राम नाम सब को कहै कहिबे बहुत बिचार हिंदी मीनिंग Ram Naam Sub Ko Kahe Hindi Meaning

राम नाम सब को कहै कहिबे बहुत बिचार हिंदी मीनिंग Ram Naam Sub Ko Kahe Hindi Meaning

राम नाम सब को कहै, कहिबे बहुत बिचार।
सोई राम सती कहै, सोई कौतिग हार॥ 

Raam Naam Sab Ko Kahai, Kahibe Bahut Bichaar.
Soee Raam Satee Kahai, Soee Kautig Haar. 
 
राम नाम सब को कहै, कहिबे बहुत बिचार। सोई राम सती कहै, सोई कौतिग हार॥
 
राम के नाम का तो सभी उच्चारण करते हैं लेकिन सभी के तरीके में भी अंतर होता है। भाव है की संतजन सच्चे हृदय से हरी के नाम का सुमिरण करते हैं। सच्चा राम भक्त सती भाव से हरी के नाम का सुमिरण करता है और स्वंय को भी भक्ति की अग्नि में भस्म कर देता है। ऐसा केवल सती ही अपने पति के समर्पित भाव को प्रदर्शित कर सकती है।

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आगि कह्याँ दाझै नहीं, जे नहीं चंपै पाइ।
जब लग भेद न जाँणिये, राम कह्या तौ काइ॥
Aagi Kahyaan Daajhai Nahin, Je Nahin Champai Pai.
Jab Lag Bhed Na Jaanniye, Raam Kahya Tau Kai. 
 
आग कह देने से कोई इससे दग्ध नहीं होता है, अग्नि से जलने के लिए जरुरी है की कोई आग पर पाँव रखे तभी वह अग्नि से जल सकता है। ऐसे ही जब तक भेद को जाना नहीं जाता है केवल राम राम कह देने से क्या प्राप्त होने वाला है ? भाव है की केवल दिखावे की भक्ति करने से कुछ भी लाभ नहीं होने वाला है जब तक रहस्य को समझ नहीं लिया जाए और सच्चे हृदय से भक्ति नहीं की जाए। भक्ति के लिए भी यथार्थ ज्ञान का प्राप्त होना जरुरी है।

कबीर सोचि बिचारिया, दूजा कोई नाहिं।
आपा पर जब चीन्हियां, तब उलटि समाना माहिं।।
Kabeer Sochi Bichaariya, Dooja Koee Naanhi.
Aapa Par Jab Cheenhiya, Tab Ulati Samaana Maanhi. 
 
भक्ति करके यह जान लिया की मेरा कुछ भी नहीं है, जो भी है वह उसी राम का ही है। जब ऐसा बोध हो जाता है तो सभी प्रवृति अंतर्मुखी होकर उसी राम में रम जाती है। भाव है की इस संसार में राम ही सर्वोच्च है।
 
कबीर पाणी केरा पूतला, राख्या पवन सँवारि।
नाँनाँ बाँणी बोलिया, जोति धरी करतारि॥
Kabeer Paanee Kera Pootala, Raakhya Pavan Sanvaari.
Naannaan Baannee Boliya, Joti Dharee Karataari. 
 
यह तन तो पानी का एक बुलबुला है जिसमें प्राण वायु के कारण आकार दे रखा है, इस बुदबुदे में प्राण वायु का आकार है। इस बुलबुले में ईश्वर ने ज्योति रखी है, प्राण फूंकता है जिसके कारण वह विविध प्रकार की वाणियों को बोलता है।

नौ मण सूत अलूझिया, कबीर घर घर बारि।
तिनि सुलझाया बापुड़े, जिनि जाणीं भगति मुरारि॥
Nau Man Soot Aloojhiya, Kabeer Ghar Ghar Baari.
Tini Sulajhaaya Baapude, Jini Jaaneen Bhagati Muraari. 
 
सच्चा भक्ति ही मोह माया के जाल को समझता है और यह जीवन माया के नो मण सूत के धागे के उलझने की तरह से है, भाव है की जीवन में माया की काफी उलझने हैं। माया रूपी उलझे सूत को ईश्वर का सच्चा भक्त ही सुलझा सकता है नहीं तो व्यक्ति इसी में ही उलझ कर रह जाता है। भाव है की यह जीवन ऐसे है जैसे सूत उलझा हुआ हो, यह माया का ही भ्रम है जिसमे पड़कर व्यक्ति और अधिक उलझता जाता है लेकिन ईश्वर का भक्त इसे समझ कर इससे मुक्त हो सकता है।

आधी साषी सिरि कटैं, जोर बिचारी जाइ।
मनि परतीति न ऊपजे, तौ राति दिवस मिलि गाइ॥
Ādhī Sāṣī Siri Kaṭaiṁ, Jōra Bicārī Jā'i.
Mani Paratīti Na Ūpajē, Tau Rāti Divasa Mili Gā'i. 
 
यदि मन में / हृदय में भक्ति भाव नहीं है, भक्ति के लिए वह पूर्ण रूप से समर्पित नहीं है तो भक्ति का कोई लाभ नहीं होने वाला है। जैसे अर्धसत्य किसी काम का नहीं होता है ऐसे ही यदि साखी में हृदय से समर्पण नहीं है, हृदय से साखी गाने के लिए एकाग्रचित्त नहीं है तो उस भक्ति का कोई लाभ नहीं होने वाला है और व्यक्ति ऐसी भक्ति से कुछ प्राप्त नहीं कर सकता है, यह आधे अधूरे ज्ञान की भाँती ही है जो लाभ की जगह नुकसान ही पहुंचाती है। हृदय से मन से हरी के प्रति समर्पित होने की आवश्यकता है।

सोई अषिर सोइ बैयन, जन जूं जूं बाचवंत।
कोई एक मैले लवणि, अमीं रसाइण हुत॥
Soee Ashir Soi Baiyan, Jan Joo Joo Baachavant.
Koee Ek Melai Lavani, Ameen Rasain Hunt. 
 
शब्द और अक्षर तो वही हैं जिनका उपयोग हम नित्य रूप से करते हैं लेकिन कवी जन इन्ही शब्दों में लावण्य रस को भर देता है और जो अमृत रस की भाँती प्रतीत होता है। वस्तुतः काव्य से प्रथक यदि भक्ति के सन्दर्भ में देखें तो साहेब की वाणी है की पूर्ण रूप से समर्पित संतजन / साधुजन साखी को भी अपनी वाणी से दिव्य बना देता है।

हरि मोत्याँ की माल है, पोई काचैं तागि।
जतन करि झंटा घँणा, टूटेगी कहूँ लागि॥
Hari Motyaan Kee Maal Hai, Poee Kaachai Taagi.
Jatan Kari Jhanta Ghanna, Tootegee Kahoon Laagi. 
 
सहज भक्ति को रेखांकित करते हुए साहेब की वाणी है की भक्ति/हरी तो उन मोतियों की भाँती हैं जो कच्चे सूत के धागे में पिरोये हुए हैं। यदि अधिक माथापच्ची की जाए, जतन किए जाए तो यह उलझ सकती है, इसमें कई झंझट हैं। ज्यादा करने पर यह टूट भी जाती है। भाव है की भक्ति बहुत ही सहज है जिसे ज्यादा पांडित्य और तर्क की आवश्यकता नहीं होती है यह तो हृदय के समर्पण पर निर्धारित होती है। सच्चे मन से सहज भक्ति ही मुक्ति का आधार है।

मन नहीं छाड़ै बिषै, बिषै न छाड़ै मन कौं।
इनकौं इहै सुभाव, पूरि लागी जुग जन कौं॥
Man Nahin Chhaadai Bishai, Bishai Na Chhaadai Man Kaun.
Inakaun Ihai Subhaav, Poori Laagee Jug Jan Kaun. 
 
मन में विषय विकार भरे पड़े हैं, मन विषय विकारों को नहीं छोड़ रहा है और ऐसे ही विषय विकार भी मन को नहीं छोड़ रहे हैं। अब इनका स्वभाव /प्रवृति ऐसे हो गई है जैसे ये पूर्ण रूप से जीव के चिपक गई हैं। भाव है की विषय विकार व्यक्ति को जकड़ते ही जाते हैं और इनमे व्यक्ति अधिकता से लिप्त होता जाता है।

खंडित मूल बिनास कहौ किम बिगतह कीजै।
ज्यूँ जल में प्रतिब्यंब त्यूँ सकल रामहिं जांणीजै॥
Khaṇḍita Mūla Binas Kahau Kima Bigataha Kije,
Jyu Jal Me Pratibyamba Tyūm̐ Sakala Rāmahiṁ Janije. 
 
जैसे जल में प्रतिबिम्ब दिखाई देता है ऐसे ही सभी जीवों में राम नाम का तत्व है इसे कोई नास्तिक खंडित किस तरह से कर सकता है।

सो मन सो तन सो बिषे, सो त्रिभवन पति कहूँ कस।
कहै कबीर ब्यंदहु नरा, ज्यूँ जल पूर्‌या सक रस॥
So Man So Tan So Bishe, So Tribhavan Pati Kahoon Kas.
Kahai Kabeer Byandahu Nara, Jyoon Jal Poor‌ya Sak Ras. 
 
जिनको भी हम ईश्वर का अवतार मानते हैं, उनका मन शरीर सभी समान ही तो हैं तो उनको त्रिभुवन कैसे कहा जा सकता है। जैसे समस्त रसो का आधार जल है ऐसे ही निराकार ईश्वर ही सभी में व्याप्त है उन्ही को आधार मानों।

हरि जी यहै बिचारिया, साषी कहौ कबीर।
भौसागर मैं जीव है, जे कोई पकड़ैं तीर॥
Hari Jee Yahai Bichaariya, Saashee Kahau Kabeer.
Bhausaagar Main Jeev Hai, Je Koee Pakadain Teer. 
 
साखी की महिमा के विषय में साहेब का कथन है की ईश्वर ने साहेब को इस और अग्रसर किया है की वे साखी कहें, साखी का वर्णन करें। इस संसार के भवसागर में जीव पड़ा है और वह साखी के माध्यम से ही इस भव सागर से पार लग सकता है।

कली काल ततकाल है, बुरा करौ जिनि कोइ।
अनबावै लोहा दाहिणै बोबै सु लुणता होइ॥
Kalee Kaal Tatakaal Hai, Bura Karau Jini Koi.
Anabaavai Loha Daahinai Bobai Su Lunata Hoi. 
 
कलियुग में कर्मों का फल तत्काल ही प्राप्त हो जाता है। जैसे किसान एक हाथ से बोता है और दुसरे हाथ से कसीये (लोहा) से काटता है ऐसे ही तुम जो कर्म करोगे उनका फल तुम्हे प्राप्त होगा इसलिए अच्छे कर्म करो। जैसे कर्म करोगे वैसे ही फल तुम्हें प्राप्त होंगे। भाव है की हमें सद्कर्म करने चाहिए क्योंकि कर्मों का फल तो हमें ही भोगना होगा।

कबीर संसा जीव मैं, कोई न कहै समझाइ।
बिधि बिधि बाणों बोलता सो कत गया बिलाइ॥
Kabeer Sansa Jeev Main, Koee Na Kahai Samajhai.
Bidhi Bidhi Baanon Bolata So Kat Gaya Bilai. 
 
जीव को भ्रम है की उसे कोई समझा नहीं सकता है, वह प्राणी जो मृत्यु से पूर्व विभिन्न तरह से वाणी बोलता है वह अब कहाँ समाप्त हो गया है। भाव है की जीव की स्थिति क्षणिक है, उसे एक रोज समाप्त हो जाना है, यही अंतिम सत्य है।
 
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