जिहि घटि प्रीति न प्रेम रस फुनि रसना नहीं राम हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

जिहि घटि प्रीति न प्रेम रस फुनि रसना नहीं राम हिंदी मीनिंग Jihi Ghati Preeti Na Hindi meaning

कबीर सूता क्या करै उठि न रोवै दुक्ख।
जाका बासा गोर मैं, सो क्यूँ सोवै सुक्ख॥
Kabeer Soota Kya Karai Uthi Na Rovai Dukkh.
Jaaka Baasa Gor Main, So Kyoon Sovai Sukkh.
 
कबीर सूता क्या करै उठि न रोवै दुक्ख। जाका बासा गोर मैं, सो क्यूँ सोवै सुक्ख॥

अज्ञान की नींद में सोने से क्या फायदा है, उठकर हरी के नाम का सुमिरण क्यों नहीं करते हो। अन्यथा उठकर पुनः तुम्हे रोना ही पड़ेगा। रोने से भाव है की हरी के नाम के सुमिरण के अभाव में व्यक्ति को जनम मरण के चक्र में फंसा रहना पड़ता है और वह दुखों का पात्र बनता है। जो मृत्यु के मुख (गौर) में पड़े हुए हैं उन्हें सुख की नींद कैसे आ सकती है। वस्तुतः यह चेतना का विषय है की हमें जागना चाहिए की यह जीवन स्थाई नहीं है, एक रोज हमें यह जगत छोड़ कर जाना है। अज्ञान ही समस्त दुखों का कारण है। जनम मरण के इस चक्र से मुक्ति का मार्ग ज्ञान ही है। अगले जनम से मुक्ति और दुखों से छुटकारा हरी नाम का सुमिरण ही है।

कबीर सूता क्या करै, सुताँ होइ अकाज।
ब्रह्मा का आसण खिस्या, सुणत काल को गाज॥
Kabeer Soota Kya Karai, Sutaan Hoi Akaaj.
Brahma Ka Aasan Khisya, Sunat Kaal Ko Gaaj.


अज्ञान की नींद को छोडो और ज्ञान प्राप्ति की प्राप्ति करो क्योंकि अज्ञान की नींद में सोने से क्या लाभ होने वाला है, इससे तो हानि ही होगी। जीवन स्थाई नहीं है, जीवन अल्प है और एक रोज साँसों का खजाना पूर्ण हो ही जाना है इसलिए तुम ज्ञान प्राप्त करो और अपने जीवन के उद्देश्य को समझो। काल एक सत्य है जो एक रोज सभी को अपना शिकार बना लेगा, काल के प्रभाव (गाज) से तो ब्रह्मा का भी सिंहासन खिसक गया है, मनुष्य की तो बात ही क्या है।


कबीर सूता क्या करै, गुण गोबिंद के गाइ।
तेरे सिर परि जम खड़ा, खरच कदे का खाइ॥
Kabeer Soota Kya Karai, Gun Gobind Ke Gai.
Tere Sir Pari Jam Khada, Kharach Kade Ka Khai.


सुमिरण / हरी सुमिरण ही इस जीवन का आधार है इसलिए अज्ञान की नींद में सोने से क्या फायदा होने वाला है, उठो और ज्ञान प्राप्त करो क्योंकि सुमिरण / हरी सुमिरण ही इस जीवन का आधार है इसलिए अज्ञान की नींद में सोने से क्या फायदा होने वाला है, उठो और ज्ञान प्राप्त करो क्योंकि सर के ऊपर जम (काल ) खड़ा है, और जो हरी नाम की पूंजी कमाई है वह खर्च हो चुकी है, कब तक उसी कमाई के पीछे लगना है। सर के ऊपर साहूकार खड़ा है इसलिए ज्ञान प्राप्त करो और अपना जीवन के उद्देश्य को समझो।

केसो कहि कहि कूकिये, नाँ सोइयै असरार।
राति दिवस के कूकणौ, (मत) कबहूँ लगै पुकार॥
Keso Kahi Kahi Kookiye, Naan Soiyai Asaraar.
Raati Divas Ke Kookanau, (Mat) Kabahoon Lagai Pukaar.


साधक को सीख है की वह निर्बाद रूप से, लगातार केशव के नाम का सुमिरन करे, हठपूर्वक अज्ञान की नींद में सोने से कोई लाभ नहीं होने वाला है और अज्ञान को छोडकर ज्ञान को प्राप्त करे। दिन रात के इस सुमिरन से ना जाने कब हरी के कानों में यह विनय सुनाई दे जाए। भाव है एक रोज अवश्य ही हरी तुम्हारी सुध लेंगे तुम हरी के नाम का सुमिरन करते रहो।

जिहि घटि प्रीति न प्रेम रस, फुनि रसना नहीं राम।
ते नर इस संसार में, उपजि षये बेकाम॥
Jihi Ghati Preeti Na Prem Ras, Phuni Rasana Nahin Raam.
Te Nar Is Sansaar Mein, Upaji Shaye Bekaam.


जिस घट (हृदय ) में प्रेम नहीं है, और नाही प्रेम का रस ही है, भक्ति नहीं है और जिसकी वाणी में राम का नाम नहीं है वे नर/जीव इस संसार में अकारण ही उत्पन्न हुए हैं। जिसके हृदय में प्रेम का संचार नहीं है, उनके जीवन का उद्देश्य व्यर्थ हो गया है। प्रीती, प्रेम रस और प्रेम का भाव ही भक्ति का मूल है। जीवन की सार्थकता प्रेम भाव और भक्ति में ही है। इस दोहे में तत्सम शब्दों का उपयोग हुआ है।

कबीर प्रेम न चाषिया, चषि न लीया साव।
सूने घर का पाहुणाँ, ज्यूँ आया त्यूँ जाव॥
Kabeer Prem Na Chaashiya, Chashi Na Leeya Saav.
Soone Ghar Ka Paahunaan, Jyoon Aaya Tyoon Jaav.


जिसने भी जनम लेकर भक्ति और प्रेम का रस नहीं चखा है।, चखकर उसका स्वाद नहीं लिया है, वह तो सूने घर का पावना (मेहमान ) की भाँती होता है जो जैसे आता है वैसे ही रवाना होता है, उसकी आवभगत करने वाला कोई नहीं होता है। जिस घर में परिवार के सदस्य मौजूद रहते हैं वे मेहमान की तरह तरह से आव भगत करते हैं लेकिन जो घर सूना हो (जहाँ प्रेम और भक्ति भाव नहीं हो) वहां का मेहमान तो खाली हाथ ही लौट जाता है।

पहली बुरा कमाइ करि, बाँधी विष की पोट।
कोटि करम फिल पलक मैं, (जब) आया हरि की ओट॥
Pahalee Bura Kamai Kari, Baandhee Vish Kee Pot.
Koti Karam Phil Palak Main, (Jab) Aaya Hari Kee Oot.


जीव ने पूर्व जन्मों में बुराई से विष की पोटली को बाँध लिया है, बुरे कर्मों के परिणामों को एकत्रित कर लिया है। ऐसे करोड़ों पाप पल भर में नष्ट हो जाते हैं जब जीव हरी की शरण (ओट) में आता है। समस्त पाप कर्मों के परिणाम इश्वर की शरण में आने से पल भर में नष्ट (फिल) हो जाते हैं। इस दोहे में साहेब ने शरणागत के महत्त्व को स्थापित किया है।

कोटि क्रम पेलै पलक मैं, जे रंचक आवै नाउँ।
अनेक जुग जे पुन्नि करै, नहीं राम बिन ठाउँ॥
Kōṭi Krama Pēlai Palaka Maiṁ, Jē Ran̄caka Āvai Nā'um̐.
Anēka Juga Jē Punni Karai, Nahīṁ Rāma Bina Ṭhā'um̐.


इश्वर की भक्ति की शरण में आने का प्रभाव है की करोड़ों कर्मों के फल पल भर में नष्ट हो जाते हैं, जो जीव रंच मात्र भी हरी की शरण में आए। जिन्होंने भले ही अनेको जन्म में पुन्य कमाएं हों उनका राम के नाम सुमिरन के अभाव में कोई ठौर ठिकाना नहीं है। राम नाम के बगैर जीव को मुक्ति संभव नहीं है।

जिहि हरि जैसा जाणियाँ, तिन कूँ तैसा लाभ।
ओसों प्यास न भाजई, जब लग धसै न आभ॥
Jihi Hari Jaisa Jaaniyaan, Tin Koon Taisa Laabh.
Oson Pyaas Na Bhaajee, Jab Lag Dhasai Na Aabh.


जिसने हरी को जिस रूप में और जिस तरह से समझा है वह वैसे ही परिणाम प्राप्त करता है। पूर्ण परम ब्रह्म को छोड़कर अन्य देवताओं के पीछे भागना, उनकी स्तुति करना ओस को चाटने के समान ही है। जब तक पूर्ण भक्ति रस उसके अन्दर प्रवेश नहीं करे तब तक कोई लाभ नहीं होने वाला है। भाव है की सच्ची भक्ति तभी संभव है जब व्यक्ति पूर्ण निष्ठां से भक्ति करें। सच्चे हृदय से भक्ति करने पर ही जीव जनम मरण के चक्र से मुक्ति पा सकता है।

राम पियारा छाड़ि करि, करै आन का जाप।
बेस्वाँ केरा पूत ज्यूँ, कहे कौन सूँ बाप॥
Raam Piyaara Chhaadi Kari, Karai Aan Ka Jaap.
Besvaan Kera Poot Jyoon, Kahe Kaun Soon Baap.


जो साधक/व्यकी राम (पूर्ण ब्रह्म ) को छोड़कर अन्य देवताओं की पूजा अर्चना करता है, अनेकों प्रकार के देवों को सच्चा मानता है वह ऐसे ही है जैसे वैश्या का पुत्र जो अब किसे अपना पिता कहे। सनातन आत्मा का सबंध केवल एक ब्रह्म से ही है और किसी से नहीं। यहाँ एक इश्वर को स्थापित किया गया है और द्वेत्वाद का खंडन।

कबीर आपण राम कहि, औरां राम कहाइ।
जिहि मुखि राम न ऊचरे, तिहि मुख फेरि कहाइ॥
kabeer aapan raam kahi, auraan raam kahai.
jihi mukhi raam na oochare, tihi mukh pheri kahai.


स्वंय राम कहो और दूसरों को भी राम का उच्चारण करने के लिए प्रेरित करो। जिस मुख से राम के नाम का उच्चारण नहीं हो पा रहा हो उसके लिए पुनः प्रयत्न करो की वह राम के नाम का उच्चारण करे। यहाँ पर राम भक्ति को स्थापित किया गया है और लोगों को इस तरफ आकर्षित करने के लिए प्रेरित किया गया है।

लूटि सकै तो लूटियो, राम नाम है लूटि।
पीछै ही पछिताहुगे, यहु तन जैहै छूटि॥
Looti Sakai To Lootiyo, Raam Naam Hai Looti.
Peechhai Hee Pachhitaahuge, Yahu Tan Jaihai Chhooti.


हरी के नाम की लूट है, उसका कोई मूल्य नहीं है। जितना राम का सुमिरन कर लिया जाए वह अमूल्य है और संतों और ज्ञानियों के द्वारा निशुल्क बांटा जा रहा है, व्यक्ति अपने सामर्थ्य के मुताबिक़ इसे प्राप्त कर सकता है। विशेष है की यह जीवन स्थाई नहीं है एक रोज स्वतः ही समाप्त हो जाना है इसलिए जीवन के रहते हरी का सुमिरन ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। माया के भरम के कारण जीव यह मान बैठता है की वह स्थाई रूप से इसी जगत में रहेगा और इसी भ्रम के चलते वह हरी सुमिरन को विस्मृत कर देता है।

लूटि सकै तो लूटियो, राम नाम भण्डार।
काल कंठ तै गहैगा, रूंधे दसूँ दुवार॥
Looti Sakai To Lootiyo, Raam Naam Bhandaar.
Kaal Kanth Tai Gahaiga, Roondhe Dasoon Duvaar.


राम नाम का भंडार/अक्षय भण्डार लुटाया जा रहा है, सामर्थ्य अनुसार हमें इसे इकठ्ठा कर लेना चाहिए। एक रोज काल गले (कंठ ) से हमें पकड़ लेगा और भागने की लिए कोई दरवाजा शेष नहीं रहेगा क्योंकि दसों दरवाजे बंद मिलेंगे। दसों दरवाजे से आशय है, आँख, नाक कान, मुख, गुदा, मूत्र मार्ग और ब्रह्म रंध्र। भाव है की यह जीवन एक रोज समाप्त हो जाना है, यह स्थाई नहीं है, तो जब तक जीवन है हरी के नाम का सुमिरन कर लेना चाहिए। मृत्यु अंतिम सत्य है।

लम्बा मारग दूरि घर, विकट पंथ बहु मार।
कहौ संतो क्यूँ पाइये, दुर्लभ हरिदीदार॥
Lamba Maarag Doori Ghar, Vikat Panth Bahu Maar.
Kahau Santo Kyoon Paiye, Durlabh Harideedaar.


हरी मिलन/हरी दर्शन अत्यंत ही दुर्लभ हैं। जीवन का लक्ष्य है ब्रह्म की प्राप्ति, जो की अत्यंत ही दुर्लभ/कठिन है। ब्रह्म तक पहुचने का मार्ग विकट है और अनेकों कठिनाइयों (बहु मार) से युक्त हैं। रास्ते में लोभ, मद मोह माया रूपी अनेकों लुटेरे हैं जो सफ़र को अधिक दुश्वार बना देते हैं। ऐसी अनेकों बाधाओं में फंसकर जीव अपने मार्ग पर दृढ नहीं हो पाता है। ऐसे में कैसे कोई हरी दर्शन को प्राप्त कर सकता है। इस साखी में रुप्कातिश्योक्ति अलंकार का उपयोग किया गया है।

गुण गाये गुण ना कटै, रटै न राम बियोग।
अह निसि हरि ध्यावै नहीं, क्यूँ पावै दुरलभ जोग॥
Gun Gaaye Gun Na Katai, Ratai Na Raam Biyog.
Ah Nisi Hari Dhyaavai Nahin, Kyoon Paavai Duralabh Jog.


हरी के नाम के गुण गाने से सांसारिक बंधन कट जाते हैं इसलिए तुम राम से वियोग की स्थिति में राम के नाम का गुण क्यों नहीं गाते हो। यदि तुम दिन रात हरी के नाम का गुणगान नहीं करोगे तो तुम्हे हरी के दुर्लभ दर्शन का अप्राप्य संजोग कैसे प्राप्त होंगे। राम नाम के गुण गान से माया का पाश (गुण -रस्सी ) कट जाती है। गुण शब्द दो बार आया है और दोनों ही अलग अर्थों में है इसलिए यहाँ पर यमक अलंकार का उपयोग हुआ है। इस साखी में तत्सम शब्दों का उपयोग किया गया है।

कबीर कठिनाई खरी, सुमिरतां हरि नाम।
सूली ऊपरि नट विद्या, गिरूँ तं नाहीं ठाम॥
Kabeer Kathinaee Kharee, Sumirataan Hari Naam.
Soolee Oopari Nat Vidya, Giroon Tan Naaheen Thaam.


हरिनाम के मार्ग में बहुत ही अधिक कठिनाइयां हैं, यह कठिनाइयाँ इतनी अधिक जटिल हैं जैसे नट शूली पर चढ़कर खेल तमाशा दिखाता है, वह अधिक जोखिम भरा होता है। जैसे नट के द्वारा संतुलन बिगड़ जाने पर यदि वह निचे गिरता है तो उसके बचने की कोई आशा शेष नहीं रहती है, ऐसे ही जो साधक भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ता है। उसे अनेको मुश्किलों और माया जनित लुटेरों का सामना करना पड़ता है, लेकिन यदि वह भक्ति मार्ग से विमुख होता है तो उसके बचने की कोई आशा नहीं रहती है और वह समाज के द्वारा भी स्वीकार नहीं किया जाता है। इस साखी में द्रष्टान्त अलंकार का उपयोग किया गया है। विशेष है की भक्ति मार्ग से पथ भ्रष्ट नहीं होना चाहिए।

कबीर राम ध्याइ लै, जिभ्या सौं करि मंत।
हरि साग जिनि बीसरै, छीलर देखि अनंत॥
Kabeer Raam Dhyai Lai, Jibhya Saun Kari Mant.
Hari Saag Jini Beesarai, Chheelar Dekhi Anant.


साहेब की वाणी है की जिव्हा का सहयोग प्राप्त करके राम के नाम का सुमिरन कर लो। भक्ति के अन्य मार्ग/साधनों को देखकर (भक्ति के पोखर जो छोटे हैं ) राम रूपी सागर से पथ भ्रष्ट नहीं होना चाहिए। इस दोहे में रूपक और रुप्कतिश्योक्ति अलंकार का उपयोग हुआ है। विशेष है की साहेब ने अनेक देवी देवताओं और भक्ति मार्ग को पूर्ण ब्रह्म के समक्ष तुच्छ माना है, इसलिए तरह तरह के मार्गों को छोड़कर एक पूर्ण परम ब्रह्म की उपासना और भक्ति पर बल दिया है।

कबीर राम रिझाइ लै, मुखि अमृत गुण गाइ।
फूटा नग ज्यूँ जोड़ि मन, संधे संधि मिलाइ॥
Kabeer Raam Rijhai Lai, Mukhi Amrt Gun Gai.
Phoota Nag Jyoon Jodi Man, Sandhe Sandhi Milai.


साहेब की वाणी है की निरंतर राम के नाम का गुणगान करके हरी को रिझा लो, प्रशन्न कर लो। साधक को हरी को वैसे ही प्रशन्न कर लेना चाहिए जैसे टूटे हुए रत्न/हीरे को संधि से संधि मिलाकर जोड़ लिया जाता है। इस दोहे में रुप्कातिश्योक्ति और रूपक अलंकार का उपयग हुआ है। भाव है की भक्ति मार्ग कठिन अवश्य है लेकिन संभव नहीं है इसे जतन पूर्वक जोड़ा जा सकता है। मन को बड़े ही जतन से इश्वर से जोड़ लेना चाहिए क्योंकि यही मुक्ति का मार्ग है। जतन से आशय है की भक्ति मार्ग में अनेकों कठिनाइयां आती है जो माया जनित भ्रम के कारण उत्पन्न होती हैं।

कबीर चित्त चमंकिया, चहुँ दिस लागी लाइ।
हरि सुमिरण हाथूं घड़ा, बेगे लेहु बुझाइ॥
Kabir Chitt Chamakiya, Chahu Dis Laagi Laai,
hari Sumirn Hathu Ghada, Bege lehu bujhaai.


चारों तरफ विषय वासनाओं की आग लगी है, जिसे देख कर साहेब का मन चकित हो गया है। हृदय रूपी चकमक पत्थर के कारण चारों तरफ यह आकर्षित होकर मोह माया की अग्नि में फंस गया है। मोह माया की इस अग्नि को अपने हाथ में राम नाम के सुमिरन रूपी घड़े में मौजूद जल से बुझा डालो। मोह माया की अग्नि को शांत करने का एक ही तरिका है वह है हरी के नाम का सुमिरण, जिसका उपयोग करके इसे शीघ्र ही बुझा लेना चाहिए। प्रस्तुत साखी में रुप्कतिश्योक्ति, रूपक और अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
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4 टिप्पणियां

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