कबीर कलिजुग आइ करि कीये बहुतज मीत मीनिंग Kabir Kalijug Aayi Kari Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth Sahit/Bhavarth)
कबीर कलिजुग आइ करि, कीये बहुतज मीत।जिन दिल बँधी एक सूँ, ते सुखु सोवै नचींत॥
Kabir Kalijug Aai Kari, Kiye Bahutaj Meet,
Jin Dil Bandhi Ek Su, Te Sukhu Sove Nacheet.
कलिजुग : कलयुग।
आइ करि : आकर (संसार में आकर)
कीये बहुतज मीत : बहुतों से मित्रता स्थापित कर ली है.
जिन दिल : जिस हृदय में।
बँधी एक सूँ : एक से डोर बंधी है.
ते सुखु सोवै नचींत : वे निश्चिंत होकर सुख की निंद्रा सोते हैं.
आइ करि : आकर (संसार में आकर)
कीये बहुतज मीत : बहुतों से मित्रता स्थापित कर ली है.
जिन दिल : जिस हृदय में।
बँधी एक सूँ : एक से डोर बंधी है.
ते सुखु सोवै नचींत : वे निश्चिंत होकर सुख की निंद्रा सोते हैं.
कलयुग में आकर जीवात्मा विविध सांसारिक माया जनित आकर्षणों से मित्रता कर लेती है. वह बहुजन (विषय विकार) के प्रपंच में पड़ जाती है, यही उसके दुखों का कारण होती है. जिसने उस एक निराकार से अपना चित्त लगा लिया है, वह निश्चिंत होकर सुख से विश्राम करता है. जिसने पूर्ण परमात्मा में अपना चित्त लगा लिया है अब उसका काल क्या कर सकता है, भाव है की कुछ नहीं. प्रस्तुत साखी में अन्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.
अन्योक्ति अलंकार का अर्थ होता है अन्य के प्रति प्रकट की गई उक्ति। अन्योक्ति अलंकार में अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत का वर्णन किया जाता है। दुसरे शब्दों में अन्योक्ति अलंकार वहां होता है जहाँ उपमान के बहाने उपमेय का वर्णन किया जाता है या कोई कथन सीधे न कहकर किसी के माध्यम से प्रकट की जाय, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
अन्योक्ति अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण-
नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल ।
अली कली ही सौं बिध्यौं आगे कौन हवाल ।।
इहिं आस अटक्यो रहत, अली गुलाब के मूल।
अइहैं फेरि बसंत रितु, इन डारन के मूल।।
माली आवत देखकर कलियन करी पुकार।
फूले-फूले चुन लिए , काल्हि हमारी बारि।।
केला तबहिं न चेतिया, जब ढिग लागी बेर।
अब ते चेते का भया , जब कांटन्ह लीन्हा घेर।।
अन्योक्ति अलंकार का अर्थ होता है अन्य के प्रति प्रकट की गई उक्ति। अन्योक्ति अलंकार में अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत का वर्णन किया जाता है। दुसरे शब्दों में अन्योक्ति अलंकार वहां होता है जहाँ उपमान के बहाने उपमेय का वर्णन किया जाता है या कोई कथन सीधे न कहकर किसी के माध्यम से प्रकट की जाय, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
अन्योक्ति अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण-
नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल ।
अली कली ही सौं बिध्यौं आगे कौन हवाल ।।
इहिं आस अटक्यो रहत, अली गुलाब के मूल।
अइहैं फेरि बसंत रितु, इन डारन के मूल।।
माली आवत देखकर कलियन करी पुकार।
फूले-फूले चुन लिए , काल्हि हमारी बारि।।
केला तबहिं न चेतिया, जब ढिग लागी बेर।
अब ते चेते का भया , जब कांटन्ह लीन्हा घेर।।