मैं तो उन्ही संतों का दास भजन
में तो उन्ही संतों का दास भजन
तन मन ताको दीजिये, जाको विषया नांहि।आपा सबही डारि के, राखै साहिब मांहि॥
मनहिं दिया निज सब दिया मन से संग शरीर।
अब देवे को क्या रहा, यो कथि कहहिं कबीर॥
तन मन दिया अपना, निज मन ता के संग,
कहे कबीर निर्भय भय, सुन सतगुरु प्रसंग।
मैं तो उन्ही संतों का दास, जिन्होंने मन मार लिया,
मार लिया, मन मार लिया, जिन्होंने मन मार लिया।
आपा मार जगत में बैठे, नहीं किसी से काम,
राम रे, नहीं किसी से काम
उन में तो कुछ अंतर नहीं, संत कहो जी चाहे राम,
जिन्होंने मन मार लिया,
मैं तो उन्ही संतों का दास, जिन्होंने मन मार लिया,
मार लिया, मन मार लिया, जिन्होंने मन मार लिया।
मन मारया तन बस में किया, किया भरम दूर,
राम रे, किया भरम दूर,
बाहर तो कुछ दिखत नाहीं, भीतर झलके नूर,
जिन्होंने मन मार लिया,
मैं तो उन्ही संतों का दास, जिन्होंने मन मार लिया,
मार लिया, मन मार लिया, जिन्होंने मन मार लिया।
प्याला पिया प्रेम का रे, छोड़ा जगत का मोह,
राम रे, छोड़ा जगत का मोह,
हमको सतगुरु ऐसा मिल गया, सहज मुक्ति होय,
जिन्होंने मन मार लिया,
मैं तो उन्ही संतों का दास, जिन्होंने मन मार लिया,
मार लिया, मन मार लिया, जिन्होंने मन मार लिया।
नरसिंह जी के सद्गुरु स्वामी, दिया अमी रस पाय,
राम रे, दिया अमी रस पाय,
एक बून्द सागर में रळगी, क्या करे रे यमराज,
जिन्होंने मन मार लिया,
मैं तो उन्ही संतों का दास, जिन्होंने मन मार लिया,
मार लिया, मन मार लिया, जिन्होंने मन मार लिया।
मैं तो उन्ही संतों का दास, जिन्होंने मन मार लिया,
मार लिया, मन मार लिया, जिन्होंने मन मार लिया।
||Kabir bhajan||मैं तो उन्ही संतों का दास जिन्होंने मन मार लिया||Meto unhi santo ka das|Hari Patel||
Aapa Sabahi Daari Ke, Raakhai Saahib Maanhi.
Manahin Diya Nij Sab Diya Man Se Sang Sharir.
Ab Deve Ko Kya Raha, Yo Kathi Kahahin Kabir.
Tan Man Diya Apana, Nij Man Ta Ke Sang,
Kahe Kabir Nirbhay Bhay, Sun Sataguru Prasang.