पहुँचैगे तब कहैंगे मीनिंग कबीर के दोहे
पहुँचैगे तब कहैंगे, अमड़ैगे उस ठाँइ।
अजहूँ बेरा समंद मैं, बोलि बिगूचै काँइ॥
Panhuchenge Tab Kahenge, Amdenge Us Thaayi,
Ajahu Bera Samand Main, Boli Biguche Kaai.
पहुँचैगे तब कहैंगे मीनिंग हिंदी शब्दार्थ
पहुँचैगे तब कहैंगे : पंहुचने पर कहेंगे, साधना पथ पर पंहुचने के उपरान्त ही कुछ कहेंगे.
अमड़ैगे : आनंदित होंगे, उमडेन्गे
उस ठाँइ : उस स्थान पर.
अजहूँ : अभी समंद मैं,
बेरा : बेड़ा, नांव.
अमड़ैगे : आनंदित होंगे, उमडेन्गे
उस ठाँइ : उस स्थान पर.
अजहूँ : अभी समंद मैं,
बेरा : बेड़ा, नांव.
बोलि बिगूचै काई : अभी व्यर्थ में क्या बोला जाए, व्यर्थ में बोली का मोल क्यों समाप्त किया जाए.
कबीर साहेब की वाणी है की भक्ति के परम पद को प्राप्त करने के उपरान्त, अपनी मंजिल तक पंहुचने के बाद ही हम उसके विषय में कुछ कह पायेंगे, भक्ति मार्ग के बारे में कुछ बता पायेंगे. अभी हम इस विषय में कुछ नहीं बता नहीं सकते हैं. जब हम उस स्थान पर उमड़ेगे, आनंदित होंगे इसके उपरान्त ही कुछ इसके बारे में बता पायेंगे. अभी तो हमारी नांव बीच समुद्र में है. अभी कुछ भी कहकर व्यर्थ में कथन को क्यों समाप्त किया जाए.
एक बार निर्धारित गंतव्य पर पंहुच कर भरपूर आनंद लेने के उपरान्त ही कुछ कहा जा सकता है. इस साखी का मूल भाव है की इश्वर कैसा है, उसका रूप कैसा है आदि पर अनर्गल वार्तालाप से कोई लाभ नहीं होने वाला है, सच्चे हृदय से इश्वर का सुमिरण करना ही वास्तविक भक्ति है, इसका कोई अन्य विकल्प नहीं है. स्थान स्थान पर साहेब की वाणी का मूल है की हरी के नाम का सुमिरण सच्चे हृदय से करो, अन्य किसी मार्ग या साधन की कोई आवश्यकता नहीं है. इस साखी में रुप्कतिस्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.
यह दोहा सच्ची भक्ति और प्रभु के सान्निध्य की गहराई को व्यक्त करता है, जिसमें कबीर जी सिखाते हैं कि साधना का परम लक्ष्य प्राप्त करने के बाद ही उसका सच्चा अनुभव बयान किया जा सकता है। अभी जब तक आत्मा इस संसार रूपी समुद्र में डूबी है, तब तक व्यर्थ की बातों से क्या लाभ? साधक का बेड़ा अभी भवसागर के बीच में है, और प्रभु तक पहुँचने से पहले अनर्गल चर्चाओं में समय गँवाना केवल बोली का मूल्य नष्ट करना है। सच्चा साधक वही है जो अपने मन को प्रभु के नाम में डुबोकर साधना के पथ पर चलता है और उस परम ठिकाने तक पहुँचकर ही आनंद और सत्य का अनुभव करता है।
प्रभु का स्मरण सच्चे हृदय से करना ही भक्ति का सार है। यह संसार और इसकी सारी बातें क्षणिक हैं, और प्रभु के बिना कोई साधन साधक को मुक्ति नहीं दिला सकता। कबीर जी की वाणी सिखाती है कि साधना का मार्ग कठिन है, परंतु जब साधक उस परम स्थान पर पहुँचता है, तब उसका हृदय आनंद से उमड़ पड़ता है। वहाँ पहुँचकर ही साधक प्रभु के स्वरूप और भक्ति की महिमा को सही मायनों में समझ पाता है। अतः, व्यर्थ की चर्चाओं को छोड़कर, साधक को चाहिए कि वह हर साँस में प्रभु का नाम जपे, क्योंकि यही वह मार्ग है जो उसे भवसागर से पार कराकर साहब के घट माहीं पहुँचाता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
