कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग लिरिक्स Kabira Soya Kya Kare Baitha Rahu Lyrics

कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग लिरिक्स Kabira Soya Kya Kare Baitha Rahu Lyrics


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कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग,
जिनके संग ते बिछड़ो वाही ते संग लाग,
ज्यों तिल माहीं तैल है ज्यों चकमक में आग
तेरा साईं तुझ में, जाग सके तो जाग,
कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग,
जिनके संग ते बिछड़ो वाही ते संग लाग।

माला फेरत जुग भया, मिटा न मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे, मन का मनका फेर
माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माहीं,
मनवा तो चहुँ दिस फिरे, ये तो सुमिरन नाहीं,
कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग,
जिनके संग ते बिछड़ो वाही ते संग लाग।

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय,
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ ना होये
पारस में अरु संत में बडो अन्तरो जान,
वो लोहा कंचन करे, ये कर दे आप समान
कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग,
जिनके संग ते बिछड़ो वाही ते संग लाग।

सुमिरण सूरत लगाए के मुख से कछु न बोल.
बाहर  के पट बंद कर, अन्दर के पट खोल
श्वास श्वास पे नाम ले वृथा स्वांस ना खोय,
ना जाने यह श्वास का आवन होय ना होय,
कबीरा सोया क्या करे बैठा रहूँ अरु जाग,
जिनके संग ते बिछड़ो वाही ते संग लाग।

जागो लोगों मत सोवो, ना करो नींद से प्यार
जैसे सुपना रैन का, ऐसा ये संसार
कहे कबीर पुकार के दो बातें लिख दे
के साहब की बंदगी, भूखों को कुछ दे
कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग,
जिनके संग ते बिछड़ो वाही ते संग लाग।

कबीरा वा दिन याद कर पग ऊपर तल शीश,
मृत्यु लोक में आये के बिसर गया जगदीश,
चेत सवेरे बावरे फिर पाछे पछताए,
तुझको जाना दूर है कहे कबीर जगाये
कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग,
जिनके संग ते बिछड़ो वाही ते संग लाग।

साईं उतना दीजिये जामें कुटुंब समाय,
मैं भी भूखा ना रहू साधू ना भूखा जाय,
कबीरा खडा बाज़ार में मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग,
जिनके संग ते बिछड़ो वाही ते संग लाग।

कथा कीर्तन कलि विखे भवसागर की नाँव,
कहे कबीर भवतरन को, नाहीं और उपाय,
कहना था सो कह दिया अब कछु कहा ना जाए
एक रहा दूजा गया दरियां  लहर समाए,
कबीरा सोया क्या करे बैठा रहू अरु जाग,
जिनके संग ते बिछड़ो वाही ते संग लाग।
यह भजन मूल रूप से कबीर भजन है / कबीर के दोहों का संग्रह है जिसमे कबीर साहेब की वाणी है की जीवात्मा को अज्ञान की नींद को त्यागकर/छोडकर अपने मालिक की शरण में जाना चाहिए जिनसे वह बिछड़ा है, इश्वर की भक्ति में अपना ध्यान लगाना चाहिए. जैसे तिल में तेल छिपा हुआ है, चकमक में अग्नि छुपी हुई है ऐसे ही तेरा स्वामी तेरे ही अन्दर है. उसे ढूंढने के लिए किसी विशेष जतन की आवश्यकता नहीं है वह तो घट घट में वास करता है. संसार में तमाम तरह के दिखावे और पाखंड फैले हुए हैं जिनको छोडकर जीवात्मा को हरी का ध्यान लगाना चाहिए जो मुक्ति का मार्ग है. हाथों में माला को फेरने का कोई लाभ नहीं होने वाला है जब तक हम अपने मन से भक्ति नहीं करेंगे, ध्यान नहीं लगायेंगे कोरे पाखंडों से कुछ भी हाशिल नहीं होने वाला है. हमें सदैव ही अपने गर्भ काल को याद रखना चाहिए जब हम पेट में उलटे लटके थे और इस मृत्यु लोक में आकर के हम अपने स्वामी को भूल गए हैं. इसलिए हमें अज्ञान की नींद को छोड़कर हरी सुमिरन करना चाहिए.


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