साकट ते संत होत है जो गुरु मिले सुजान हिंदी मीनिंग Saakat Te Sant Hot Hain Hindi Meaning

साकट ते संत होत है जो गुरु मिले सुजान हिंदी मीनिंग Sankat Te Sant Hot Hain, Jo Guru Mile Sujan Hindi Meaning कबीर दोहे व्याख्या हिंदी में

 
साकट ते संत होत है जो गुरु मिले सुजान।
राम-नाम निज मंत्र दे, छुड़वै चारों खान।।
 
Saakat Te Sant Hot Hai Jo Guru Mile Sujaan.
Raam-naam Nij Mantr De, Chhudavai Chaaron Khaan. 
 
साकट ते संत होत है जो गुरु मिले सुजान हिंदी मीनिंग Saakat Te Sant Hot Hain Hindi Meaning


साकट : बुद्धिहीन व्यक्ति / नुगरा व्यक्ति 
चारों खान : समस्त दुःख और संकट
दोहे का हिंदी मीनिंग: यदि किसी व्यक्ति (नुगरे व्यक्ति को जो ईश्वर को नहीं मानता है ) सच्चा गुरु मिल जाए तो वह चारों खानी से व्यक्ति को छुड़ा सकता है। अच्छे और ज्ञानी गुरु की संगत से बुरा व्यक्ति भी नेक राह पर चलकर सुजान बन सकता है। क्योंकि गुरु उसे 'राम नाम' नाम का मन्त्र देता है जिससे वह चारों खानी (समस्त दुखों और संकटों ) से मुक्ति मिल जाती है। गुरु की पहचान के विषय में कबीर साहेब ने विस्तृत रूप से वर्णन किया है।
 
गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥  
Guru So Gyaan Ju Leejiye, Sees Deejaye Daan.
Bahutak Bhondoo Bahi Gaye, Sakhi Jeev Abhimaan. 

दोहे का हिंदी मीनिंग:  यदि गुरु से ज्ञान की प्राप्ति हो रही हो तो शीश का दान करके भी ज्ञान की प्राप्ति की जानी चाहिए। बहुत से भोंदू (मुर्ख व्यक्ति ) अपने अभिमान (तन, धन और रुतबे का ) के कारन से इस संसार से बह गए हैं (संसार से चले गए हैं ) लेकिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुयी है। 
 
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नसाय ॥
Guru Kee Aagya Aavai, Guru Kee Aagya Jaay.
Kahain Kabeer So Sant Hain, Aavaagaman Nasaay .
दोहे का हिंदी मीनिंग:  जीवन के सभी कार्य गुरु की आज्ञा के अनुसार ही करने चाहिए, गुरु की आज्ञा हो तो आये और गुरु की आज्ञा हो तो जाए। गुरु की आज्ञा का अनुसरण करने पर वह जीव को आवागमन के फेर (जन्म और मरण ) से मुक्त कर सकता है। 
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ 
 
Guru Paaras Ko Antaro, Jaanat Hain Sab Sant.
Vah Loha Kanchan Kare, Ye Kari Laye Mahant. 
 
दोहे का हिंदी मीनिंग:  गुरु और पारस पत्थर में बहुत ही अंतर् होता है। जैसे पारस पत्थर अपने संपर्क में आने  वाले पत्थर को सोने में बदल देता है, वैसे गुरु अपने संपर्क में आने वाले शिष्य को अपने समान कर लेता है। यह दोनों में मूल अंतर् होता है। अतः गुरु तो पारस पत्थर से भी श्रेष्ठ होता है।

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