नारी सेती नेह बुधि बबेक सबही हरै मीनिंग

नारी सेती नेह बुधि बबेक सबही हरै मीनिंग

नारी सेती नेह, बुधि बबेक सबही हरै।
काई गमावै देह, कारिज कोई नाँ सरै॥
Naari Seti Neh, Budhi Babek Sabahi Hare,
Kaai Gamave Deh, Karij Koi Na Sare.

नारी सेती नेह : नारी से नेह/स्नेह करने वाले व्यक्ति की बुद्धि और विवेक सभी समाप्त हो जाता है.
बुधि बबेक सबही हरै : बुद्धि और विवेक सब कुछ समाप्त हो जाता है.
काई गमावै देह : शरीर को तुम क्यों नष्ट करते हो.
कारिज कोई नाँ सरै : कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है.
नारी : कामिनी नारी जो माया का ही एक रूप है.
सेती :से (नारी से )
नेह : प्रेम, स्नेह, लगाव.
बुधि बबेक : बुद्धि और विवेक.
सबही : सब कुछ, समस्त.
हरै : हर लेती है, समाप्त कर देती है.
काई : काहे को, क्यों (किस प्रयोजन से )
गमावै : खो देता है, नष्ट कर देता है.
देह : मानव शरीर, तन.
कारिज : कार्य, प्रयोजन.
कोई नाँ : कोई भी सरै॥
कबीर साहेब की वाणी है की नारी से नेह, आसक्ति मत लगाओ, नारी से हेत कोई सुखद परिणाम नहीं दे सकता है. यह विनाश का ही मार्ग है. नारी से आसक्ति होने पर बुद्धि और विवेक सब समाप्त हो जाता है, कोई कार्य भी सिद्ध नहीं होता है, इसलिए तुम क्यों नारी के प्रति आसक्ति लगाकर अपने देह की शक्तियों को समाप्त कर रहे हो. भाव है की कबीर साहेब ने नारी को माया का ही एक रूप माना है जो जीवात्मा को भक्ति मार्ग से विमुख करती है. अतः जीवात्मा को चाहिए की वह निष्काम भाव से भक्ति करे और हरी चरणों में अपना ध्यान लगाए.
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