कबीर मन मधुकर भया हिंदी मीनिंग

कबीर मन मधुकर भया मीनिंग

 
कबीर मन मधुकर भया, रह्या निरंतर बास। कवल ज्यू फूल्या जलह बिन, को देखै निज दास॥

कबीर मन मधुकर भया, रह्या निरंतर बास।
कवल ज्यू फूल्या जलह बिन, को देखै निज दास॥

Kabir Man Madhukar Bhaya, Rahya Nirantar Baas,
Kaval Je Phulya Jalah Bin, ko Dekhi Nij Daas. 
 
कबीर मन मधुकर भया-कबीर साहेब कहते हैं की साधक का हृदय मधुकर, भँवरा बन गया है.
रह्या निरंतर बास-निरतंर रूप से ब्रह्म कमल में वास कर रहा है.
कवल ज्यू फूल्या जलह बिन- यह कमल जल के बिना ही पल्लवित हो रहा है.
को देखै निज दास-इसे कोई हरी भक्त ही देख सकता है.

कबीर साखी/दोहा हिंदी मीनिंग

कबीर साहेब कहते हैं की मन भँवरा बन चूका है और नित्य ही ब्रह्म कमल में वास कर रहा है. यह कमल बिना जल के ही फूल रहा है जिसे केवल साधक ही देख पा रहा है. जीवात्मा अब सपूर्ण में रम करके रह गई है. भाव है की साधक विभिन्न क्रियाओं में लगा रहता है, सांसारिक क्रियाओं में उसे आनंद की प्राप्ति होती है. 
 
जब एक बार उसे पूर्ण ब्रह्म के आनंद की प्राप्ति होने लगती है तो वह वहीँ का बनकर रह जाता है.  इधर उधर अब वह नहीं दौलता है. ब्रह्म सानिध्य को सर्वोच्च सुख माना है, एक बार जब साधक उसे प्राप्त कर लेता है तो पुनः किसी सांसारिक सुख की लालसा उसे शेष नहीं रहती है.
 
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