नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो भजन
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
दो भर सूंड रही रे जळ बाहर,
कृष्ण कृष्ण चिल्लायो,
कालनेम कूदे जाकर,
फन फन नचायो,
कालनेम कूदे जाकर स्वामी,
फन फन नचायो,
गिरी गोवर्धन कर ऊपर धारयो,
इंद्र रो मान घटायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो।
खम्भ फाड़ हिरनाकुश मारयो,
नरसिंह रूप दिखायो,
अजामिल गज गणिका तारी,
द्रोपदी को चीर बढ़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
कुरुक्षेत्र में खांडो रै खडक्यो,
कौरव नाश करायो,
दुर्योधन रो मान घटायो,
मोहि भरोसा रे आयो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
चतुर सखी मिल कंकण बांध्यो,
रेशम तार पुवायो,
छुट्यो नहीं राधा रो कंकण,
गिरवर कैसे उठायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
योगी यारो ध्यान धरत हैं,
तो भी ध्यान नहीं आयो,
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
चरण कमल चित्त लायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज को फंद छुडायो। मोही सुन सुन अचरज आयो।
गज और ग्राह लड़े जल भीतर, लड़त लड़त गज हारयो।
जौ भर सूँड रही जल बाहर, तब हरी नाम उचारयो॥ 1||
शबरी का बेर सुदामा का तांदुल, रुच रुच भोग लगायों।
दुर्योधन का मेवा त्याग्या, साग विदुर घर खायो॥2||
पैठी पाताल काली नाग ने नाथ्यो, फन फन नृत्य करयो।
गिरि गौवर्धन कर पर धारयो, गिरधर नाम धरायों॥3||
असुर बकासुर ने थां मारयो, दावानल पान करायों।
खंभ फाड़ हिरणाकुश मारयों, भक्त प्रह्लाद बचायो॥4||
अजामिल गिद्ध गणिका ने तारी, द्रोपदी को चीर बढ़ायो।
पय पान कर पूतना मारी, कुब्जा रो रूप संवारियों॥ 5||
महा भारत का रणखेता मे। बेल पाण्डव की आयो।
द्रोणसूत अश्वथामा रा बाण सूं, उत्तरा को गर्भ बचायो॥ 6||
सब सखियाँ मिल नेह को बंधन रेशम गाँठ बंधायों।
छुटयो नाही राधा को संग, पुरबलो प्रेम निभायो॥ 7||
योगी ज्यांकों ध्यान धरत है, प्रेम के वश भजी आयो।
सूर कहे प्रभु तुम्हरे मीलन को, मोही भरोसों आयो॥ 8||
दो भर सूंड रही रे जळ बाहर,
कृष्ण कृष्ण चिल्लायो,
कालनेम कूदे जाकर,
फन फन नचायो,
कालनेम कूदे जाकर स्वामी,
फन फन नचायो,
गिरी गोवर्धन कर ऊपर धारयो,
इंद्र रो मान घटायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो।
खम्भ फाड़ हिरनाकुश मारयो,
नरसिंह रूप दिखायो,
अजामिल गज गणिका तारी,
द्रोपदी को चीर बढ़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
कुरुक्षेत्र में खांडो रै खडक्यो,
कौरव नाश करायो,
दुर्योधन रो मान घटायो,
मोहि भरोसा रे आयो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
चतुर सखी मिल कंकण बांध्यो,
रेशम तार पुवायो,
छुट्यो नहीं राधा रो कंकण,
गिरवर कैसे उठायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
योगी यारो ध्यान धरत हैं,
तो भी ध्यान नहीं आयो,
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
चरण कमल चित्त लायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज रो फन्द छुड़ायो,
नाथ कैसे गज को फंद छुडायो। मोही सुन सुन अचरज आयो।
गज और ग्राह लड़े जल भीतर, लड़त लड़त गज हारयो।
जौ भर सूँड रही जल बाहर, तब हरी नाम उचारयो॥ 1||
शबरी का बेर सुदामा का तांदुल, रुच रुच भोग लगायों।
दुर्योधन का मेवा त्याग्या, साग विदुर घर खायो॥2||
पैठी पाताल काली नाग ने नाथ्यो, फन फन नृत्य करयो।
गिरि गौवर्धन कर पर धारयो, गिरधर नाम धरायों॥3||
असुर बकासुर ने थां मारयो, दावानल पान करायों।
खंभ फाड़ हिरणाकुश मारयों, भक्त प्रह्लाद बचायो॥4||
अजामिल गिद्ध गणिका ने तारी, द्रोपदी को चीर बढ़ायो।
पय पान कर पूतना मारी, कुब्जा रो रूप संवारियों॥ 5||
महा भारत का रणखेता मे। बेल पाण्डव की आयो।
द्रोणसूत अश्वथामा रा बाण सूं, उत्तरा को गर्भ बचायो॥ 6||
सब सखियाँ मिल नेह को बंधन रेशम गाँठ बंधायों।
छुटयो नाही राधा को संग, पुरबलो प्रेम निभायो॥ 7||
योगी ज्यांकों ध्यान धरत है, प्रेम के वश भजी आयो।
सूर कहे प्रभु तुम्हरे मीलन को, मोही भरोसों आयो॥ 8||
श्रेणी : राजस्थानी भजन
नाथ कैसे गज से फंद छुडायो ( सतसंग भजन ) गायक राजकुमार स्वामी जी ।। Superhit Bhajan
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
गज और ग्राह लड़त जल भीतर, लड़त-लड़त गज हार्यो।
जौ भर सूंड ही जल ऊपर तब हरिनाम पुकार्यो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
शबरी के बेर सुदामा के तन्दुल रुचि-रुचि-भोग लगायो।
दुर्योधन की मेवा त्यागी साग विदुर घर खायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
पैठ पाताल काली नाग नाथ्यो, फन पर नृत्य करायो।
गिरि गोवर्द्धन कर पर धार्यो नन्द का लाल कहायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
असुर बकासुर मार्यो दावानल पान करायो।
खम्भ फाड़ हिरनाकुश मार्यो नरसिंह नाम धरायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
अजामिल गज गणिका तारी द्रोपदी चीर बढ़ायो।
पय पान करत पूतना मारी कुब्जा रूप बनायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
कौर व पाण्डव युद्ध रचायो कौरव मार हटायो।
दुर्योधन का मन घटायो मोहि भरोसा आयो ।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
सब सखियां मिल बन्धन बान्धियो रेशम गांठ बंधायो।
छूटे नाहिं राधा का संग, कैसे गोवर्धन उठायो ।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
योगी जाको ध्यान धरत हैं ध्यान से भजि आयो।
सूर श्याम तुम्हरे मिलन को यशुदा धेनु चरायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
गज और ग्राह लड़त जल भीतर, लड़त-लड़त गज हार्यो।
जौ भर सूंड ही जल ऊपर तब हरिनाम पुकार्यो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
शबरी के बेर सुदामा के तन्दुल रुचि-रुचि-भोग लगायो।
दुर्योधन की मेवा त्यागी साग विदुर घर खायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
पैठ पाताल काली नाग नाथ्यो, फन पर नृत्य करायो।
गिरि गोवर्द्धन कर पर धार्यो नन्द का लाल कहायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
असुर बकासुर मार्यो दावानल पान करायो।
खम्भ फाड़ हिरनाकुश मार्यो नरसिंह नाम धरायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
अजामिल गज गणिका तारी द्रोपदी चीर बढ़ायो।
पय पान करत पूतना मारी कुब्जा रूप बनायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
कौर व पाण्डव युद्ध रचायो कौरव मार हटायो।
दुर्योधन का मन घटायो मोहि भरोसा आयो ।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
सब सखियां मिल बन्धन बान्धियो रेशम गांठ बंधायो।
छूटे नाहिं राधा का संग, कैसे गोवर्धन उठायो ।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
योगी जाको ध्यान धरत हैं ध्यान से भजि आयो।
सूर श्याम तुम्हरे मिलन को यशुदा धेनु चरायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
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Author - Saroj Jangir
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