ढोल दमामा दड़बड़ी सहनाई संगि भेरि मीनिंग Dhol Damaama Dadbadi Sahnaai Meaning Kabir Ke Dohe

ढोल दमामा दड़बड़ी सहनाई संगि भेरि मीनिंग Dhol Damaama Dadbadi Sahnaai Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Hindi Bhavarth)

ढोल दमामा दड़बड़ी, सहनाई संगि भेरि।
औसर चल्या बजाइ करि, है कोइ राखै फेरि॥
Dhol Damaama Dadbadi, Sahnaai Sangi Bheri,
Ousar Chalya Bajaai Kari, Hai Koi Rakhe Feri.

ढोल : बड़ा ढोलक।
दमामा : एक तरह का बड़ा ढोल/ढ़ोलक।
दड़बड़ी : डुगडुगी।
सहनाई :
शहनाई।
संगि : साथ में
भेरि : वाद्य यंत्र, मृदंग के समान एक बाजा।
औसर :
अवसर।
चल्या : चले गए, गमन कर गए।
बजाइ करि : बजाकर।
है कोइ राखै फेरि : क्या कोई ऐसा है जो इनको फिर से रख सके, इनको लौटा सके, भाव है की ऐसा कोई नहीं है।
फेरी : पुनः, दुबारा।
राखै : रख ले, बुला ले।

प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की इस संसार में आकर व्यक्ति व्यर्थ में ही अपना समय गंवा देता है. भले ही वह कितने ही ढोल, नगारे, बाजे, डुगडुगी बजा ले, कितना भी वैभव का प्रदर्शन कर ले लेकिन वह इस जगत में स्थाई नहीं है. कितना भी सांसारिक वैभव, सुख सुविधाओं का भोग कर लिया जाए, एक रोज तुमको सब छोड़ कर जाना है. कोई भी व्यक्ति इनको पुनः लौटा नहीं सकता है.  जो समय बीत जाता है वह लौटकर पुनः नहीं आ सकता है. इसलिए हरी के नाम का सुमिरण ही मुक्ति का आधार है. इस जगत में ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो वैभव करने वाले धनी व्यक्तियों को काल के ग्रास से बचा सके. प्रस्तुत साखी में वक्रोक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.
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