कर सेती माला जपै हिरदै बहै डंडूल हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

कर सेती माला जपै हिरदै बहै डंडूल हिंदी मीनिंग Kar Seti Mala Jape Hirde Bahe Dandool Meaning

कर सेती माला जपै, हिरदै बहै डंडूल।
पग तौ पाला मैं गिल्या, भाजण लागी सूल॥
 
Kar Setee Maala Japai, Hiradai Bahai Dandool.
Pag Tau Paala Main Gilya, Bhaajan Laagee Sool.
 
कर सेती माला जपै हिरदै बहै डंडूल हिंदी मीनिंग Kar Seti Mala Jape Hirde Bahe Dandool Meaning

भक्ति मार्ग में पाखंड, दिखावा और आडम्बर पर चोट करते हुए साहेब की वाणी है की तुम्हारे हाथों में तो माला है, तुम हाथों से तो माला को फिरा रहे हो लेकिन तुम्हारे मन में माया का जाल फैला हुआ है। तुम्हारी स्थिति ऐसे ही है जैसे पांव तो माया के पाले में गीले हो रहे हों / गल रहे हो और तुम्हारे भागने पर पांवों में काँटा लग जाए।

भाव है की बाह्याचार और दिखावे से भक्ति मार्ग पर आगे नहीं बाधा जा सकता है, यह तो केवल हमारा भ्रम है की हम भक्ति कर रहे हैं लेकिन यह तो भक्ति नहीं है। भक्ति तभी संभव है जब हम सच्चे हृदय से हरी के नाम का सुमिरण करे, अन्यथा ढोंग रचने से कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है।

कर पकरै अँगुरी गिनै, मन धावै चहुँ वीर।
जाहि फिराँयाँ हरि मिलै, सो भया काठ की ठौर॥

Kar Pakarai Anguree Ginai, Man Dhaavai Chahun Veer.
Jaahi Phiraanyaan Hari Milai, So Bhaya Kaath Kee Thaur.
 
पाखंडी और ढोंगी लोग अपने हाथों में माला को पकड़ कर अँगुलियों से मनकों को फिराते हैं और सोचते हैं की वे भक्ति कर रहे हैं लेकिन उनका मन तो चारों तरफ विचलित होकर घूमता रहता है। जबकि सच्चाई यह है की मन को ईश्वर की भक्ति में संसार की तरफ से भक्ति में मोड़ने/घूमानें/फिराने से भक्ति प्राप्त होती है लेकिन मन तो काठ की तरह से स्थाई हो गया है। भाव है की असल भक्ति माला को फिराने में नहीं है बल्कि अपने मन को भक्ति में लगाने पर हो सकती है। मन में तो विषय विकार भरे पड़े हैं, और हाथों से माला को फिराने से कुछ भी लाभ मिलने वाला नहीं है।
 
माला पहरैं मनमुषी, ताथैं कछु न होइ।
मन माला कौं फेरताँ, जुग उजियारा सोइ॥
Maala Paharain Manamushee, Taathain Kachhu Na Hoi.
Man Maala Kaun Pherataan, Jug Ujiyaara Soi.
 
यक्ति मनसूखी (एक तरह की माला ) को पहन कर फिराता रहता है लेकिन इससे कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है, इससे व्यक्ति के हाथ कुछ भी लगने वाला नहीं है। मन की माला को घुमाने से ही उजाला होगा अन्यथा नहीं। भाव है की समस्त पाखंड को छोडकर हरी के सुमिरण से ही मुक्ति संभव है।

माला पहरे मनमुषी, बहुतैं फिरै अचेत।
गाँगी रोले बहि गया, हरि सूँ नाँहीं हेत॥
Maala Pahare Manamushee, Bahutain Phirai Achet.
Gaangee Role Bahi Gaya, Hari Soon Naanheen Het.
 
मनसूखी माला को पहन कर/धारण करने पर भी जो लोग हरी से हेत नहीं करते हैं वे अचेत अवस्था में ही फिरते रहते हैं और गंगा जल के रेले में बह जाते हैं । भाव है की जो लोग अपने मन से हरी का सुमिरण नहीं करते हैं वे गंगा जल में नहाने के उपरान्त भी इसका लाभ नहीं ले पाते हैं क्योंकि वे सच्चे मन से भक्ति नहीं करते हैं, मात्र माला को धारण करने से कुछ भी लाभं नहीं होने वाला है।

कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि।
मन न फिरावै आपणों, कहा फिरावै मोहि॥
Kabeer Maala Kaath Kee, Kahi Samajhaavai Tohi.
Man Na Phiraavai Aapanon, Kaha Phiraavai Mohi.
 
माला को फिराने वाले साधक को समझाते हुए माला कहती है की तुम मुझे क्यों फिरा रहे हो ? मुझे फिराने से क्या लाभ होने वाला है ? तुम अपने मन को फिरावो, मन से हरी का सुमिरण करो तभी मुक्ति संभव है। भाव है की आडम्बर रचने से हरी की प्राप्ति संभव नहीं है, तमाम तरह के आडम्बरों को छोड़ कर ईश्वर की भक्ति ही मायने रखती है।

कबीर माला मन की, और संसारी भेष।
माला पहर्‌या हरि मिलै, तौ अरहट कै गलि देष॥
Kabeer Maala Man Kee, Aur Sansaaree Bhesh.
Maala Pahar‌ya Hari Milai, Tau Arahat Kai Gali Desh.
 
वास्तविक माला तो मन की होती है और बाड़ी सभी तो दिखावा है यदी काठ के घुमने मात्र से ही हरी की प्राप्ति होती हो तो रहट में में लकड़ी की बाल्टी हमेशा घूमती रहती है उसे तो ईश्वर की प्राप्ति हो जी जानी चाहिए। भाव है की दिखावे और आडम्बर से ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है वह तो सच्चे हृदय से भक्ति करने से ही मिलने वाली है।

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं, रुल्य मूवा इहि भारि।
बाहरि ढोल्या हींगलू भीतरि भरी भँगारि॥
Mālā Pahar‌yām̐ Kucha Nahīṁ, Rulya Mūvā Ihi Bhāri.
Bāhari Ḍhōlyā Hīṅgalū Bhītari Bharī Bham̐gāri.
 
माला पहनने से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है, व्यर्थ ही इसका भार शरीर को सहन करना पड़ता है, बाहर का आवरण तो हिग्लू जैसा है जो भगवा है लेकिन हृदय में तो भंगार भरा पड़ा है। भाव है की गेरुआ वस्त्र धारण करने से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है जब तक हृदय पवित्र ना हो, अन्यथा तो माला पहन कर उसका भोझा ढोने से क्या लाभ। हृदय साफ़ करो, हृदय में मानवता और दया को स्थान दो, आचरण सुधारों तो ईश्वर पास ही जान पड़ता है। 

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं, काती मन कै साथि।
जब लग हरि प्रकटै नहीं, तब लग पड़ता हाथि॥
Maala Pahar‌yaan Kuchh Nahin, Kaatee Man Kai Saathi.
Jab Lag Hari Prakatai Nahin, Tab Lag Padata Haathi.
 
माला के पहनने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है जब तक मन नाना प्रकार के विषय विकारों में फँसा हुआ रहता है, उलझा हुआ रहता है। बार बार माला पर हाथ तभी तक जाता है जब तक हरी प्रकट नहीं होता है। भाव है की इस हृदय में हरी का वास है उसे हृदय की पवित्रता से ही समझा जा सकता है। आडम्बर से कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है।

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं, गाँठि हिरदा की खोइ।
हरि चरनूँ चित्त राखिये, तौ अमरापुर होइ॥
Maala Pahar‌yaan Kuchh Nahin, Gaanthi Hirada Kee Khoi.
Hari Charanoon Chitt Raakhiye, Tau Amaraapur Hoi.
 
मात्र माला पहनने से कोई लाभ नहीं होने वाला है, जब तक की हृदय में पड़ी हुई गांठों को नहीं खोला जाए। यदि हरी के चरणों में चित्त को लगाया रखा जाए तो एक रोज अवश्य ही ईश्वर की प्राप्ति हो ही जाती है। भाव है की हृदय में / मन में तो विषय विकार भरे पड़े हैं, माया के भ्रम जाल में फंसे हुए हैं और माला धारण कर यह विचार करना की अब तो अमरापुर में जाने को मिलेगा, भ्रम ही है। विषय विकारों की गांठों को खोलो, चित्त को निर्मल कर लो, माया का पीछा छोड़ो और मानवता की राह पर आगे बढ़ो अवश्य ही ईश्वर की प्राप्ति होगी।

माला पहर्‌या कुछ नहीं, भगति न आई हाथि।
माथौ मूँछ मुँड़ाइ करि, चल्या जगत कै साथि॥
Maala Pahar‌ya Kuchh Nahin, Bhagati Na Aaee Haathi.
Maathau Moonchh Mundai Kari, Chalya Jagat Kai Saathi.
 
भक्ति करने के लिए माला पहनने से क्या लाभ, भक्ति तो हाथ आने से रही। माथा और दाढ़ी मुछों को मुंडा लेने से क्या लाभ होने वाला है ? कुछ नहीं, यह तो जगत की देखा देखी चलने जैसा है की फलां व्यक्ति ने दाढ़ी मूंछों को मुंडा लिया है तो हम भी ऐसा ही कर लें लेकिन यह कोई तर्क संगत नहीं है। क्या ईश्वर को मुर्ख बनाया जा सकता है की हम मन में तो कपट रखें और ऊपर से माला भी फिराएं ? नहीं, वह सबका मालिक है, वह सब कुछ जानता है इसलिए सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने से ही कुछ प्राप्त होगा, अन्यथा लोडे मोड होकर फिरते रहो ! यह तुम्हारा भ्रम है, इस भरम को तोड़ो और जागो 
 
सच्चे मन से ईश्वर का सुमिरण करो।
साँईं सेती साँच चलि, औराँ सूँ सुध भाइ।
भावै लम्बे केस करि, भावै घुरड़ि मुड़ाइ॥
Saaneen Setee Saanch Chali, Auraan Soon Sudh Bhai.
Bhaavai Lambe Kes Kari, Bhaavai Ghuradi Mudai.


जीव तुम्म ईश्वर से सत्य आधारित व्यवहार करो तथा दूसरों से भी सरल आचरण करो, व्यवहार करो इसके उपरान्त चाहे तुम केश को बढ़ा लो या फिर बालों को कटवा लो। भाव है की हमारा आचरण शुद्ध होना चाहिए, आचरण में यदि कोई खोट है, हृदय में यदि खोट है तो कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। हृदय में स्वच्छता और ईश्वर का सुमिरण ही मुक्ति का पथ हैं।

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