कबीर कुता राम का मुतिया मेरा नाउँ मीनिंग Kabir Kuta Raam Ka Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Hindi Bhavarth/Meaning)
कबीर कुता राम का, मुतिया मेरा नाउँ।गलै राम की जेवडी, जित खैचे तित जाउँ॥
Kabir Kuta Raam Ka, Mutiya Mera Naau,
Gale Raam Ki Jevadi, Jitt khenche Tit Jaau.
कुता : कुत्ता।
राम का : ईश्वर का।
मुतिया : मुक्ति चाहने वाला।
मेरा नाउँ : मेरा ना है।
गलै राम की जेवडी : गले में राम नाम की रस्सी है।
जित खैचे तित जाउँ : जिधर खींचता है, उधर ही मैं जाता हूँ।
जित-जिधर।
उत-उधर।
राम का : ईश्वर का।
मुतिया : मुक्ति चाहने वाला।
मेरा नाउँ : मेरा ना है।
गलै राम की जेवडी : गले में राम नाम की रस्सी है।
जित खैचे तित जाउँ : जिधर खींचता है, उधर ही मैं जाता हूँ।
जित-जिधर।
उत-उधर।
कबीर साहेब की वाणी है की मैं राम (इश्वर) का कुत्ता हूँ, और मेरा नाम मुतिया (मुक्ति चाहने वाला) है. मुतिया से भाव मुक्त से भी है. जीवात्मा इश्वर के सानिध्य में आकर मुक्त हो जाती है. जीवात्मा के गले में राम नाम की रस्सी पड़ी हुई है. राम जिधर उसको मोड़ते हैं, उधर ही मैं मुड़ जाता हूँ. एक साधक की यह सर्वोच्च पराकाष्ठा है, अनन्य भक्ति है. साधक का अहम पूर्ण रूप से समाप्त होने की अवस्था है की साहेब स्वंय को कुत्ता घोषित कर रहे हैं. कुत्ते के यदि गुणों पर विचार किया जाए तो वह मालिक का दिया हुआ है खाता है और अपने मालिक के प्रति पूर्ण वफादार होता है. ऐसे ही कबीर साहेब अनन्य भक्ति और अद्वेत भाव की तरफ संकेत करते हैं और कहते हैं की बहुतों को छोडो, एक में ही अपना ध्यान लगाओ.
जे मन लागै एक सूँ, तो निरबाल्या जाइ।
तूरा दुइ मुखि बाजणाँ न्याइ तमाचे खाइ॥
जैसे एक मुख से दो तुरही नहीं बजाई जा सकती है ऐसे ही द्वेत की भावना रखने पर व्यक्ति कहीं नहीं पंहुच पाता है.
संतो मोहि कोई समझावे,
जीव ब्रह्म एक कि दोई, यह मत मोहि बतावे,
एक कहूँ तो जाय न संसय, दो कहे ते न बनिआवे,
कहुँ कहुँ एक कहुँ कहुँ दो हैं, शास्त्र दोउ विधि गावे,
ब्रह्म सनातन भूतक कहिये, श्री मुख गाय सुनायो,
जीव सदा उपजै और विनसै, सो क्यो ब्रह्म कहायो,
जीव कहाँ से आया संतो, कहो कहाँ को जाई,
आवत जात चार युग बीते, गति न काहू लखि पाई,
यह संसय संद्गुरु बिन संतो, को कर कृपा मिटावे,
ब्रह्म अनादि जीव माया में प्रगट कबीर लखावे
यह तत् वह तत् एक है, एक प्राण दुइ जात।
अपने जिय से जानिये, मेरे जिय की बात ।।
जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानी।
फूटा कुम्भ जल जलहि सामना, यह तथ कह्यौ गयानी।।
जे मन लागै एक सूँ, तो निरबाल्या जाइ।
तूरा दुइ मुखि बाजणाँ न्याइ तमाचे खाइ॥
जैसे एक मुख से दो तुरही नहीं बजाई जा सकती है ऐसे ही द्वेत की भावना रखने पर व्यक्ति कहीं नहीं पंहुच पाता है.
संतो मोहि कोई समझावे,
जीव ब्रह्म एक कि दोई, यह मत मोहि बतावे,
एक कहूँ तो जाय न संसय, दो कहे ते न बनिआवे,
कहुँ कहुँ एक कहुँ कहुँ दो हैं, शास्त्र दोउ विधि गावे,
ब्रह्म सनातन भूतक कहिये, श्री मुख गाय सुनायो,
जीव सदा उपजै और विनसै, सो क्यो ब्रह्म कहायो,
जीव कहाँ से आया संतो, कहो कहाँ को जाई,
आवत जात चार युग बीते, गति न काहू लखि पाई,
यह संसय संद्गुरु बिन संतो, को कर कृपा मिटावे,
ब्रह्म अनादि जीव माया में प्रगट कबीर लखावे
यह तत् वह तत् एक है, एक प्राण दुइ जात।
अपने जिय से जानिये, मेरे जिय की बात ।।
जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानी।
फूटा कुम्भ जल जलहि सामना, यह तथ कह्यौ गयानी।।
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |