उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी भजन लिरिक्स Ud Jya Nind Bhanwar Sailani Lyrics

उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी भजन Ud Jya Nind Bhanwar Sailani Nath Ji Bhajan

 
उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी भजन Ud Jya Nind Bhanwar Sailani Nath Ji Bhajan

उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी,
थोड़े से जीण के खातिर कांयी सौवे।

गहरा गहरा होद भरया घट भीतर ,
नाडुली में कपड़ा सूरता कांयी धोवे,
उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी।

हीरा री खान भरी घट भीतर,
कर्म कांकरिया सूरता कांयी टोवे,
उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी।

गहरा - गहरा दीप चसे घट भीतर,
बातुलि में दिवलो सूरता कांयी जोवे,
उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी।

कहत कमाली कबीरा की बाली,
मोतीड़ा री माला कबीरो पोवे,
उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी,
उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी ,
अब थोड़े से जीण रे खातिर कांयी सौवे,
उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी। 

उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी by Ratinath ji Maharaj

Ud Jya Neend Bhanvar Sailaanee,
Thode Se Jeen Ke Khaatir Kaanyee Sauve.

Gahara Gahara Hod Bharaya Ghat Bheetar ,
Naadulee Mein Kapada Soorata Kaanyee Dhove,
Ud Jya Neend Bhanvar Sailaanee.

Heera Ree Khaan Bharee Ghat Bheetar,
Karm Kaankariya Soorata Kaanyee Tove,
Ud Jya Neend Bhanvar Sailaanee.

Gahara - Gahara Deep Chase Ghat Bheetar,
Baatuli Mein Divalo Soorata Kaanyee Jove,
Ud Jya Neend Bhanvar Sailaanee.

Kahat Kamaalee Kabeera Kee Baalee,
Moteeda Ree Maala Kabeero Pove,
Ud Jya Neend Bhanvar Sailaanee,
Ud Jya Neend Bhanvar Sailaanee ,
Ab Thode Se Jeen Re Khaatir Kaanyee Sauve,
Ud Jya Neend Bhanvar Sailaanee.

भजन मीनिंग Ud Jya Nind Bhanwar Sailaani Bhajan Meaning Ratti Nath Ji Bhajan. 

उड़ ज्या नींद भंवर सैलानी : थोड़े से जीण के खातिर कांयी सौवे : इस आत्मा को भंवर सैलानी कहा गया है जो जहाँ वहां पर विचरण करता रहता है। यह एक स्थान पर टिक कर नहीं रहता है। इसे नींद से जगाने के लिए सन्देश है की भंवरा तुम उड़ जाओ/जग जाओ. थोड़े से समय की खातिर तुम क्यों अज्ञान की नींद में सो रहे हो। 

गहरा गहरा होद भरया घट भीतर नाडुली में कपड़ा सूरता कांयी धोवे : तुम्हारे हृदय के भीतर तो गहरे गहरे हौद (पानी का बड़ा तालाब) भरे पड़े हैं। तुम छोटे नाली रूपी पानी के संचय में कपडे क्यों धो रहे हो। विषय विकारों और सांसारिक मायाजनित कार्य व्यवहार को नाडुली कहा गया है। 

हीरा री खान भरी घट भीतर, कर्म कांकरिया सूरता कांयी टोवे : तुम्हारे (सुरता) हृदय के भीतर तो हीरों की खान है। मायाजनित व्यवहार तो कंकर/कांकरिया हैं इनकी राह क्यों देख रहे हो। 

गहरा गहरा दीप चसे घट भीतर : तुम्हारे आत्मा में तो बहुत विशाल/गहरे दीपक जल रहे हैं। 

बातुलि में दिवलो सूरता कांयी जोवे : छोटे दिए की बाती के प्रकाश को क्या देख रहे हो। 

कहत कमाल कबीरा की बाणी : कबीर अजब वाणी देते हैं। 

मोतीड़ा री माला कबीरो पोवे : हीरे मोतियों की माला कबीर पिरो रहे हैं। 

अब थोड़े से जीण रे खातिर कांयी सौवे : थोड़े से दिनों के लिए तुम क्यों सो रहे हो। 
 
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