
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग - आत्मा अपने प्रिय से गोद भरकर, पूर्ण रूप से आलिंगन करती है लेकिन फिर भी मन में धैर्य नहीं है. उसकी मिलने की इच्छा पूर्ण नहीं हुई है. प्रगाढ़ मिलन के उपरान्त भी साधक के मन में धैर्य नहीं हुआ है, तृप्ति नहीं मिली है. जब तक साधक और ईश्वर के मध्य द्वेत का भाव है तब तक पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं होती है. इश्वर की प्राप्ति के लिए आवश्यक है की साधक अपने अहम् को नष्ट कर ले और पूर्ण निष्ठां से, हृदय से हरी के नाम का सुमिरण करे.
अन्य कई स्थानों पर साहेब ने वाणी दी है की द्वेत भाव को समूल नष्ट करने पर ही भक्ति संभव है क्योंकि प्रेम की गली अति संकड़ी है जिसमे अहम् और गोविन्द दोनों एक साथ समा नहीं सकते हैं. उक्त साखी में अनुप्रास अलंकार की व्यंजना हुई है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |