कबीर देखत दिन गया मीनिंग

कबीर देखत दिन गया मीनिंग

कबीर देखत दिन गया, निस भी देखत जाइ।
बिरहणि पीव पावे नहीं, जियरा तलपै माई॥

Kabir Dekhat Din Gaya, Nis Bhi Dekhat Jaai,
Birahani Peev Paave Nahi, Jiyara Talape Bhaai.
 
कबीर देखत दिन गया, निस भी देखत जाइ। बिरहणि पीव पावे नहीं, जियरा तलपै माई॥

कबीर दोहा साखी मीनिंग हिंदी Doha/Sakhi Word Meaning.

देखत-देखते ही देखते।
दिन गया-दिवस चला गया।
निस भी- रात भी।
देखत जाइ-देखते ही देखते चला जाता है।
बिरहणि- विरहणी।
पीव-इश्वर।
पावे नहीं- प्राप्त नहीं होता है।
जियरा -हृदय।
तलपै-तड़पे।
माई-सखी.

कबीर साखी/दोहा हिंदी मीनिंग

कबीर साहेब इस दोहे में वर्णन करते हैं की दिन और रात देखते ही देखते बीत गए हैं, लेकिन प्रिय (हरी) की प्राप्ति नहीं हुई है. पीव की प्राप्ति के अभाव में जीव/हृदय तडपता रहता है. विरह में तड़पती आत्मा अपने प्रिय परमात्मा से मिलना चाहती है. 
प्रिय का ज्ञान होने पर विरहणी (जीवात्मा) पूर्णता में एकाकार होने के लिए दिन रात तड़पती है। वह विरह की अग्नि में दग्ध रहती है। जब तक वह विषय वासना, मोह और माया में लिप्त रहती है, खुश रहती है क्योंकि उसे सत्य का बोध ही नहीं होता है। वह इस जगत को ही अपना घर समझ लेती है मानों उसे सदा के लिए यहीं पर रहना हो। जब बोध हो जाता है वह अधिक दुखी हो जाती है। वह कैसे भी पूर्णता में मिलने को व्याकुल रहती है। 

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