लेखा देणाँ सोहरा जे दिल साँचा होइ हिंदी मीनिंग
लेखा देणाँ सोहरा, जे दिल साँचा होइ।
उस चंगे दीवाँन मैं, पला न पकड़े कोइ॥
Or
लेखा देणां सोहरा, जे दिल सांचा होइ ।
उस चंगे दीवान में, पला न पकड़ै कोइ ॥1॥
Lekha Dena Sohara, Ji Dil Sancha Hoi,
Us Change Divaan Main, Palla na Pakade Koi.
लेखा देणाँ सोहरा : यदि लेना देना आसान होता है, स्पष्ट होता है. जे : यदि.दिल : हृदय, चित्त, साँचा होइ : सच्चा है तो.चंगे दीवाँन : उस अच्छे दरबार में.पला : पकड़ना. लेखा देणाँ : लेना देना, हिसाब किताब,सोहरा : सरल, सहज. जे : यदि.दिल: हृदय,साँचा : सच्चा.होइ हो.चंगे : अच्छा.दीवाँन मैं : दरबार में.पला : हाथ पकड़ना.न पकड़े कोइ : कोई नहीं पकड़ता है. कबीर साहेब की वाणी है की यदि तुम्हारा हृदय सच्चा है, तुमने सत्य को आधार मान कर अपना आचरण किया है तो अवश्य ही अंतिम समय में जब तुम्हारे कर्मों का लेखा जोखा होना है, तुम्हारे कर्मों का हिसाब किताब किया जाना होगा तो तुम्हारा हाथ कोई नहीं पकड़ेगा. प्रभु के श्रेष्ठ और सच्चे दरबार में तुम्हारा कोई हाथ नहीं पकड़ेगा. भाव है की हमें ऐसे कर्म करने चाहिए जो सत्य पर आधारित हों और इश्वर की भक्ति करनी चाहिए जिससे अंतिम समय में हिसाब किताब में हम सहज हो पाएं. सहजता के साथ, सरलता के साथ हम अपने कर्मों का हिसाब दे पाएं और कोई हमारा हाथ न पकडे. हाथ पकड़ने से आशय है की हम हम ऐसे कार्य ना करें जिससे मुक्ति मार्ग पर हमें रोका जाए.
हरी का सुमिरन ही समस्त बाधाओं से दूर रहने का माध्यम है. लेना देना से आशय है की हमें हमारे द्वारा मानव जीवन को प्राप्त कर किए गए कर्मों का हिसाब किताब देना होगा. यह जीवन एक तरह की पूंजी है जिसके साहूकार हम नहीं हैं.
यह भी देखें You May Also Like
कबीर साहेब के अनुसार "ईश्वर" क्या है ?
कबीर के अनुसार, ईश्वर वर्णन से परे है और मानव मन द्वारा पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता है, उसे तार्किक रूप से समझना बहुत क्लिष्ट है। कबीर दास जी का मानना था कि परम सत्य निराकार है और इसे किसी विशिष्ट धार्मिक या सांस्कृतिक परंपराओं तक सीमित नहीं किया जा सकता है।
अपनी कविता और शिक्षाओं में, कबीर ने बाहरी कर्मकांडों या धार्मिक हठधर्मिता पर भरोसा करने के बजाय, परमात्मा के साथ एक व्यक्तिगत संबंध के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने सिखाया कि परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर पाया जा सकता है, और यह कि सत्य और आध्यात्मिक पूर्णता की खोज स्वयं की गहरी समझ से शुरू होनी चाहिए।
कबीर अक्सर जटिल आध्यात्मिक विचारों को व्यक्त करने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी से रूपकों और उदाहरणों का इस्तेमाल करते थे, और उनका मानना था कि भगवान की वास्तविक प्रकृति को प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभव और आंतरिक प्रतिबिंब के माध्यम से सबसे अच्छा अनुभव किया जाता है। उन्होंने ईश्वर के साथ गहरे संबंध विकसित करने के एक तरीके के रूप में, भौतिक बंधनों से मुक्त और धन या शक्ति की खोज से मुक्त, एक सरल और ईमानदार जीवन जीने के महत्व पर बल दिया।
कबीर की ईश्वर की अवधारणा गहरी व्यक्तिगत और अनुभवात्मक थी, जो आंतरिक आध्यात्मिक प्रथाओं के महत्व और परमात्मा के साथ सीधा संबंध पर जोर देती थी।
|
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
|