सचु पाया सुख ऊपनाँ अरु दिल दरिया पूरि हिंदी मीनिंग Sachu Paya Sukh Upana Hindi Meaning.
सचु पाया सुख ऊपनाँ, अरु दिल दरिया पूरि।सकल पाप सहजै गये, जब साँई मिल्या हजूरि॥
Sachu Paaya Sukh Upana, Aru Dil Dariya Puri,
Sakal Paap Sahaje Gaye, Jab Saai Milya Hujuri.
कबीर दोहा/साखी हिंदी शब्दार्थ / Kabir Doha Hindi Word Meaning.
सचु पाया – शान्ति और सुख की प्राप्ति/सत्य की प्राप्ति.
सुख ऊपनाँ : सुख उत्पन्न हुआ.
अरु : और .
दरिया पूरि : सागर से परिपूर्ण.
सकल पाप : सम्पूर्ण पाप.
सहजै गये : सहज ही नष्ट हो गए हैं.
जब साँई : जब इश्वर.
मिल्या : मिला है, प्राप्त हुआ है.
हजूरि : स्वामी, इश्वर.
सुख ऊपनाँ : सुख उत्पन्न हुआ.
अरु : और .
दरिया पूरि : सागर से परिपूर्ण.
सकल पाप : सम्पूर्ण पाप.
सहजै गये : सहज ही नष्ट हो गए हैं.
जब साँई : जब इश्वर.
मिल्या : मिला है, प्राप्त हुआ है.
हजूरि : स्वामी, इश्वर.
कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग / Kabir Doha Hindi Meaning.
कबीर साहेब ने इस साखी/दोहा में भाव व्यक्त किए हैं की जब इश्वर की प्राप्ति हुई तो अत्यंत ही सुख उत्पन्न होने लगा. इस सुख की प्राप्ति से सम्पूर्ण हृदय ईश्वरीय प्रेम से ओतप्रोत हो गया है. सम्पूर्ण पापों का सहज ही नाश हो गया है. इश्वर की प्राप्ति से सहज ही सारे पाप और उनके परिणाम नष्ट हो गए हैं. दुसरे अर्थों में पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होने के उपरान्त ही सत्य का बोध होता है और स्वतः ही समस्त पाप नष्ट हो गए हैं. प्रस्तुत साखी में रूपक और अनुप्रास अलंकार की सुन्दर व्यंजना हुई है.
उल्लेखनीय है की समस्त सांसारिक, भौतिक सुख मायाजनित सुख क्षणिक होते हैं. वास्तव में ये सुख होते ही नहीं है, दुःख ही होते हैं. हम इन्हें सुख समझ कर झूठ के अधीन हो जाते हैं.
मायाजनित समस्त कार्य एंव व्यवहार दुखों के जनक होते हैं. इनमे पड़कर जीवात्मा स्वंय को इश्वर से दूर करती चली जाती है. सच्ची ख़ुशी तो इश्वर के प्रेम में है जो सहज है, उसे प्राप्त करने के लिए किसी बाह्य जतन की कोई आवश्यकता नहीं होती है. साहेब के अनुसार जब इंगला और पिंगला आपस में मिल जाती हैं तो स्वतः ही हर्ष का अनुभव होने लगता है जो क्षणिक नहीं बल्कि हर समय बने रहने वाला होता है.
उल्लेखनीय है की समस्त सांसारिक, भौतिक सुख मायाजनित सुख क्षणिक होते हैं. वास्तव में ये सुख होते ही नहीं है, दुःख ही होते हैं. हम इन्हें सुख समझ कर झूठ के अधीन हो जाते हैं.
मायाजनित समस्त कार्य एंव व्यवहार दुखों के जनक होते हैं. इनमे पड़कर जीवात्मा स्वंय को इश्वर से दूर करती चली जाती है. सच्ची ख़ुशी तो इश्वर के प्रेम में है जो सहज है, उसे प्राप्त करने के लिए किसी बाह्य जतन की कोई आवश्यकता नहीं होती है. साहेब के अनुसार जब इंगला और पिंगला आपस में मिल जाती हैं तो स्वतः ही हर्ष का अनुभव होने लगता है जो क्षणिक नहीं बल्कि हर समय बने रहने वाला होता है.