हरि संगति सीतल भया मिटा मोह की ताप कबीर के दोहे

हरि संगति सीतल भया मिटा मोह की ताप Hari Sangati Sheetal Bhaya

 
हरि संगति सीतल भया, मिटा मोह की ताप।
निस बासुरि सुख निध्य लह्या, जब अंतरि प्रकट्या आप॥

Hari Sangati Shetal Bhaya, Mita Moh Ki Taap,
Nis Basuri Sukh Nidhy Lahya, Jab Antari Prakatya Aaap.
 
 
हरि संगति सीतल भया, मिटा मोह की ताप। निस बासुरि सुख निध्य लह्या, जब अंतरि प्रकट्या आप॥

कबीर दोहा/साखी हिंदी शब्दार्थ/ Kabir Doha/Sakhi Hindi Meaning.

  • हरि संगति : प्रभु मिलन, हरी की भक्ति।
  • सीतल भया : शांत हो गया।
  • मिटा मोह की ताप : मोह माया का संताप दूर हो गया है।
  • निस बासुरि : रात दिन।
  • सुख निध्य : सुख निधि।
  • लह्या : प्राप्त हुआ।
  • जब अंतरि : हृदय में।
  • प्रकट्या : प्रकट हुआ।
  • आप : पूर्ण ब्रह्मा।

कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग Kabir Doha/Sakhi Hindi Meaning

साधक भक्ति मार्ग पर आने से उसका मन शांत हो गया है और मोह माया का संताप मिट गया है। जब हृदय में ईश्वर का दर्शन हुआ तो दिन रात सुख की प्राप्ति होने लगी है। जब हृदय में ईश्वर की प्राप्त होने लगती है तो  सभी संताप दूर हो जाते हैं। दिन और रात सुख ही सुख मिलता है। 
 
जब हृदय के अंदर ईश्वर को खोज लिया जाता है तो दुखों से सभी कारण समाप्त हो जाते हैं और स्वतः ही सुख और संतोष की प्राप्ति होने लगती है। दुःख क्या है ? समस्त मायाजनित कार्य एंव व्यवहार ही दुखों का कारण होता है। जब मायाजनित व्यवहार से व्यक्ति का ध्यान हटकर भक्ति में लग जाता है तो स्वतः ही सुख की प्राप्ति होने लग जाती है। यह सुख कोई सांसारिक या भौतिक नहीं होता है जो कुछ समय के लिए हो, यह सदा शाश्वत बना रहता है। 
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