दिलबर की अदा निराली है कृष्णा भजन

दिलबर की अदा निराली है कृष्णा भजन

 
दिलबर की अदा निराली है कृष्णा भजन

दिलबर की अदा निराली है,
दिल छीन लिया उसने मेरा,
प्यारे की सूरत प्यारी है,
दिल छीन लिया उसने मेरा।

दिन रात तड़पता रहता हूँ,
घनश्याम तुम्हारी यादो में,
हँस कर सब छीन लिया,
मेरा जादू है तेरी बातो में,
कंधे पे कामर काली है,
दिल छीन लिया उसने मेरा,
दिलबर की अदा निराली है,
दिल छीन लिया उसने मेरा,
प्यारे की सूरत प्यारी है,
दिल छीन लिया उसने मेरा।

मृग जैसे मोटे नैनों पे,
बलिहारी जाऊँ मैं प्यारे,
वा छैल छबीले रसियां के,
हैं केश घने कारे कारे,
अधरों पे मुरली प्यारी है,
दिल छीन लिया उसने मेरा,
दिलबर की अदा निराली है,
दिल छीन लिया उसने मेरा,
प्यारे की सूरत प्यारी है,
दिल छीन लिया उसने मेरा।

हे सर्वेश्वर हे कृष्ण पिया,
मैं तेरा हूँ तू मेरा है,
आकर के बाँह पकड़ मेरी,
माया ने मुझको घेरा है,
तुझसे जन्मों की यारी है,
दिल छीन लिया उसने मेरा,
दिलबर की अदा निराली है,
दिल छीन लिया उसने मेरा,
प्यारे की सूरत प्यारी है,
दिल छीन लिया उसने मेरा।

भजन श्रेणी : कृष्ण भजन (Krishna Bhajan)

Dilbar Ki Ada Nirali Hai - दिलबर की अदा निराली है - Devkinandan Thanur Ji - Saawariya

 
➤Album :- Hamaro Man Radha Le Gai Re
➤Song :- Dilbar Ki Ada Nirali Hai
➤Singer :- Devki Nandan Thakur Ji
➤Music :- Bijendara Singh Chauhan
➤Writer :- Devki Nandan Thakur Ji
➤ Label :- Vianet Media

 यह कोई सांसारिक प्रेम नहीं, बल्कि आत्मा और श्याम के बीच का शाश्वत संबंध है। मन यहाँ साधना नहीं करता, बस उस मुस्कान, उस आँखों की गहराई में खो जाता है जहाँ हर तड़प भी मिठास बन जाती है। कृष्ण का आकर्षण इस गीत में केवल रूप-सौंदर्य नहीं, बल्कि उस दैवी खेल का प्रतीक है जिसमें प्रेम लेने नहीं, खो जाने की कला है। जब साधक कहता है—“दिल छीन लिया उसने मेरा,” तो यह आत्मसमर्पण का क्षण है, जहाँ व्यक्ति अपने अस्तित्व को उस सुंदरता में विलीन होने देता है जो बाहरी नहीं, भीतर के चिरप्रेम से जुड़ी है।

कृष्ण की लीलाओं का यह भाव मन को रास के केंद्र में ले जाता है। बालकृष्ण की मुरली से लेकर मथुरा-वृंदावन के उस मोहक रूप तक—हर अंदाज में एक ही संदेश है कि दिव्यता आकर्षण से नहीं, अपनत्व से जन्म लेती है। उनकी आँखें मृगनयनी नहीं, बल्कि ध्यान की गहराई जैसी हैं—जहाँ देखने वाला स्वयं को भूल जाता है। यही वह प्रेम है जो भक्ति को तृप्त नहीं, उन्मत्त बनाता है—जहाँ समय थम जाता है और बस कृष्ण का नाम हृदय में गूंजता है। इस अवस्था में भक्त कहता नहीं, बस जीता है—क्योंकि दिल सच में उस श्याम ने छीन लिया होता है। 

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