जबहूँ मार्या खैंचि करि मीनिंग
जबहूँ मार्या खैंचि करि, तब मैं पाई जाँणि।
लांगी चोट मरम्म की, गई कलेजा जाँणि॥
Jabahu Mariya Khenchi kari, Tab Main Paai Jaani,
Laagi Chot Maramm Ki, Gai Kaleja Jaani.
Kabir Doha Word Meaning कबीर दोहा शब्दार्थ
जबहूँ - जब।
मार्या - मारा।
खैंचि करि- खींच कर।
तब मैं पाई जाँणि-तब मैंने जाना।
लांगी चोट- चोट लगी।
मरम्म की- मर्म की, गहरी।
गई कलेजा -कलेजा।
( छानी-छेककर, आर पार) जाँणि-जाना।
जब सतगुरु ने शब्द बाण को खींचकर साधक को मारा तभी उसे समझ में आया की ज्ञान क्या होता है। गुरु के द्वारा यह चोट मेरे (साधक) के मर्म तक चोट कर गई है। सतगुरु की यह चोट मर्मभेदी रही और हृदय के आर पार हो गई। कबीर साहेब की इस साखी में विरह की तीव्र वेदना को प्रदर्शित किया गया है। विरोधाभास और अतिश्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है।
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