नारि नसावै तीनि सुख हिंदी मीनिंग Naari Nasave Tini Sukh Meaning Kabir Dohe

नारि नसावै तीनि सुख हिंदी मीनिंग Naari Nasave Tini Sukh Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit/Hindi Bhavarth/Hindi Me

नारि नसावै तीनि सुख, जा नर पासैं होइ।
भगति मुकति निज ग्यान मैं, पैसि न सकई कोइ॥
Nari Nasave Teeni Sukh, Ja Nar Pase Hoi,
Bhagati Mukati Nij Gyan Men, Paisi Na Sakai Koi.

नारि नसावै तीनि सुख :नारी के प्रति आसक्ति तीन सुखों से व्यक्ति को वंचित कर देती है.
जा नर पासैं होइ : जो भी नर नारी से आसक्ति रखता है.
भगति मुकति निज ग्यान मैं : भक्ति, मुक्ति और ज्ञान.
पैसि न सकई कोइ : कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है, सफल नहीं हो सकता है.
नारि : कामुक कामिनी.
नसावै : दूर करती है.
तीनि सुख : तीन प्रकार के सुखों से.
तीनि : तीनों.
जा : जो.
नर : व्यक्ति.
पासैं : नजदीक होता है, पास होता है.
होइ : होता है.
भगति मुकति : भक्ति और मुक्ति.
निज ग्यान : ज्ञान, आत्मज्ञान.
मैं : में.
पैसि : प्रवेश.
सकई कोइ : कोई भी नहीं कर सकता है / पेश नहीं पा सकता है.
कबीर साहेब की वाणी है की भक्ति मार्ग में कामिनी नारी बाधक है. कामिनी नारी की आसक्ति के कारण भक्ति मुक्ति और ज्ञान, तीनों से ही वंचित होना पड़ता है क्योंकि नारी की आसक्ति से व्यक्ति विषय विकारों से मुक्त नहीं हो पाता है. अतः साधक को भक्ति मार्ग में बढ़ने के लये नारी और कामुक भावना से मुक्त होना चाहिए. नारी से आसक्ति हो जाने पर व्यक्ति की चेतना समाप्त हो जाती है और उसे ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता है. वह जीवन भर माया के संग्रह में ही लगा रहता है. आखिर एक दिन यह अमूल्य जीवन समाप्त हो जाना है, जीवन का उद्देश्य है की हम माया के छद्म आवरण को समझ कर हृदय से केवल भक्ति में ध्यान लगाएं. वह भले ही विषय विकार हो या नारी के प्रति आसक्ति, ये सभी भक्ति मार्ग में बाधक हैं जो ज्ञान, भक्ति और मुक्ति से जीवात्मा को वंचित करती हैं. 
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