कबीर नौबति आपणी मीनिंग Kabir Noubati Aapani Meaning Kabir Ke Dohe

कबीर नौबति आपणी मीनिंग Kabir Noubati Aapani Meaning Kabir Ke Dohe (Hindi Arth/Vyakhya)

कबीर नौबति आपणी, दिन दस लेहु बजाइ।
ए पुर पाटन ए गली, बहुरि न देखै आइ॥

Kabir Noubati Aapani, Din Das Leu Bajaai,
Aie Pur Patan Aie Gali, Bahuri Na Dekhe Aai.
 

नौबति : नौबत, एक तरह का बाजा। नौबत एक तरह का बाजा होता है जिसे धनाढ्य लोगों के ऊँचे मकानों की ड्योडी (दहलीज) पर दरबानों के द्वारा बजाया जाता था.
आपणी : अपनी।
दिन दस : दस दिनों के लिए, कुछ समय के लिए।
लेहु बजाइ : बजा लो (अल्प समय के लिए, कुछ समय के लिए जीवन है। )
ए पुर : यह नगर।
पाटण- बाजार।
ए गली : यह गलियाँ।
बहुरि न देखै आइ दुबारा नहीं दिखने वाली हैं.

नौबत से आशय है धन दौलत का प्रदर्शन करना. प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की तुम अपने धन दौलत, एश्वर्य का झूठा प्रदर्शन मत करो, इस पर व्यर्थ का अहम् मत करो. 
इस जगत की गलियां, नगर और जो भी तुम देख पा रहे हो वह अस्थाई है। जगत में तुम मुसाफिर की भाँती से आये हो। तुम अपनी माया के भरोसे थोड़े  समय के लिए अभिमान कर लो। इस नौबत बाजे को तुम थोड़े समय के लिए बजा लो, एक रोज यह सम्पन्नता तुम्हारे साथ नहीं रहनी है।
इस साखी का मूल भाव है की अनेकों जतन के उपरान्त यह मानव जीवन मिला है। तुम इस जीवन का सदुपयोग हरी भजन करने में करो। जो धन दौलत तुमने अर्जित की है वह साथ में नहीं जाने वाली है और नाहीं तुमको बारम्बार मनुष्य जीवन ही प्राप्त होने वाला है। सुमिरण ही जीवन का सार है।
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