माटी मलणि कुँभार की घणी सहै सिरि लात हिंदी मीनिंग Maati Malani Kumbhaar Meaning, Kabir Ke Dohe HIndi Meaning (Hindi Arth Sahit/Bhavarth)
माटी मलणि कुँभार की, घणी सहै सिरि लात।इहि औसरि चेत्या नहीं, चूका अबकी घात॥
Maati Malani Kumbhaar Ki, Ghanii Sahe Siri Laat,
Ehi Ousari Chetya Nahi, Chuka Abki Ghaat.
माटी : मिटटी.
मलणि : मलना, मंथना, माटी को पांवो से रौंदकर मंथना.
कुँभार की : कुम्भकार की, मिटटी के बर्तन बनाने वाले की.
घणी : अधिकता से, बहुत.
सहै सिरि लात : सर पर लात की मार को सहन करना, कष्ट झेलना.
इहि औसरि : इस अवसर पर, अबकी बार.
चेत्या नहीं : यदि सचेत नहीं होते हो, ज्ञान को प्राप्त नहीं करते हो.
चूका : चूकना (यदि चूक जाते हो तो)
अबकी घात : अबकी बार तुमको घात/प्रहार सहन करना पड़ेगा.
मलणि : मलना, मंथना, माटी को पांवो से रौंदकर मंथना.
कुँभार की : कुम्भकार की, मिटटी के बर्तन बनाने वाले की.
घणी : अधिकता से, बहुत.
सहै सिरि लात : सर पर लात की मार को सहन करना, कष्ट झेलना.
इहि औसरि : इस अवसर पर, अबकी बार.
चेत्या नहीं : यदि सचेत नहीं होते हो, ज्ञान को प्राप्त नहीं करते हो.
चूका : चूकना (यदि चूक जाते हो तो)
अबकी घात : अबकी बार तुमको घात/प्रहार सहन करना पड़ेगा.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब का कथन है की मानव जीवन की स्थिति तो कुम्भकार की मिटटी के समान दयनीय है जो अपने मस्तक पर कुम्भकार की लातों के अनवरत प्रहारों को सहन करती है. कुम्भकार मिटटी के बर्तन बनाने से पूर्व मिटटी को अपने पांवों के तले रौंदता है जिससे मिटटी को मुलायम किया जा सके. यह मानव जीवन ही एक अवसर है, इस अवसर के चूकने के उपरांत अत्यंत ही कष्ट सहन करने
होंगे. समझें तो माया ताउम्र व्यक्ति को लातों के अलाहिदा देती भी क्या है, जगत में मोह रखना ही संताप है। धीरे धीरे इससे अपने मन को विमुख करना, ईश्वर में ध्यान लगाना ही सच्चा सुख है। जब एक बार राम रसायन का कुछ भाग प्राप्त हो जाता है तो साधक स्वतः ही अधिक की चाह में भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने लगता है।
होंगे. समझें तो माया ताउम्र व्यक्ति को लातों के अलाहिदा देती भी क्या है, जगत में मोह रखना ही संताप है। धीरे धीरे इससे अपने मन को विमुख करना, ईश्वर में ध्यान लगाना ही सच्चा सुख है। जब एक बार राम रसायन का कुछ भाग प्राप्त हो जाता है तो साधक स्वतः ही अधिक की चाह में भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने लगता है।