वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै नदी न संचै नीर हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै नदी न संचै नीर मीनिंग Vriksh Kabahu Nahi Phal Bhakhe' Hindi Meaning Kabir Ke Dohe

 
वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।

Vrksh Kabahun Nahin Phal Bhakhai, Nadee Na Sanchai Neer.
Paramaarath Ke Kaarane, Saadhun Dhara Sareer.

वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै नदी न संचै नीर हिंदी मीनिंग Vriksh Kabahu Nahi Phal Bhakhe Hindi Meaning


दोहे के शब्दार्थ : कबहुँ-कभी नहीं, बखे-उपयोग में लेना (खाना), संचे-इकठ्ठा करना, सरीर शरीर।

Kabir Ke Dohe Hindi Meaning दोहे का हिंदी हिंदी मीनिंग: साधु का स्वभाव परोपकारी होता है, जैसे वृक्ष कभी अपना फल स्वंय नहीं खाता है और नदी जिस प्रकार से स्वंय के नीर का संचय नहीं करती है वैसे ही साधु और संत भी अपने ज्ञान का उपयोग परमार्थ के लिए ही करते हैं, स्वंय के कल्याण के लिए नहीं। कबीर साहेब की इससे प्रकृतिवादी द्रष्टिकोण का भी पता चलता है। प्रकृति सदा देने का भाव रखती है वह बदलें में कुछ भीनहीं चाहती है। कबीर साहेब का जीवन भी प्रकृति के आस पास ही नजर आता है। 

कबीर मनिषा जनम दुर्लभ है, देह न बारंबार।
तरवर थैं फल झड़ि पड्या, बहुरि ना लागै डार।।

दोहे का हिंदी भावार्थ/हिंदी मीनिंग: इस दोहे में भी प्रकृति का उदाहरण देकर साहेब ने बताया की जैसे पेड़ से एक बार पत्ता यदि टूटकर दूर हो जाता हैतो उसे पुनः जोड़ा नहीं जा सकता है वैसे ही मनुष्य जीवन भी जब समाप्त हो जाता है तो पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है, भाव है की मनुष्य जीवन अत्यंत ही दुर्लभ है जो करोड़ों यत्नों के उपरान्त मिलता है और इसका मूल उद्देश्य हरी का सुमिरण करना, अपनेमालिक का शुक्रिया अदा करने नेकी से जीवन व्यतीत करना है।

कबीर तन पक्षी भया, जहाँ मन तहाँ उड़ि जाइ।
जो जैसी संगति करे, सो तैसे फल खाइ।।

दोहे का हिंदी भावार्थ/हिंदी मीनिंग: व्यक्ति के मन की अवस्था भी पक्षी की भाँती ही होती है, यह एक स्थान पर स्थायी भाव से नहीं रह सकता है। पक्षी की भाँती ही यह स्थान स्थान पर चला जाता है। इस मन की स्थिति वैसी ही होती है जैसी संगती यह करता है। जैसी संगती में जीव रहता है वैसा ही वह स्वंय बन जाता है और उसके उपरान्त उसे संगती के जैसे ही परिणाम मिलते हैं।

साहेब तेरी साहिबी, सब घट रही समाय।
ज्यों मेंहदी के पात में, लाली रखी न जाय।।

दोहे का हिंदी भावार्थ/हिंदी मीनिंग: ईश्वर की साहिबी (प्रताप) हर तरफ व्याप्त है। कण कण में ईश्वर का प्रताप है और सभी का निर्माण उसी के द्वारा किया गया है। मेहंदी के पत्ते में जिस प्रकार ले लालिमा (रंग) अन्तर्निहित होता है वैसे ही हर स्थान पर ईश्वर का वास है लेकिन वह दिखाई नहीं देता है। मेहंदी को देखने से तो उसका रंग हरा दिखाई देता है लेकिन उसे रचाने पर वह हाथों में लालिमा देती है।

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।
बगुला भेद न जाने , हंसा चुनी चुनी खाई। ।

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शब्दार्थ : लहरि : समुद्र की लहर , भेद – रहस्य/गुण , हंसा /हंस और ग्यानी व्यक्ति।
Kabir Ke Dohe Hindi Meaning दोहे का हिंदी भावार्थ/हिंदी मीनिंग:यह संसार बगुले की भांति है जो इस संसार में व्याप्त अमूल्य वस्तुओं पर ध्यान नहीं देते हैं और व्यर्थ के कार्यों में लीन हो जाते हैं। जैसे समुद्र जहाँ मछली है, वहीँ मोती भी हैं, सर्वत्र मोती बिखरे पड़ें हैं लेकिन व्यक्ति बगुले की भांति हरी सुमरण रुपी मोती को छोडकर कंकर पत्थर में व्यस्त हो जाता है। गुरु के चरणों में जो व्यक्ति आता है वह हंस बन जाता है और उसे मोतियों का ज्ञान हो जाता है। बगुला और हंस से भाव ग्यानी और अज्ञानी व्यक्ति से है। 

जब गुण का गाहक मिले , तब गुण लाख बिकाई।
जब गुण को गाहक नहीं , तब कौड़ी बदले जाई।।

शब्दार्थ : गुन – गुण, विशेषता, गाहक – ग्राहक/उपयोग समझने वाला , कौड़ी – मूल्यहीन। तब गुण लाख बिकाई-गुण का मूल्य होता है।
दोहे का हिंदी भावार्थ/हिंदी मीनिंग: पारखी व्यक्ति ही गुण का ग्राहक होता है और वह उसका महत्त्व भी समझता है। यदि अज्ञानी व्यक्ति के पास उसकी विवेचना की जाए तो वह उसके लाखों के मूल्य को मूल्यहीन कर देता हैं।

संत न छोड़े संतई जो कोटिक मिले असंत।
चंदन भुवंग बैठिया , तऊ सीतलता न तंजत। ।

दोहे का हिंदी भावार्थ/हिंदी मीनिंग: संतई – संत जैसा स्वभाव , कोटिक – हज़ारों/असंख्य , असंत – बुराई का आचरण करने वाले , भुवंग – सांप , बैठिया – बैठा है , तंजत – छोड़ देना /त्याग देना ।
हिंदी भावार्थ : संत का स्ववभाव बहुत ही निर्मल होता है उसी असंख्य / करोड़ों दुष्ट जन भी यदि मिल जाए तो भी वह अपने स्वभाव को छोड़ता नहीं है और भलाई और परोपकार के मार्ग पर ही चलता रहता है। उदहारण के लिए जैसे चन्दन का वृक्ष जहरीले साँपों से लिपटे रहने के बावजूद भी अपने निर्मल स्वभाव और खुशबू को नहीं छोड़ता है। ऐसे ही शांत चित्त, परोपकार, ग्यानी जन भी अपनी अच्छाइयों को नहीं त्यागते हैं। भाव है की हमारा स्वाभाव संत के समान होना चाहिए जो कैसी भी परिस्थिति हो अपने स्वभाव को कभी नहीं छोड़ता है और सदा शांत रहता है।

यह घर है प्रेम का , खाला का घर नाही।
शीश उतार भुई धरों , फिर पैठो घर माहि। ।

मौसी , शीश – सिर , भुई – धरती , पैठो – जाओ। 

हिंदी भावार्थ : ईश्वर की भक्ति कोई आसान नहीं है, जिसे कोई भी प्राप्त कर ले । यह किसी रिश्तेदार (मौसी) का घर नहीं है जिसमे कोई भी अपने सबंधी होने के नाते प्रवेश कर जाए, ईश्वर की भक्ति के लिए तो स्वंय का शीश उतारकर धरती पर रखना पड़ता है, स्वंय का अहंकार समाप्त कर पूर्ण समर्पण करना पड़ता है। भाव है की ईश्वर की प्राप्ति के लिए स्वंय के अहंकार को समाप्त करना पड़ता है, गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण करना पड़ता है और नेक राह पर चलना पड़ता है, यह इतना आसान नहीं है जितना प्रतीत होता है।

राम रसायन प्रेम रस पीवत अधिक रसाल।
कबीर पिवन दुर्लभ है , मांगे शीश कलाल। ।

शब्दार्थ : राम – ईश्वर , रसायन – रस/आनं , रसाल – रसीला , दुर्लभ – जो सरल न हो , कलाल – कटा हुआ।
राम नाम का रस (रसाय) / भक्ति अत्यंत ही दुर्लभ है जो हजारों प्रयत्नों के उपरान्त प्राप्त होती है। यह जितनी सरल दिखाई देती है, उतनी है नहीं। हरी रस को प्राप्त करने के लिए/ शीश काटकर रखना पड़ता है। स्वंय के अहंकार, होने का भाव, मैं यह हूँ, मैंने यह किया आदि का त्याग करना पड़ता है।

बकरी पाती खाति है, ताको काढ़ी खाल।
जो नर बकरी खात हैं, तिनका कौन हवाल।।

Kabir Ke Dohe Hindi Meaning दोहे का हिंदी भावार्थ/हिंदी मीनिंग: जीव को अपने आहार का ध्यान रखना चाहिए, जैसे बकरी वनस्पति खाकर जीवित रहती जिसे समझा जा सकता है लेकिन यदि जो जीव, नर बकरी को ही मार कर खा जाए उसका कौन रखवाला है ? भाव है की मनुष्य को दुसरे जीवों का भी ख़याल रखना चाहिए और हिंशा से दूर रहना चाहिए। अत्याचार से दूर रहकर अन्य जीवों पर भी क्रूर भाव नहीं रखना चाहिए।

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