कलयुग में इक बार कन्हैया गौमाता भजन

कलयुग में इक बार कन्हैया गौमाता भजन

कलयुग में इक बार कन्हैया गौमाता भजन

सत्य धर्म का नाश हो रहा
जार-जार रोती है धरा
कलयुग का आतंक भयानक
आके मोहन देख ज़रा
आके मोहन देख ज़रा

कलयुग में इक बार कन्हैया
ग्वाले बनकर आओ रे
आज पुकार करे तेरी गैया
आके कंठ लगाओ रे
कलयुग में इक बार कन्हैया
ग्वाले बनकर आओ रे

जिनको मैंने दूध पिलाया
वो ही मुझे सताते हैं
चीर-फाड़ कर मेरे बेटे
मेरा ही मांस बिकाते हैं
अपनों के अभिशाप से मुझको
आके आज बचाओ रे
कलयुग में इक बार कन्हैया
ग्वाले बनकर आओ रे

चाबुक से जब पिटी जाऊँ
सहन नहीं कर पाती मैं
उबला पानी तन पे फेंके
हाय-हाय चिल्लाती मैं
बिना काल मैं तिल-तिल मरती
करुणा ज़रा दिखाओ रे
कलयुग में इक बार कन्हैया
ग्वाले बनकर आओ रे

काहे हमको मूक बनाया
घुट-घुट कर यूँ मरने को
उस पर हाथ दिए न तूने
अपनी रक्षा करने को
भटक गई संतान हमारी
रास्ता आन दिखाओ रे
कलयुग में इक बार कन्हैया
ग्वाले बनकर आओ रे

एक तरफ तो बछड़े मेरे
अन्न धन को उपजाते हैं
उसी अन्न को खाने वाले
मेरा वध करवाते हैं
हर्ष जरा तुम माँ के वध पे
आके रोक लगाओ रे
कलयुग में इक बार कन्हैया
ग्वाले बनकर आओ रे

कलयुग में इक बार कन्हैया
ग्वाले बनकर आओ रे
आज पुकार करे तेरी गैया
आके कंठ लगाओ रे
कलयुग में इक बार कन्हैया
ग्वाले बनकर आओ रे



कलयुग में एक बार कन्हैया _ Kalyug Me Ek Bar Kanhaiya _ New Krishna Song 2016 _ Raju mehra

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गौमाता पर चाबुक एवं अन्य हिंसा होती है, उन्हें पानी तक से सताया जाता है और वे तिल-तिल मरती हैं, परंतु अपनी रक्षा नहीं कर सकतीं। वे भगवान से करुणा की आस लगाती हैं—'हम मूक हैं, हमें अपने हाथों से बचाओ और हमारी संतान को सही मार्ग दिखाओ।' एक ओर बछड़े जिससे अन्न और धन की वृद्धि होती है, वही अन्न खाने वाले उसका वध करने को तैयार रहते हैं। इस रूपक के माध्यम से आज के समाज में बढ़ती निष्ठुरता, स्वार्थ भरी प्रवृत्ति और धर्म के प्रति उदासीनता का चित्रण है।

कलयुग में जब धर्म और संवेदना संकट में है, तब श्रीकृष्ण जैसे परम दयालु, स्नेही और रक्षक का पुनः अवतरण ही सच्ची रक्षा व कल्याण का मार्ग है। यह समस्त मानवता और विशेष रूप से गौमाता की पुकार और आह्वान है कि प्रभु लौट आओ, और फिर ग्वाले बनकर अपनी गइयां को गले लगाओ, ताकि प्रेम, सुरक्षा और धर्म फिर से स्थापित हो सके. धरती की करुण पुकार को दर्शाता है, जो कलयुग के आतंक और अधर्म से त्रस्त होकर कृष्ण को ग्वाले के रूप में पुनः आने की प्रार्थना करती है (कलयुग में धर्म का पतन)। जब-जब धर्म का नाश होता है, ईश्वर किसी न किसी रूप में आते हैं। यहाँ 'ग्वाले' का रूप धारण करने की प्रार्थना इसलिए है, क्योंकि ग्वाले गायों के पालक और रक्षक होते हैं। 
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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