नींव बिहुणां देहुरा देह बिहूँणाँ देव Neenv Bihuna Dehura Deh Meaning
नींव बिहुणां देहुरा, देह बिहूँणाँ देव।
कबीर तहाँ बिलंबिया करे अलख की सेव॥
कबीर तहाँ बिलंबिया करे अलख की सेव॥
Neev Bihuna Dehura, Deh Bihuna Dev,
Kabir Taha Bilambiya, Kare Alakh Ki Sev.
कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग
नींव- आधार, जैसे मकान की नींव।
बिहुणां - रहित, के बिना।
देहुरा- देवालय, मंदिर, देवस्थान।
देह बिहूँणाँ - देह के बिना, देह रहित।
अलख की - पूर्ण परम ब्रह्म की।
सेव- सेवा।
बिहुणां - रहित, के बिना।
देहुरा- देवालय, मंदिर, देवस्थान।
देह बिहूँणाँ - देह के बिना, देह रहित।
अलख की - पूर्ण परम ब्रह्म की।
सेव- सेवा।
कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग- निर्गुण पूर्ण परम ब्रह्म को एक ऐसा देव स्थान जिसकी कोई भौतिक नींव नहीं है। जहाँ पर बिना किसी आधार के ब्रह्म का स्थान/मंदिर है वहां पर सहस्त्रार चक्र में स्थापित है। ऐसे देव स्थान पर देह विहीन देव वास करता है। उसके कोई हाथ पाँव नहीं है। एक स्थान पर कबीर साहेब ने कहा है की -
धरती आकाश गुफ़ा के अंदर,
पुरुष एक वहाँ रहता है रे भाई,
हाथ ना पाँव रूप नहीं रेखा,
नंगा होकर फिरता,
कर गुजरान ग़रीबी में, साधो भाई,
मगरूरी क्यों करता,
भाव है की वह देव तो है लेकिन उसने देह धारण नहीं कर रखी है, वह निराकार है। कबीर साहेब वहीँ पर अलख की साधना में लीन हैं। ऐसे शून्य स्थान पर कबीर साहेब की वृति रम गई है। साधक निरंतर रूप से अलख की सेवा, हजूरी में मस्त है। इस दोहे में विभावना अलंकार की सफल व्यंजना हुई है।
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पुरुष एक वहाँ रहता है रे भाई,
हाथ ना पाँव रूप नहीं रेखा,
नंगा होकर फिरता,
कर गुजरान ग़रीबी में, साधो भाई,
मगरूरी क्यों करता,
भाव है की वह देव तो है लेकिन उसने देह धारण नहीं कर रखी है, वह निराकार है। कबीर साहेब वहीँ पर अलख की साधना में लीन हैं। ऐसे शून्य स्थान पर कबीर साहेब की वृति रम गई है। साधक निरंतर रूप से अलख की सेवा, हजूरी में मस्त है। इस दोहे में विभावना अलंकार की सफल व्यंजना हुई है।
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Author - Saroj Jangir
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