मानसरोवर सुभर जल हंसा केलि कराहिं हिंदी मीनिंग Mansarovar Subhar Jal Hindi Meaning Kabir Ke Dohe
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।मुकताहल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं॥
Mansarovar Sughar Jal, Hansa Keli Karahi,
Muktahal Mukata Chuge, Aub Udi Anant Na Jahi.
कबीर दोहा/साखी हिंदी शब्दार्थ Kabir Sakhi/Doha Hindi Word Meaning (Shabdaarth)
सुभर जल : परिपूर्ण, लबालब, खूब अच्छे से भरा हुआ।
हंसा : जीवात्मा, आत्मा ।
केलि : खेली, क्रीड़ा करना।
कराहिं : करता है।
मुकताहल : मुक्ति का फल।
मुकता : मुक्त भाव से, स्वतंत्र होकर।
चुगैं : चुगता है, खाता है, ग्रहण करता है।
अब उड़ि : अब उड़कर।
अनत : अन्य किसी स्थान पर।
न जाहिं : नहीं जाता है।
कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग Kabir Sakhi/Doha Hindi Meaning.
Mansarovar Sughar Jal, Hansa Keli Karahi,
Muktahal Mukata Chuge, Aub Udi Anant Na Jahi.
हंसा : जीवात्मा, आत्मा ।
केलि : खेली, क्रीड़ा करना।
कराहिं : करता है।
मुकताहल : मुक्ति का फल।
मुकता : मुक्त भाव से, स्वतंत्र होकर।
चुगैं : चुगता है, खाता है, ग्रहण करता है।
अब उड़ि : अब उड़कर।
अनत : अन्य किसी स्थान पर।
न जाहिं : नहीं जाता है।
कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग Kabir Sakhi/Doha Hindi Meaning.
Mansarovar Sughar Jal, Hansa Keli Karahi,
Muktahal Mukata Chuge, Aub Udi Anant Na Jahi.
कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग Kabir Sakhi/Doha Hindi Meaning.
जीवात्मा को हंसा कहकर साहेब की वाणी है की वह पूर्ण ब्रह्म के आनंद को प्राप्त कर रही है। वह हृदय रूपी मानसरोवर (हिमालय पर एक पवित्र झील) में अमृत रस का पान कर रही है, अमृत रस रूपी मोतियों को चुग रही है। जीवात्मा रूपी हंसा आनंदित होकर मानसरोवर में विभिन्न क्रीड़ाएं कर रही है। क्रीड़ा करने से भाव आनंदित होकर विभिन्न करतब करने से है जैसे पक्षी तालाब के किनारे कर करते हैं।वह मुक्त अवस्था को प्राप्त करके, स्वतंत्र होकर मोतियों को चुग रही है। अब उसे किसी प्रकार की सांसारिक/भौतिक परतंत्रता शेष नहीं रही है। ऐसी अवस्था को प्राप्त करके वह अन्यत्र किसी स्थान पर नहीं जाएगा। क्योंकि हंस का स्वभाव होता है की वह मोती ही चुगता है अन्य किसी तुच्छ प्रदार्थ का सेवन वह नहीं करता है।
भाव है की जब जीवात्मा पूर्णता को प्राप्त कर लेता है, फिर उसे किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं रहती है। इसमें अन्योक्ति और यमक अलंकार की सफल व्यंजना दृष्टिगत हुई है।
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
- मन मैला तन ऊजरा बगुला कपटी अंग हिंदी मीनिंग Man Maila Tan Ujara Bagula Kapati Ang
- कामी क्रोधी लालची इनते भक्ति न होय हिंदी मीनिंग Kami Krodhi Lalchi Inte Bhakti Na Hoy-Hindi Meaning
- प्रेम न बाड़ी ऊपजै प्रेम न हाट बिकाय हिंदी मीनिंग Prem Na Badi Upaje Prem Na Hat Bikay Hindi Meaning
- कबीर माया बेसवा दोनूं की इक जात हिंदी मीनिंग Kabir Maya Besva Donu Ki Ik Jaat Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Me
- कामी अमी न भावई विष को लेवे शोध हिंदी मीनिंग Kami Ami Na bhavai Vish Ko Leve Sodh
- पढ़ना गुनना चातुरी यह तो बात सहल्ल हिंदी मीनिंग Padhna Gunana Chaturi Yah To Baat Sahall Hindi Meaning
- झूठे को झूठा मिलै दूणाँ बधै सनेह मीनिंग Jhuthe Ko Jhutha Mile Meaning Kabir Dohe
- खूब खाँड है खिंचडी माहीं पड़ै दुक लूँण मीनिंग Khub Khand Hai Khichadi Meaning Kabir Dohe
- कबीर लज्या लोक की सुमिरै नाँही साच मीनिंग Kabir Lajya Lok Ki Meaning Kabir Dohe
- कबीर जिनि जिनि जाँणियाँ मीनिंग Kabir Jini Jini Janiya Meaning Kabir Dohe
- पापी पूजा बैसि करि भषै माँस मद दोइ मीनिंग Papi Puja Besi Kare Meaning Kabir Dohe
- सकल बरण एकत्र व्हे सकति पूजि मीनिंग Sakal Baran Ekatra Meaning Kabir Dohe
संत कबीर जीवात्मा को हंस के रूप में चित्रित कर रहे हैं। जीवात्मा अपने मूल स्वरुप में पूर्ण ब्रह्म के आनंद को प्राप्त कर रही है। यह आनंद हृदय रूपी मानसरोवर में स्थित है। जीवात्मा इस आनंद को प्राप्त करने के लिए मानसरोवर में विभिन्न क्रीड़ाएं करती है।
संत कबीर के दोहे का यह अर्थ है कि जीवात्मा को अपने मूल स्वरुप को प्राप्त करने के लिए परमात्मा की खोज करनी चाहिए। परमात्मा की खोज करने के लिए हमें अपने भीतर झांकना चाहिए। जब हम अपने भीतर झांकते हैं, तो हम अपने मूल स्वरुप को पा सकते हैं।
इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें इस परिवर्तनशील संसार में मोह नहीं करना चाहिए। हमें हमेशा अपने मूल स्वरुप को याद रखना चाहिए।
कबीर दास जी के दोहे में कुछ और भी अर्थ निकलते हैं। उदाहरण के लिए, हंस को अक्सर ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इस दृष्टिकोण से, दोहे का अर्थ यह हो सकता है कि ज्ञानी व्यक्ति इस संसार के मोह से मुक्त हो जाता है। वह इस संसार में विभिन्न क्रीड़ाएं करता है, लेकिन वह इस संसार से जुड़ा नहीं रहता है। वह हमेशा अपने मूल स्वरुप को याद रखता है। संत कबीर जी के दोहे का अर्थ कई तरह से समझा जा सकता है। यह दोहा एक ऐसा रत्न है जो हमें जीवन के कई अनमोल सत्यों को सिखाता है।
संत कबीर के दोहे का यह अर्थ है कि जीवात्मा को अपने मूल स्वरुप को प्राप्त करने के लिए परमात्मा की खोज करनी चाहिए। परमात्मा की खोज करने के लिए हमें अपने भीतर झांकना चाहिए। जब हम अपने भीतर झांकते हैं, तो हम अपने मूल स्वरुप को पा सकते हैं।
इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें इस परिवर्तनशील संसार में मोह नहीं करना चाहिए। हमें हमेशा अपने मूल स्वरुप को याद रखना चाहिए।
कबीर दास जी के दोहे में कुछ और भी अर्थ निकलते हैं। उदाहरण के लिए, हंस को अक्सर ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इस दृष्टिकोण से, दोहे का अर्थ यह हो सकता है कि ज्ञानी व्यक्ति इस संसार के मोह से मुक्त हो जाता है। वह इस संसार में विभिन्न क्रीड़ाएं करता है, लेकिन वह इस संसार से जुड़ा नहीं रहता है। वह हमेशा अपने मूल स्वरुप को याद रखता है। संत कबीर जी के दोहे का अर्थ कई तरह से समझा जा सकता है। यह दोहा एक ऐसा रत्न है जो हमें जीवन के कई अनमोल सत्यों को सिखाता है।