निशुम्भ शुम्भ गर्जनी विन्देश्वरी स्त्रोतम अर्थ

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी विन्देश्वरी स्त्रोतम

 
Vindeshwari Stotram Navratri Bhajan

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी,
प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।
बनेरणे प्रकाशिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

त्रिशूल मुण्ड धारिणी,
धरा विघात हारिणी ।
गृहे-गृहे निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

दरिद्र दुःख हारिणी,
सदा विभूति कारिणी ।
वियोग शोक हारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

लसत्सुलोल लोचनं,
लतासनं वरप्रदं ।
कपाल-शूल धारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कराब्जदानदाधरां,
शिवाशिवां प्रदायिनी ।
वरा-वराननां शुभां,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कपीन्द्न जामिनीप्रदां,
त्रिधा स्वरूप धारिणी
जले-थले निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

विशिष्ट शिष्ट कारिणी,
विशाल रूप धारिणी
महोदरे विलासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

पुंरदरादि सेवितां,
पुरादिवंशखण्डितम्‌ ।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं,
भजामि विन्ध्यवासिनीं ॥

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र का हिंदी अर्थ

माँ विन्ध्यवासिनी (देवी दुर्गा का एक रूप) की स्तुति है, जो विन्ध्याचल पर्वत पर विराजमान हैं। यहाँ प्रत्येक पंक्ति का सरल हिंदी में अर्थ दिया गया है, और जहाँ संभव हो, वेब संदर्भ भी जोड़े गए हैं। भक्त के भावों को शामिल किए बिना, केवल देवी के गुणों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जैसा कि आपके पसंदीदा जवाब की शैली में अनुरोध किया गया है।

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी निशुम्भ और शुम्भ जैसे असुरों का नाश करने वाली हैं, जिनकी गर्जना भयंकर है। वे प्रचंड और मुंड जैसे दैत्यों का वध करने वाली हैं।
निशुम्भ और शुम्भ देवी दुर्गा द्वारा मारे गए असुर हैं, जैसा कि देवीमाहात्म्यम् (दुर्गा सप्तशती) में वर्णित है। देवीमाहात्म्यम्

बनरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी युद्ध के मैदान में प्रकाशमान हैं और उनकी महिमा युद्ध में चमकती है। वे विन्ध्याचल पर्वत पर निवास करती हैं और उनकी स्तुति की जाती है।

त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी त्रिशूल और असुरों के मुंड (सिर) धारण करने वाली हैं। वे पृथ्वी पर विघ्नों और बाधाओं को नष्ट करने वाली हैं। त्रिशूल देवी दुर्गा का प्रमुख शस्त्र है, जैसा कि दुर्गा सप्तशती में वर्णित है।

गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी हर घर में निवास करती हैं और उनकी सर्वत्र उपस्थिति है। उनकी स्तुति हर जगह की जाती है।

दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी दरिद्रता और दुखों को दूर करने वाली हैं। वे सदा समृद्धि और वैभव प्रदान करती हैं। देवी का यह गुण ललिता सहस्रनाम में भी वर्णित है, जहाँ वे समृद्धि दायिनी हैं। ललिता सहस्रनाम

वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी वियोग (बिछोह) और शोक को नष्ट करने वाली हैं। उनकी स्तुति सदा की जाती है। यह गुण देवी की करुणा को दर्शाता है, जैसा कि देवी भागवत पुराण में वर्णित है।

लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी के नेत्र चमकते और आकर्षक हैं। वे कमल पर विराजमान हैं और मनवांछित वरदान देने वाली हैं। कमल पर विराजना लक्ष्मी और सरस्वती जैसे देवी रूपों से जोड़ा जाता है, जो विन्ध्यवासिनी में समाहित हैं। देवी के रूप

कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी कपाल और त्रिशूल धारण करने वाली हैं। उनकी स्तुति उनके भयंकर और रक्षक रूप के लिए की जाती है। यह काली और चंडिका जैसे रूपों को दर्शाता है। दुर्गा सप्तशती

कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी अपने कमल जैसे हाथों से दान देती हैं। वे कल्याणकारी और अकल्याणकारी दोनों रूपों को प्रदान करने वाली हैं। यह देवी की द्वैत शक्ति (सृजन और संहार) को दर्शाता है। देवी की शक्ति

वरा-वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनी।

अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी का मुख सुंदर और शुभ है, और वे वर देने वाली हैं। उनकी स्तुति सदा की जाती है। यह उनकी सौम्यता और कृपा को दर्शाता है। विन्ध्यवासिनी मंदिर

कपीन्द्न जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी हनुमान जैसे भक्तों को शक्ति देती हैं और तीन रूपों (सृष्टि, पालन, संहार) को धारण करने वाली हैं। त्रिधा स्वरूप दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूपों को संदर्भित करता है। देवी के त्रिगुण

जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी जल और थल में सर्वत्र निवास करती हैं। उनकी स्तुति उनकी सर्वव्यापकता के लिए की जाती है। यह उनकी विश्वव्यापी प्रकृति को दर्शाता है। देवी भागवत पुराण

विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी उत्तम और शिष्ट कार्य करने वाली हैं। उनका रूप विशाल और भव्य है। यह उनकी महानता को दर्शाता है, जैसा कि दुर्गा सप्तशती में वर्णित है।

महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी विशाल उदर (सृष्टि की रचयिता) में विलास करने वाली हैं। उनकी स्तुति सदा की जाती है। यह विश्वमाता के रूप को दर्शाता है। विन्ध्यवासिनी की महिमा

पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम्।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी इंद्र आदि देवताओं द्वारा सेवित हैं और असुरों के वंश को नष्ट करने वाली हैं। यह देवीमाहात्म्यम् में वर्णित असुर-संहार को दर्शाता है। देवीमाहात्म्यम्

विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं।
अर्थ: माँ विन्ध्यवासिनी शुद्ध बुद्धि प्रदान करने वाली हैं। उनकी स्तुति उनकी ज्ञानदायिनी शक्ति के लिए की जाती है। यह सरस्वती के रूप को दर्शाता है। ललिता सहस्रनाम

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र का महत्त्व और लाभ

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र माँ विन्ध्येश्वरी की स्तुति में रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है। इसका नियमित पाठ करने से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। विशेषकर नवरात्रि के समय इसका पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है।

इस स्तोत्र में माँ विन्ध्येश्वरी की महिमा का वर्णन किया गया है, जैसे कि वे शुम्भ-निशुम्भ का संहार करने वाली, चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली, त्रिशूल धारण करने वाली, दरिद्रता और दुःख को हरने वाली हैं। उनकी आराधना से जीवन में सुख, समृद्धि, वैभव, कीर्ति और यश की प्राप्ति होती है।

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल स्नानादि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर माँ की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर करना चाहिए। श्रद्धा और निष्ठा के साथ किया गया यह पाठ शीघ्र ही मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।
 
भजन श्रेणी : माता रानी भजन (Read More : Mata Rani Bhajan)



Ashwin Trivedi - Vindeshwari Stotram | Nishumbh Shumbh Garjani | Agam | Navratri Songs | Devi Bhajan
 

Vocals | Composition - Ashwin Trivedi
 
विन्ध्यवासिनी का स्वरूप उस अग्नि समान ऊर्जा का प्रतीक है, जो अंधकार को भस्म कर प्रकाश का मार्ग प्रशस्त करती है। वह केवल पर्वतों में वास करने वाली देवी नहीं, बल्कि चेतना के उस उच्च स्तर पर स्थित शक्ति है जहाँ जीवन की हर कठिनाई संकल्प में बदल जाती है। जब अन्याय, भय या मोह मानव मन को ग्रसने लगते हैं, तब वही शुम्भ-निशुम्भ गर्जनी रूप प्रकट होता है। माँ का तेज शस्त्र नहीं, सत्य की ज्वाला बनकर मन के भीतर प्रकट होता है। वह हर बार हमें यह अनुभूति कराती है कि जीवन में किसी भी अंधकार से बड़ा प्रकाश छिपा होता है, बस उसे बुलाने का साहस चाहिए। विन्ध्य की भांति अडिग, पर्वत के समान धैर्यवान और सागर जितना विस्तृत यह स्वरूप हर साधक को भीतर से सामर्थ्य देता है। 
 
यह स्तुति केवल शब्दों का उच्चारण नहीं है, यह तो उस आद्यशक्ति के सम्मुख खड़े होकर उनकी विराटता और करुणा दोनों को स्वीकार करने का भाव है। यह हमें सिखाती है कि शक्ति के दो स्वरूप होते हैं—एक जो अन्याय का नाश करता है और दूसरा जो कल्याण का सृजन करता है। जब संसार में निशुम्भ और शुम्भ जैसे अहंकार और राक्षसी प्रवृत्तियाँ सिर उठाती हैं, तो यह माँ ही अपनी प्रचण्ड गर्जना और मुण्डों को खंडित करने वाली शक्ति से धर्म की रक्षा के लिए रणभूमि में प्रकट होती हैं। उनका त्रिशूल और मुण्ड धारण करना यह दर्शाता है कि वे न केवल पाप का नाश करती हैं, बल्कि पृथ्वी पर होने वाले सभी विघ्नों को भी हर लेती हैं। यह एहसास हमें जीवन के हर संघर्ष में यह भरोसा देता है कि हमारे साथ वह शक्ति खड़ी है जो हर विपत्ति से हमें बाहर निकाल सकती है। 
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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