जागो पियारी अब का सोवै भजन लिरिक्स Jaago Piyari Aub Ka Sove Meaning Lyrics

जागो पियारी अब का सोवै भजन लिरिक्स Jaago Piyari Aub Ka Sove Meaning Lyrics

 
जागो पियारी अब का सोवै भजन लिरिक्स Jaago Piyari Aub Ka Sove Meaning Lyrics

जागो पियारी अब का सोवै,
रैन गई दिन काहे को खोवै
जागों पियारी अब का सोवे,
रैन गई दिन काहे को खोवै।

जिन जागा तिन मानिक पाया,
तैं बौरी सब सोय गँवाया,
पिय तेरे चतुर तू मूरख नारी,
कबहुँ ना पिय की सेज सँवारी,
जागों पियारी अब का सोवे,
रैन गई दिन काहे को खोवै।

तैं बौरी बौरापन कीन्हो,
भर जोबन पिय अपन ना चीन्हो,
जाग देख पिय सेज न तेरे,
तोहि छाँड़ी उठि गए सबेरे,
जागों पियारी अब का सोवे,
रैन गई दिन काहे को खोवै।

कहैं कबीर सोई धुन जागै,
शब्द बान उर अंतर लागै,
जागों पियारी अब का सोवे,
रैन गई दिन काहे को खोवै।
 

जागो पियारी अब का सोवै भजन Jaago Piyari Aub Ka Sove Rajendra das ji Maharaj

 
Jaago Piyaari Ab Ka Sovai,
Rain Gai Din Kaahe Ko Khovai
Jaagon Piyaari Ab Ka Sove,
Rain Gai Din Kaahe Ko Khovai.

Jin Jaaga Tin Maanik Paaya,
Tain Bauri Sab Soy Ganvaaya,
Piy Tere Chatur Tu Murakh Naari,
Kabahun Na Piy Ki Sej Sanvaari,
Jaagon Piyaari Ab Ka Sove,
Rain Gai Din Kaahe Ko Khovai.

Tain Bauri Bauraapan Kinho,
Bhar Joban Piy Apan Na Chinho,
Jaag Dekh Piy Sej Na Tere,
Tohi Chhaandi Uthi Gae Sabere,
Jaagon Piyaari Ab Ka Sove,
Rain Gai Din Kaahe Ko Khovai.

Kahain Kabir Soi Dhun Jaagai,
Shabd Baan Ur Antar Laagai,
Jaagon Piyaari Ab Ka Sove,
Rain Gai Din Kaahe Ko Khovai.

जागो पियारी अब का सोवै भजन Jaago Piyari Aub Ka Sove Meaning

जागो पियारी अब का सोवै रैन गई दिन काहे को खोवै : आत्मा को पियारी कहा गया है और सन्देश है की जागो प्यारी अब तुम क्यों सो रही हो। सोने से आशय अज्ञान की निंद्रा से है। जीवात्मा माया के भरम जाल में फँसकर जीवन के उद्देश्य को विस्मृत कर देती है और अपने स्वामी को भूल जाती है। इसलिए अब दिन उदय हो चूका है। तुम अब क्यों सो रही हो।
जिन जागा तिन मानिक पाया : जो जागे हैं उन्होंने मानिक (माणिक,रत्न -ईश्वर रूपी माणिक) प्राप्त कर लिया है।
तैं बौरी सब सोय गँवाया : तुम तो पागल (बौरी) हो सारा समय तो तुमने सोकर गँवा दिया है।
पिय तेरे चतुर तू मूरख नारी : तुम्हारे प्रिय (स्वामी, पीव) चतुर हैं और तुम (आत्मा) मुर्ख हो।
कबहुँ ना पिय की सेज सँवारी : तुमने कभी भी अपने ईश्वर /स्वामी की सेज नहीं सँवारी। भाव है की तुमने कभी भी अपने स्वामी के नाम का सुमिरन नहीं किया, भक्ति नहीं की।
तैं बौरी बौरापन कीन्हो : तुम पागल हो और तुमने पागलपन किया है।
भर जोबन पिय अपन ना चीन्हो : भरे जोबन/यौवन में भी तुमने अपने स्वामी को चिन्हित नहीं किया, पहचाना नहीं।
जाग देख पिय सेज न तेरे : जाग और देखो तुम्हारे पिया तो तुम्हारी सेज पर नहीं हैं।
तोहि छाँड़ी उठि गए सबेरे : तुमको छोड़ कर सवेरे ही उठ खड़े हो गए हैं।
कहैं कबीर सोई धुन जागै : कबीर साहे कहते हैं की जो जाग्रत हैं।
शब्द बान उर अंतर लागै : उनके अंदर शब्द बाण हृदय तक वार करता है। शब्द से आशय ज्ञान की वाणी से है।

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