̐ Khisai, Cōra Na Saka'ī Lāgi.


साधक को अपनी चेतना को जाग्रत रखना चाहिए।यदि माया से दूर रहा जाए, वस्त्र और बर्तन तो चोर आकर भी क्या प्राप्त कर लेगा ? भाव है की विषय वासनाओं से दूर रहकर हरी की भक्ति में रमे हुए रहने वाले व्यक्ति सदा भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ता है।

जिनि नर हरि जठराँह, उदिकै थैं षंड प्रगट कियौ।
सिरजे श्रवण कर चरन, जीव जीभ मुख तास दीयो॥
Jini Nara Hari Jaṭharām̐ha, Udikai Thaiṁ Ṣaṇḍa Pragaṭa Kiyau.
Sirajē Śravaṇa Kara Carana, Jīva Jībha Mukha Tāsa Dīyō. 

जिस हरी ने माता के गर्भ में रज और वीर्य की रचना की है, कान हाथ पैर मुख और जीभ दी है, जिसने गर्भ में पेट की जठराग्नि से रक्षा की है वही इस जीव का पालन पोषण करेगा।

उरध पाव अरध सीस, बीस पषां इम रषियौ।
अंन पान जहां जरै, तहाँ तैं अनल न चषियौ॥
Uradh Paav Aradh Sees, Bees Pashaan Im Rashiyau.
Ann Paan Jahaan Jarai, Tahaan Tain Anal Na Chashiyau. 

गर्भ में दस माह तक उलटा सर करके लटका रहा, पाँव ऊपर रहे, ऐसे भयंकर उदर में भी जिसने भूखा नहीं रहने दिया, ऐसे का कौन पोषण करता है। भाव है की हरी ही व्यक्ति का पालन पोषण करता है उसमे आस्था रखनी 
चाहिए।
 
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