धरि परमेसुर पाँहुणाँ मीनिंग

धरि परमेसुर पाँहुणाँ कबीर के दोहे मीनिंग

 
धरि परमेसुर पाँहुणाँ कबीर के दोहे मीनिंग

धरि परमेसुर पाँहुणाँ, सुणौं सनेही दास।
षट रस भोजन भगति करि, ज्यूँ कदे न छाड़ैपास॥


Dhari Parmsur Pahuna, Suno Sanehi Daas,
Shat Ras Bhojat Bhagati Kari, Jyu Kade Na Chaadepaas.
धरि : घर में.
परमेसुर : परमेश्वर.  
पाँहुणाँ : पावणा, मेहमान., अथिति,
सुणौं : सुनो.
सनेही दास : स्नेही सेवक.
षट रस :छह रसों से परीपूर्ण भोजन.
ज्यूँ : जैसे .
कदे न छाड़ैपास : कभी साथ नहीं छोड़े.

प्रस्तुत साखी में साहेब की वाणी है की ईश्वर मेहमान की भाँती घर पर है, इसे सेवा भाव से छह प्रकार के रसों से परिपूर्ण भोजन (भागवत रस) का सेवन करवाओं जिससे वह इस घर को छोडकर अन्य किसी स्थान पर नहीं जाए. षट रस से परिपूर्ण भोजन से आशय है की प्रभु की भक्ति ऐसे करो जिससे वह तुमसे सदा ह प्रसन रहे, उसे रिझाकर रखो. अतिथि बताकर इश्वर के प्रति पूर्ण निष्ठा रखने का संकेत दिया है. 



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साहेब की वाणी का भाव यह है कि हमें ईश्वर को अपने हृदय रूपी घर में आए हुए एक प्रिय अतिथि या मेहमान (पाँहुणाँ) के समान मानना चाहिए। स्नेही सेवक (सनेही दास) को संबोधित करते हुए कहा गया है कि, जिस प्रकार हम अपने अतिथि को प्रसन्न करने के लिए छह रसों से परिपूर्ण स्वादिष्ट भोजन (षट रस भोजन) कराते हैं, उसी प्रकार हमें भी पूर्ण भक्ति-भाव से (भागवत रस) उनकी सेवा करनी चाहिए। यहाँ पर 'षट रस भोजन' से आशय केवल भोजन नहीं, बल्कि प्रभु की भक्ति में लीन होकर उन्हें रिझाना, उनके प्रति पूर्ण निष्ठा रखना और ऐसे कर्म करना है जिससे वे सदा प्रसन्न रहें। इस अनन्य सेवा और भक्ति के प्रभाव से, वह परमेश्वर रूपी अतिथि हमारे हृदय रूपी घर को कभी छोड़कर नहीं जाएगा (कदे न छाड़ै पास), जिससे भक्त को ईश्वर की शाश्वत समीपता और परमानंद की प्राप्ति होगी। 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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