हेरत हेरत हे सखी रह्या कबीर हिराइ मीनिंग
हेरत हेरत हे सखी रह्या कबीर हिराइ मीनिंग कबीर के दोहे
हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ।
समंद समाना बूँद मैं, सो कत हेरह्या जाइ॥
समंद समाना बूँद मैं, सो कत हेरह्या जाइ॥
Herat Herat Hey Sakhi, Rahya Kabir Hiraai,
Samand Samaana Bund Me, So Kat Herya Jaai.
हेरत हेरत : ढूंढते ढूंढते, खोजते हुए.
हे सखी : सखी से सम्बोधन.
रह्या कबीर हिराइ : कबीर साहेब स्वंय ही खो गए हैं.
समंद : समुद्र में/पूर्ण ब्रह्म में.
समाना : समा गई है.
बूँद : एक बूंद.
सो कत : वह कैसे.
हेरह्या जाइ : ढूँढा जा सकता है.
हे सखी : सखी से सम्बोधन.
रह्या कबीर हिराइ : कबीर साहेब स्वंय ही खो गए हैं.
समंद : समुद्र में/पूर्ण ब्रह्म में.
समाना : समा गई है.
बूँद : एक बूंद.
सो कत : वह कैसे.
हेरह्या जाइ : ढूँढा जा सकता है.
इससे पूर्व के भाँती (हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ, बूँद समानी समंद मैं, सो कत हेरी जाइ) इस साखी का भी मूल भाव है की जीवात्मा पूर्ण परमात्मा में मिल गई है, अब उसे ढूंढ पाना संभव नहीं है. समुद्र बूँद में समाँ गया है जिसे अब प्रथक कर पाना संभव नहीं है. इस साखी का भाव है की अहम के शांत हो जाने पर द्वेत भाव समाप्त हो जाता है. जीवात्मा और परमात्मा का विलय हो जाता है. अब जीवात्मा परमात्मा ही बन जाती है. आत्मा और परमात्मा का भेद समाप्त हो गया है. यह भक्ति की एक अवस्था है जब सभी भ्रम मिट जाते हैं और समस्त हृदय के अन्दर ही नजर आने लगता है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |