जहाँ न चींटी चढ़ि सकै राइ न ठहराइ मीनिंग
जहाँ न चींटी चढ़ि सकै, राइ न ठहराइ।
मन पवन का गमि नहीं, तहाँ पहूँचे जाइ॥
Jaha Na Chinti Chadhi Sake, Raai Na Thahraai,
Man Pawan Ka Gami Nahi, Taha Panhuche Jaai.
जहाँ न चींटी चढ़ि सकै : जिस स्थान पर चींटी जैसा सूक्ष्म जीव भी ना चढ़ सके.
राइ न ठहराइ : जहाँ राई भी ठहर नहीं सकती है.
मन पवन का गमि नहीं : जहाँ पर मन और पवन की गति भी नहीं पंहुच सकती है.
गमि : गमन करना, पंहुचना.
तहाँ पहूँचे जाइ : जहाँ जाकर पंहुच जाता है.
भक्ति का मार्ग अत्यंत ही विकट है, जहाँ पर ना तो चींटी चढ़ सकती है और नाहीं राई ठहर सकती है. मन और पवन की गति भी जहाँ पर पंहुच नहीं सकती है. ऐसे स्थान पर कबीर साहेब जाकर पंहुच गए है . भाव है की भक्ति की मंजिल अत्यंत ही विकट और दुर्लभ है जहाँ पर कोई आसानी से नहीं पंहुच सकता है. ऐसे स्थान पर कबीर साहेब साधना से पंहुच गए हैं. साधना का यह मार्ग अत्यंत ही विकट है जहाँ चींटी भी, सूक्ष्म साधना से पंहुच पाना संभव नहीं है, ऐसे स्थान पर साहेब पंहुचे हैं.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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