हदे छाड़ि बेहदि गया मीनिंग
हदे छाड़ि बेहदि गया, हुवा निरंतर बास।
कवल ज फूल्या फूल बिन, को निरषै निज दास॥
Hade Chhadi Behadi Gaya, Hua Nirantar Baas,
Kaval J Phulya Phul Bin, Ko Nirakhe Nij Daas.
कबीर साखी/दोहा हिंदी शब्दार्थ
- हदे छाड़ि- हद/सीमा को छोड़कर.
- बेहदि गया-सीमा से परे हो गया है.
- हुवा निरंतर बास-वह पूर्ण ब्रह्म के पास स्थाई रूप से रहने लगा है.
- कवल ज फूल्या फूल बिन- बिना मृणाल के ही कमल का फूल पल्लवित हो रहा है, बिना माया का भोग करके भक्त प्रसन्न रह रहा है.
- को निरषै निज दास-इसे भक्त/दास ही देख सकता है.
कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग
साधक समस्त सीमाओं को छोडकर बेहद से मिल चूका है. अब उसने समस्त सांसारिक सीमाओं को पार कर लिया है और वहीँ पर स्थाई रूप से रहने लगा है. साधक द्रश्य और अद्रश्य की सीमाओं से मुक्त हो चूका है.
अब वह पूर्ण ब्रह्म के पास स्थाई रूप से रह रहा है. वहां पर निर्गुण और निराकार कमल खिला हुआ है. इस रहस्मयी स्थिति को कोई दास ही देख सकता है.
भाव है की साधक सांसारिक सुखों को छोड़ चुका है फिर भी वह प्रसन्न चित्त मुद्रा में है. वह बिना से जुड़े हुए भी आनंदित है. कमल बगैर मृणाल के फूलने से आशय है की साधक बगैर सांसारिक विषय भोग के अतिरिक्त भी प्रसन्न रहता है.
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