तन भीतरि मन मानियाँ बाहरि कहा न जाइ कबीर के दोहे

तन भीतरि मन मानियाँ बाहरि कहा न जाइ Tan Bhitari Man Maniya

 
तन भीतरि मन मानियाँ, बाहरि कहा न जाइ।
ज्वाला तै फिरि जल भया, बुझी बलंती लाइ॥

Tan Bhitari Man Maniya, Bahuri Kaha Na Jaai,
Jvala Te Phiri Jal Bhaya Bujhi Balanti Laai.
 
तन भीतरि मन मानियाँ, बाहरि कहा न जाइ। ज्वाला तै फिरि जल भया, बुझी बलंती लाइ॥

कबीर दोहा हिंदी शब्दार्थ Kabir Doha Hindi Word Meaing.

  • तन -शरीर, तन, देह।
  • भीतरि - अंदर, भीतर।
  • मन -हृदय, चित्त।
  • मानियाँ - मान लिया, स्वीकार कर लिया।
  • बाहरि कहा न जाइ- बाह्य रूप से किसी को कुछ कहा नहीं जा सकता है।
  • ज्वाला -अग्नि, आग.
  • तै फिरि -इसके उपरान्त.
  • जल भया,
  • बुझी -बुझ गई है.
  • बलंती -जलती हुई।
  • लाइ-लाय, प्रचंड स्वतः फैलने वाली अग्नि, जैसे दावाग्नि।

कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Kabir Doha/Sakhi Hindi meaning

कबीर साहेब ने इस दोहे में सन्देश दिया है की ईश्वर से साक्षात्कार होने के उपरान्त, भक्ति के चरम को प्राप्त करने के उपरान्त, मन में शान्ति आ गई है, मन स्थिर हो गया है। साधक अब अंतर्मुखी हो गया है। हृदय में उसके पूर्ण विश्राम की अवस्था है। अब वह माया जनित भ्रम का शिकार नहीं होता है। वह चित्त से प्रभु का दास बन चूका है। हृदय के सभी संताप स्वतः ही जल के समान सुखदाई बन चुके हैं। जलती हुई ज्वाला अब शांत हो चुकी है, जलती हुई अग्नि शांत हो चुकी है, जिसका वर्णन किसी को किया नहीं जा सकता है। इस दोहे में अनुप्रास अलंकार की व्यंजना हुई है। 

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