जन कबीर का सिषर घर बाट सलैली सैल मीनिंग Jan Kabir Ka Shikhar Ghar Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Bhavarth/Hindi Arth)
जन कबीर का सिषर घर, बाट सलैली सैल।पाव न टिकै पपीलका, लोगनि लादे बैल॥
Jan Kabir Ka Sikhar Ghar, Baat Salaili Sail.
Paav Na Tike Papilka, Logani Laade Bail.
जन : भक्त, साधक.
सिषर घर : शिखर, ब्रह्मरंध्र, शून्य शिखर.
बाट : राह, रस्ता.
सलैली : शलैली.
सैल : पहाड़ी.
पाव न टिकै पपीलका : चीटी के भी पांव नहीं टिक पाते हैं.
पपीलका : चींटी.
लोगनि लादे बैल : लोग तो, सामान्य जन तो बैल की भाति पाप कर्म को लादे हुए हैं.
सिषर घर : शिखर, ब्रह्मरंध्र, शून्य शिखर.
बाट : राह, रस्ता.
सलैली : शलैली.
सैल : पहाड़ी.
पाव न टिकै पपीलका : चीटी के भी पांव नहीं टिक पाते हैं.
पपीलका : चींटी.
लोगनि लादे बैल : लोग तो, सामान्य जन तो बैल की भाति पाप कर्म को लादे हुए हैं.
साधक का निवास ब्रह्म रंध्र, शून्य शिखर पर है लेकिन वहां पर जाने का रास्ता अत्यंत ही पथरीला और उबड खाबड़ ही, विकट है. ऐसे राह पर जो अत्यंत ही सूक्ष्म साधना करने वाले, जैसे की चींटी होती है उसके भी पाँव फिसल जाते हैं ऐसे में बैल की भाँती पाप कर्मों को लादकर चलने वाले व्यक्ति कैसे उस पर चढ़ सकते हैं. सामान्य जन की वहां पर क्या दशा हो सकती है. कबीर साहेब की वाणी है की भक्ति मार्ग अत्यंत ही विकट है जहाँ पर बहुत ही सावधानी से चींटी की भाँती धीरे धीरे आगे बढ़ना होता है. आम जन को चाहिए की वह पाप कर्मों से विमुख हो जाए, अन्यथा भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ना संभव नहीं हो पाता है. प्रस्तुत साखी में रुप्कातिश्योक्ति अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग