रहम नज़र करो अब मोरे साईं भजन
रहम नज़र करो अब मोरे साईं भजन
रहम नज़र करो अब मोरे साईं,
तुम बिन नहीं मुझे माँ, बाप, भाई।
मैं अंधा हूँ, बंदा तुम्हारा,
मैं न जानूँ अल्लाह-इलाही।
साईंनाथ हो मेरे साथ,
अगर समझो मेरे जज़्बात।
रहम नज़र करो अब मोरे साईं।।
दुख के बादल गिर-गिर आए,
बरसे मोरे आँगना।
तेरे जैसे को सिखाए,
भक्ति का मुझे ढंग न।
साईं, ज़माना मैंने गँवाया,
साथी आख़िर मिला कोई ना ही।
रहम नज़र करो अब मोरे साईं।।
साईं तू साँसों का संचालक,
साईं तू मेरा पालक।
भूल-चूक तू मेरी भूलना,
साईं, मैं तेरा बालक।
अपने मुरशिद का दास घणू है,
अपनी मजीद है, जादू घणू है।
रहम नज़र करो अब मोरे साईं।।
घणू की रचना में मैंने,
अपने भाव मिलाए।
दिल के कुछ अरमान,
साईं, तुझ तक हैं पहुँचाए।
जैसे बने हो दास घणू के,
बनो संजीव के हम रही।
रहम नज़र करो अब मोरे साईं।।
तुम बिन नहीं मुझे माँ, बाप, भाई।
मैं अंधा हूँ, बंदा तुम्हारा,
मैं न जानूँ अल्लाह-इलाही।
साईंनाथ हो मेरे साथ,
अगर समझो मेरे जज़्बात।
रहम नज़र करो अब मोरे साईं।।
दुख के बादल गिर-गिर आए,
बरसे मोरे आँगना।
तेरे जैसे को सिखाए,
भक्ति का मुझे ढंग न।
साईं, ज़माना मैंने गँवाया,
साथी आख़िर मिला कोई ना ही।
रहम नज़र करो अब मोरे साईं।।
साईं तू साँसों का संचालक,
साईं तू मेरा पालक।
भूल-चूक तू मेरी भूलना,
साईं, मैं तेरा बालक।
अपने मुरशिद का दास घणू है,
अपनी मजीद है, जादू घणू है।
रहम नज़र करो अब मोरे साईं।।
घणू की रचना में मैंने,
अपने भाव मिलाए।
दिल के कुछ अरमान,
साईं, तुझ तक हैं पहुँचाए।
जैसे बने हो दास घणू के,
बनो संजीव के हम रही।
रहम नज़र करो अब मोरे साईं।।
रहम नज़र करो I Reham Nazar Karo I SANJJIO KOHLI I Sai Bhajan I Full Audio Song
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Sai Bhajan: Reham Nazar Karo
Singer: Sanjjio Kohli
Music Director: Sanjjio Kohli
Lyricist: Sanjjio Kohli
Album: Reham Nazar Karo
Singer: Sanjjio Kohli
Music Director: Sanjjio Kohli
Lyricist: Sanjjio Kohli
Album: Reham Nazar Karo
साईं की कृपा और उनकी रहम नजर की पुकार भक्त के हृदय को एक ऐसी गहरी भावना से भर देती है, जो उसे प्रभु की शरण में पूर्ण समर्पण की ओर ले जाती है। यह भाव उस अटल विश्वास को दर्शाता है कि साईं ही भक्त के माँ, बाप, भाई और सच्चे साथी हैं, जिनके बिना वह अंधा और लाचार है। साईं का प्रेम और उनकी कृपा भक्त को यह विश्वास दिलाती है कि वह उसके हर जज्बात को समझते हैं और उसकी हर पुकार को सुनते हैं।
साईं, जो साँसों के संचालक और पालक हैं, भक्त की हर भूल-चूक को माफ कर उसे अपने बालक के रूप में स्वीकार करते हैं। यह भाव उस गहरे विश्वास को व्यक्त करता है कि साईं का दास बनकर और उनकी महिमा में डूबकर भक्त अपने अरमानों को प्रभु तक पहुँचाता है।
साईं, जो साँसों के संचालक और पालक हैं, भक्त की हर भूल-चूक को माफ कर उसे अपने बालक के रूप में स्वीकार करते हैं। यह भाव उस गहरे विश्वास को व्यक्त करता है कि साईं का दास बनकर और उनकी महिमा में डूबकर भक्त अपने अरमानों को प्रभु तक पहुँचाता है।
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Author - Saroj Jangir
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