गुरुजी के चरणों में रहना भाई चेला लिरिक्स Guruji Ke Charano Me Rahana Bhai Chela Lyrics Kabir Bhajan Prahlad Singh Tipaniya Bhajan
श्री प्रहलाद सिंह टिपानिया जी ने कबीर भजन के माध्यम से गुरु की महिमा को स्थापित करते हुए समझाया है की गुरु की शरण में रहो तुम्हे दुगना मिलेगा। यह वस्तु शून्य घट की है, कोई सांसारिक वस्तु नहीं। गुरु के सानिध्य से नाभि से को जाग्रत किया जा सकता है। मेरुदंड को खोलने का माध्यम भी नाभि ही है। सतगुरु ही उस अनहद से परिचय करवा सकते हैं।
ध्यान मूलं गुरु मूर्ति, पूजा मूलं गुरु पदम्,
मन्त्र मूलं गुरु: वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरु कृपा,
मन्त्र मूलं गुरु: वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरु कृपा,
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोक्ष,
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष
सात द्वीप नौ खंड मे , गुरु से बड़ा न कोय,
कर्ता करै न कर सके , गुरु करै सो होय।
गुरु की वाणी अटपटी झटपट लखी न जाए,
जो जन लखी लए वाकी खटपट मिट जाए।
गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ गढ़ काढ़ै खोट,
अन्तर हाथ सहार दै, और बाहर बाहै चोट।
कर्ता करै न कर सके , गुरु करै सो होय।
गुरु की वाणी अटपटी झटपट लखी न जाए,
जो जन लखी लए वाकी खटपट मिट जाए।
गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ गढ़ काढ़ै खोट,
अन्तर हाथ सहार दै, और बाहर बाहै चोट।
गुरुजी के चरणों में , रहना भाई चेला थारे ,
दुणी - दुणी ( नित कई ) वस्तु मिले रे ।
म्हारा साधु भाई , शून्य में सुमरणा सूरत से मिले रे ॥
सब घट नाम साधो एक है रे जी ।।
दई रणुकार थारी , नाभि से उठता, दई - दई डंको चढ़े रे,
नाभि पंथ साधो घणो रे दुहेलो, सब रंग पकड़ फिरे रे,
नाभिपंथ साधो , उल्टा घुमाले तो, मेरुदंड खुले रे,
मेरुदंड साधो पिछम का मारग, सीधी बाट धरो रे,
(मेरुदंड साधो चमके रे माणक, बुद्धि पार चढ़ो रे )
सब घट नाम साधो एक है रे जी।
म्हारा साधु भाई , शून्य में सुमरणा सूरत से मिले रे ॥
सब घट नाम साधो एक है रे जी ।।
दई रणुकार थारी , नाभि से उठता, दई - दई डंको चढ़े रे,
नाभि पंथ साधो घणो रे दुहेलो, सब रंग पकड़ फिरे रे,
नाभिपंथ साधो , उल्टा घुमाले तो, मेरुदंड खुले रे,
मेरुदंड साधो पिछम का मारग, सीधी बाट धरो रे,
(मेरुदंड साधो चमके रे माणक, बुद्धि पार चढ़ो रे )
सब घट नाम साधो एक है रे जी।
बिना डंका से वां , झालर बाजे बाजे,
झिणी -झिणी आवाज़ सुनो रे,
घड़ियाल शंख बाँसुरी वीणा, अनहद नाद घुरे रे,
सब घट नाम साधो एक है रे जी।
दिन नहीं रैण , दिवस नहीं रजनी, नहीं वहाँ सूरज तपे रे,
गाजे न घोरे बिजली न चमके, अमृत बूंद झरे रे॥
बिन बस्ती का , देश अजब है, नहीं वहाँ काल फरे रे,
कहें कबीर सुनो भाई साधो, शीतल अंग करो रे,
दिन नहीं रैण , दिवस नहीं रजनी, नहीं वहाँ सूरज तपे रे,
गाजे न घोरे बिजली न चमके, अमृत बूंद झरे रे॥
बिन बस्ती का , देश अजब है, नहीं वहाँ काल फरे रे,
कहें कबीर सुनो भाई साधो, शीतल अंग करो रे,
सब घट नाम साधो एक है रे जी ।।
गुरु जी के चरणों में रहना भाई चेला | Prahlad Singh Tipaniya | Sahitya Tak
Re Jee ..
Daee Ranukaar Thaaree , Naabhi Se Uthata , Daee - Daee Danko Chadhe Re .
Naabhi Panth Saadho Ghano Re Duhelo , Sab Rang Pakad Phire Re .
Naabhipanth Saadho , Ulta Ghumaale To , Merudand Khule Re .
Merudand Saadho Pichham Ka Maarag , Seedhee Baat Dharo Re .
(Merudand Saadho Chamake Re Maanak , Buddhi Paar Chadho Re )
Bina Danka Se Vaan , Jhaalar Baaje Baaje
Jhinee -jhinee Aavaaz Suno Re .
Ghadiyaal Shankh Baansuree Veena , Anahad Naad Ghure Re .
Din Nahin Rain , Divas Nahin Rajanee , Nahin Vahaan Sooraj Tape Re .
Gaaje Na Ghore Bijalee Na Chamake , Amrt Boond Jhare Re .
Bin Bastee Ka , Desh Ajab Hai , Nahin Vahaan Kaal Phare Re .
Kahen Kabeer Suno Bhaee Saadho , Sheetal Ang Karo Re .
भजन - गुरुजी के चरणों में , रहना भाई चेला थारे ,
दुणी - दुणी ( नित कई ) वस्तु मिले रे । म्हारा साधु भाई , शून्य में सुमरणा सूरत से मिले रे ॥ सब घट नाम साधो एक है रे जी ।।
1. दई रणुकार थारी , नाभि से उठता , दई - दई डंको चढ़े रे ।
नाभि पंथ साधो घणो रे दुहेलो , सब रंग पकड़ फिरे रे ॥
2. नाभिपंथ साधो , उल्टा घुमाले तो , मेरुदंड खुले रे ।
मेरुदंड साधो पिछम का मारग , सीधी बाट धरो रे ॥
(मेरुदंड साधो चमके रे माणक , बुद्धि पार चढ़ो रे )
3. बिना डंका से वां , झालर बाजे बाजे
झिणी -झिणी आवाज़ सुनो रे ।
घड़ियाल शंख बाँसुरी वीणा , अनहद नाद घुरे रे ॥
4. दिन नहीं रैण , दिवस नहीं रजनी , नहीं वहाँ सूरज तपे रे ।
गाजे न घोरे बिजली न चमके , अमृत बूंद झरे रे ॥
5. बिन बस्ती का , देश अजब है , नहीं वहाँ काल फरे रे ।
कहें कबीर सुनो भाई साधो , शीतल अंग करो रे । ॥
दुणी - दुणी ( नित कई ) वस्तु मिले रे । म्हारा साधु भाई , शून्य में सुमरणा सूरत से मिले रे ॥ सब घट नाम साधो एक है रे जी ।।
1. दई रणुकार थारी , नाभि से उठता , दई - दई डंको चढ़े रे ।
नाभि पंथ साधो घणो रे दुहेलो , सब रंग पकड़ फिरे रे ॥
2. नाभिपंथ साधो , उल्टा घुमाले तो , मेरुदंड खुले रे ।
मेरुदंड साधो पिछम का मारग , सीधी बाट धरो रे ॥
(मेरुदंड साधो चमके रे माणक , बुद्धि पार चढ़ो रे )
3. बिना डंका से वां , झालर बाजे बाजे
झिणी -झिणी आवाज़ सुनो रे ।
घड़ियाल शंख बाँसुरी वीणा , अनहद नाद घुरे रे ॥
4. दिन नहीं रैण , दिवस नहीं रजनी , नहीं वहाँ सूरज तपे रे ।
गाजे न घोरे बिजली न चमके , अमृत बूंद झरे रे ॥
5. बिन बस्ती का , देश अजब है , नहीं वहाँ काल फरे रे ।
कहें कबीर सुनो भाई साधो , शीतल अंग करो रे । ॥
Bhajan by : Sant Kabir
Singer : Padmashri Prahlad Singh Tipanya
Video : Padmashri Prahlad Singh Tipanya
Kabir Bhajan, Prahlaad Singh Tipaniya Kabir Bhajan, Kabir Bhajan by Prahlaad Singh Tipaniya, Kabir Bhajan Lyrics in Hindi
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
Singer : Padmashri Prahlad Singh Tipanya
Video : Padmashri Prahlad Singh Tipanya
Kabir Bhajan, Prahlaad Singh Tipaniya Kabir Bhajan, Kabir Bhajan by Prahlaad Singh Tipaniya, Kabir Bhajan Lyrics in Hindi
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
- कबीर की साखी हिंदी में Kabir Sakhi Hindi Meaning
- कबीर के दोहे हिंदी में दोहावली Kabir Ke Dohe Hindi Me Dohawali
- कबीर की साखी हिंदी में Kabir Sakhi Hindi Meaning
- कबीर की साखी हिंदी में Kabir साखी in Hindi साखी | साखी संग्रह | कबीर दास की साखी हिन्दी |
- कबीर के दोहे हिंदी में दोहावली Kabir Ke Dohe Hindi Me Dohawali
- कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi कबीर दास के दोहे हिन्दी