उस संम्रथ का दास हौं कदे न होइ अकाज मीनिंग कबीर के दोहे

उस संम्रथ का दास हौं कदे न होइ अकाज मीनिंग Us Samrath Ka Daal Ho Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit

उस संम्रथ का दास हौं, कदे न होइ अकाज।
पतिब्रता नाँगी रहै, तो उसही पुरिस कौ लाज॥

Us Samrath Ka Daas Ho, Kade Na Hoi Akaj,
Patibrata Nagi Rahe, To Usahi Purij Ko Laaj.

उस : इस्वर।
संम्रथ : समर्थवान, समर्थ, शक्तिशाली।
का दास हौं : का सेवक, दास हूँ।
कदे : कभी।
न होइ अकाज : कभी भी कोई अकाज नहीं होगा, नुकसान।
पतिब्रता : पतिव्रता, पति के प्रति समर्पित।
नाँगी रहै : नंगी रहती है।
तो उसही : तो उसी के (उसके पति, स्वामी)
पुरिस कौ लाज :पुरुष जो लज्जित होना पड़ता है।
 
इस साखी में कबीर साहेब ने अप्रत्यक्ष रूप से ईश्वर को उलाहना देते हुए संकेत दिया है की मेरा कभी भी अमंगल नहीं हो सकता है. साधक तो उस पूर्ण ब्रह्म का का उपासक है, ऐसे में उसका कोई अमंगल नहीं हो सकता है. जैसे यदि कोई नारी निवस्त्र होती है तो उसके स्वामी को ही लज्जित होना पड़ता है और कोई व्यवस्था करनी पड़ती है. साधक को कोई चिंता करने की जरूरत शेष नहीं रहती है.  इस साखी में कबीर साहेब ने स्वय को इश्वर  की नारी के रूप में प्रस्तुत किया है. इश्वर के रहते हुए यदि साधक का कोई अहित होता है तो यह इश्वर के लिए ही शर्म की बात है.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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