केसौं कहां बिगाड़िया जे मूड़े सौ बार हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

केसौं कहां बिगाड़िया जे मूड़े सौ बार हिंदी मीनिंग Keso Kaha Bigadiya Je Munde So Bar Hindi Meaning

केसौं कहा बिगाड़िया, जे मूड़े सौ बार।
मन कौं न काहे मूड़िए, जामै बिषै विकार॥

Kesaun Kaha Bigaadiya, Je Moode Sau Baar.
Man Kaun Na Kaahe Moodie, Jaamai Bishai Vikaar.
 
केसौं कहां बिगाड़िया जे मूड़े सौ बार हिंदी मीनिंग Keso Kaha Bigadiya Je Munde So Bar Hindi Meaning
 
साहेब की वाणी है की केशों (बालों) को बार बार मुंडने से कोई लाभ नहीं है, मन को मुंडने से ही लाभ होने वाला है, सांकेतिक भक्ति से कोई लाभ नहीं होने वाला है। कई लोग केश मुन्डवाते हैं, कई बढाते हैं लेकिन यह सब भ्रम है इससे कोई मुक्ति प्राप्त नहीं होने वाली है। भ्रम को छोडकर सच्चे हृदय से हरी का सुमिरण करने से ही भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है। भाव है की आडम्बर और पाखंड छोड़कर हरी का सुमिरण करो।

मन मेवासी मूँड़ि ले, केसौं मूड़े काँइ।
जे कुछ किया सु मन किया, केसौं कीया नाँहि॥
Man Mevaasee Moondi Le, Kesaun Moode Kaani.
Je Kuchh Kiya Su Man Kiya, Kesaun Keeya Naanhi.
 
मन रूपी डाकू को मुंडो, मन डाकू है क्योंकि यह अपने मन की करता है, माया के भरम जाल में फंसा रहता है इसलिए केशों को क्यों मूंडते हो, मन को स्वच्छ करो। जो भी कुछ अनैतिक किया है वह तो मन ने किया है इसमें बालों का क्या दोष है। पाखंड और आडम्बर छोड़ कर असल भक्ति को अपना लो। समस्त विषय विकार मन में ही हैं, इसे स्वच्छ करना आश्यक है।
कहे कबिरवा पलकों
पल पल ना पावे कोय
समर्थ नाम कबीर को
मन नई (नी) रंगाया
ओ जोगी
रंगाया कापड़ा
रंगाया कपडा
हो
रंगाया कपड़ा
जोगी
मन नहीं रंगाया
रंगाया कपड़ा

जाय जंगल जोगी
धूणी रमाई
राख लगाई
ने होया गधेदा
जोगी
मन नहीं रंगाया
रंगाया कपड़ा

जाई जंगल जोगी
जटा बधाई
दाढ़ी रखाई ने
होया बकरा
जोगी
मन नहीं रंगाया
रंगाया कपड़ा

जाई जंगल जोगी
गुफा बनायी रे
गुफा बनायी ने
होया उन्दरा
जोगी
मन नहीं रंगाया
रंगाया कपड़ा

दूध पिएगा जोगी
बालक बचबा रह्य
कामी जडाई
होया हिंजड़ा
जोगी
मन नहीं रंगाया
रंगाया कपड़ा

कहे कबीर सुनो भाई साधू
जम के द्वार रे
मचाया झगडा
जोगी
मन नहीं रंगाया
रंगाया कपड़ा

--मूल पाठ ---
मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।
आसन मारि मंदिर में बैठे, नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।
कनवां फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा।
जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले, काम जराय जोगी होइ गैलै हिजरा।
मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ा रंगौले, गीता बाँचि के होइ गैले लबरा।
कहहि कबीर सुनो भाई साधो, जम दरबजवाँ बाँधल जैवे पकरा।
 
मूँड़ मुँड़ावत दिन गए, अजहूँ न मिलिया राम।
राँम नाम कहु क्या करैं, जे मन के औरे काँम॥
moond mundaavat din gae, ajahoon na miliya raam
raanm naam kahu kya karain, je man ke aure kaanm.
 
बालों को कटवाने से क्या लाभ होने वाला है, सर मुंडवाने से क्या लाभ होने वाला है। मूंड को मुन्डवाते तो पुरी आयु बीत चुकी है लेकिन अभी तक तो राम की प्राप्ति नहीं हुई है क्योंकि मुख से राम बोलने से क्या, मन तो विषय विकार में फंसा हुआ है। भाव है की आडम्बर करने यथा बाल कटाने या बाल बढाने, माला धारण करने या माला को फिराने से कोई लाभ नहीं होने वाला है जब तक की सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति ना की जाए। अपने मन को स्वच्छ करो, मन से विषय विकार दूर करके सच्चे हृदय से हरी के सुमिरण से ही मुक्ति संभव है।


स्वाँग पहरि सो रहा भया, खाया पीया षूँदि।
जिहि सेरी साधू नीकले, सो तौ मेल्ही मूँदि॥
Svaang Pahari Soraha Bhaya, Khaaya Peeya Shoondi.
Jihi Seree Saadhoo Neekale, So Tau Melhee Moondi.
 
साधक पर व्यंग्य है की तू तो रंग बिरंगे कपडे पहन कर, खा पी कर मौज उडाता रहा, कूद फांद करता रहा लेकिन जिस मार्ग से साधू निकलते हैं वह मार्ग तो तुमने स्वंय ही बंद कर लिया है। भाव है की साधू के गुजरने वाली गली तो तुमने बंद कर ली है। अपने कर्मों पर ध्यान दो और कर्मों को सुधारों तो अवश्य ही भक्ति प्राप्त होगी। माया के भ्रम जाल में पड़कर अपने जीवन को समाप्त करने से कोई लाभ नहीं है और नाहिं इससे भक्ति ही प्राप्त होगी।

Besanon Bhaya Tau Kya Bhaya, Boojha Nahin Babek.
Chhaapa Tilak Banai Kari, Dagadhya Lok Anek.
बेसनों भया तौ क्या भया, बूझा नहीं बबेक।
छापा तिलक बनाइ करि, दगध्या लोक अनेक॥
 
तुम वैष्णव धर्म के बन चुके हो तो क्या हुआ, तुमने विवेक को तो प्राप्त नहीं किया है। तिलक लगाने से भी क्या लाभ होगा ? कुछ नहीं क्योकि अभी भी तुम इसकी अग्नि में दग्ध हो रहे हो। भाव है की आडम्बर और पाखण्ड को छोडकर व्यक्ति को हृदय की पवित्रता और आचरण की शुद्धता पर बल देना चाहिए, तभी भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है।

तन कौं जोगी सब करैं, मन कों बिरला कोइ।
सब सिधि सहजै पाइए, जे मन जोगी होइ॥
Tan Kaun Jogee Sab Karain, Man Kon Birala Koi.
Sab Sidhi Sahajai Paie, Je Man Jogee Hoi.
 
तन को तो सभी जोगी कर लेते हैं लेकिन मन में फकीरी नहीं लाते हैं, सभी सिद्धियाँ स्वतः ही प्राप्त हो जाती हैं जब व्यक्ति मन से जोगी बनता है। भाव है की हम तन से जोगी हो जाते हैं यथा भगवा धारण कर लेते हैं, कंठी माला धारण कर लेते हैं, माला फिराने लग जाते हैं, छाप तिलक लगा लेते हैं लेकिन ये तो बाह्याचार है, दिखावा है आडम्बर है जिसका भक्ति से कुछ भी लेना देना नहीं है। यदि भक्ति करनी है तो कुछ भी मत करो बस मन को पवित्र कर लो, हृदय में हरी का वास कर लो, आचरण सुधार लो और माया को त्याग दो तो स्वतः ही हरी मिलन संभव हो जाएगा, जिसके लिए कुछ विशेष जतन करने की आवश्यकता नहीं है।

कबीर यहु तौ एक है, पड़दा दीया भेष।
भरम करम सब दूरि करि, सबहीं माँहि अलेष॥
Kabeer Yahu Tau Ek Hai, Padada Deeya Bhesh.
Bharam Karam Sab Doori Kari, Sabaheen Maanhi Alesh.
 
जीवात्मा और पूर्ण ब्रह्म एक ही है, दोनों में कोई भेद नहीं है यह भेद माया के कारण जान पड़ता है, लेकिन कोई भेद नहीं है। भरम और करम को यदि दूर कर लिया जाए तो यह भेद समाप्त हो जाता है और अलख ब्रह्म के दर्शन होने लगते हैं।

भरम न भागा जीव का, अनंतहि धरिया भेष।
सतगुर परचे बाहिरा, अंतरि रह्या अलेष॥
Bharam Na Bhaaga Jeev Ka, Anantahi Dhariya Bhesh.
Satagur Parache Baahira, Antari Rahya Alesh.
 
जीव ने असंख्य योनियों में जनम लिया है, देह धरी है लेकिन इसका भरम नहीं भागा है, यह तभी संभव है जब सतगुरु अलख ब्रह्म के बारे में पर्चा देते हैं। भाव है की गुरु के बगैर मुक्ति और भक्ति संभव नहीं है और नाहिं ईश्वर की प्राप्त ही संभव है।

जगत जहंदम राचिया, झूठे कुल की लाज।
तन बिनसे कुल बिनसि है, गह्या न राँम जिहाज॥
Jagat Jahandam Raachiya, Jhoothe Kul Kee Laaj.
Tan Binase Kul Binasi Hai, Gahya Na Raanm Jihaaj.
 
व्यक्ति अपने कर्मों के कारण जगत / जीवन को नरक में बदल देता है। वह लोक लाज और कुल की मर्यादा को निभाने के लिए अनैतिक कार्य करता है। उल्लेखनीय है की तन को समाप्त होना है, कुल को समाप्त होना है तो फिर क्यों आडम्बर किए जाएं। ऐसा करके वह राम नाम रूपी जहाज को नहीं पकड़ पाता है जिससे वह भव से पार नहीं उतर पाता है।

पष ले बूडी पृथमीं, झूठी कुल की लार।
अलष बिसारौं भेष मैं, बूड़े काली धार॥
Pash Le Boodee Prthameen, Jhoothee Kul Kee Laar.
Alash Bisaaraun Bhesh Main, Boode Kaalee Dhaar.
 
सम्पूर्ण संसार झूठ का पक्ष लेती है जो वे कुल की परम्परा के निर्वहन के लिए करते हैं, देख देखी करते हैं जो उचित नहीं है। पूर्ण ब्रह्म (अलख) को तुमने विभिन्न वेश भूषा को धारण करने के चक्कर में विस्मृत कर दिया है, अब ऐसी स्थिति में तुम्हे काली धारा में डूबना होगा, नरक में जाना होगा। भाव है की हम आडम्बर और मिथ्याचार के कारण विभिन्न तरह के वेश धारण करते हैं, पाखंड करते हैं लेकिन इससे भक्ति की प्राप्ति नहीं होगी । भक्ति को प्राप्त करने के लिए शुद्ध हृदय से हरी का सुमिरण करना आवश्यक है।

चतुराई हरि नाँ मिले, ऐ बाताँ की बात।
एक निसप्रेही निरधार का, गाहक गोपीनाथ॥
Chaturaee Hari Naan Mile, Ai Baataan Kee Baat.
Ek Nisaprehee Niradhaar Ka, Gaahak Gopeenaath.
 
हरी की भक्ति सहज है यह किसी चतुराई से प्राप्त नहीं हो सकती है, सभी बातों की यही बात जो निष्पक्ष और निराधार होते हैं, पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होते हैं वे ही गोपीनाथ, ईश्वर के ग्राहक होते हैं, ईश्वर ऐसे भक्तों को ही अपना बनाते हैं। भाव है की ईश्वर की प्राप्ति के लिए किसी विशेस सेटअप और गेटप की कोई आवश्यकता नहीं है, पाखण्ड और आडम्बर को दूर हटा निर्मन मन से हरी का सुमिरण ही इस जीवन की मुक्ति का आधार है।

नवसत साजे काँमनीं, तन मन रही सँजोइ।
पीव कै मन भावे नहीं, पटम कीयें क्या होइ
Navasat Saaje Kaanmaneen, Tan Man Rahee Sanjoi.
Peev Kai Man Bhaave Nahin, Patam Keeyen Kya Hoi


पूर्ण मनोयोग से साज सज्जा कर लेने के उपरान्त भी यदि स्त्री की सुन्दरता पिय को अच्छी ना लगे तो साज सज्जा का क्या लाभ ? भाव है की तमाम तरह के आडम्बर और पाखंडों को छोडकर सच्चे मन से हरी का सुमिरण ही मुक्ति का द्वार है। भक्ति के नाम के आडम्बर और पाखंड रचने से की लाभ नहीं होने वाला है।

जब लग पीव परचा नहीं, कन्याँ कँवारी जाँणि।
हथलेवा होसै लिया, मुसकल पड़ी पिछाँणि॥
Jab Lag Peev Paracha Nahin, Kanyaan Kanvaaree Jaanni.
Hathaleva Hosai Liya, Musakal Padee Pichhaanni.
 
जब तक इस आत्मा का परमात्मा से हथलेवा नहीं हो जाता है आत्मा रूपी कन्या कुँवारी ही रहती है। हथलेवा के उपरान्त जब आत्मा भक्ति मार्ग पर आगे बढती है तो अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। भाव है की भक्ति मार्ग कोई आसान कार्य नहीं है इसमें अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

कबीर हरि की भगति का, मन मैं परा उल्लास।
मैंवासा भाजै नहीं, हूँण मतै निज दास॥
kabeer hari kee bhagati ka, man main para ullaas.
main vaasa bhaajai nahin, hoonn matai nij daas.
 
हरी भक्ति का तो मन में बहुत उल्लास है, जीव हरी भक्ति को करना चाहता है लेकिन मन में अहम् रूपी चोर है जो भागता हैं, अहम् दूर नहीं होता है और इस प्रकार से भक्त अपने मार्ग से विचलित हो जाता है।

मैं वासा मोई किया, दुरिजिन काढ़े दूरि।
राज पियारे राँम का, नगर बस्या भरिपूरि॥
Maiṁ vāsā mō'ī kiyā, durijina kāṛhē dūri.
Rāja piyārē rām̐ma kā, nagara basyā bharipūri.
 
अहम् रूपी चोर को मैंने अपने हृदय से निकाल दिया है, सभी विषय विकार रूपी दुर्जनों को मैंने दूर कर दिया है, इस प्रकार से मैंने राम का राज्य स्थापित कर लिया है। भाव है की सभी विषय वासनाओं को मैंने दूर कर दिया है, अब ईश्वर के रंग में ही रंग गया हूँ।
कुछ अनमोल पद
अँधियरवा में ठाढ़ गोरी का करलू॥
जब लग तेल दिया में बाती, येहि अँजीरवा बिछाय घलतू॥
मन का पलँग सँतोष बिछौना, ज्ञान क तकिया लगाय रखतू॥
जरिगा तेल बुझाय गइ बाती, सुरेति में मुरति समाय रखतू॥
कहै कबीर सुनो भाइ साधो, जोतिया में जोतिया मिलाय रखतू॥

रहना नहीं देस बिराना है।
यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है।
यह संसार काँटे की बाड़ी, उलझ-पुलझ मरि जाना है।
यह संसार झाड़ और झाँखर, आग लगे बरि जाना है।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, सतगुरू नाम ठिकाना है।

प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्‍यों आया त्‍यों जावैगा।।
सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्‍या क्‍या बीता।।
सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावैगा।।
परली पार मेरा मीता खडि़या, उस मिलने का ध्‍यान न धरिया।।
टूटी नाव, उपर जो बैठा, गाफिल गोता खावैगा।।
दास कबीर कहैं समझाई, अंतकाल तेरा कौन सहाई।।
चला अकेला संग न कोई, किया अपना पावैगा।

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