ग्यानी तो नींडर भया माँने नाँही मीनिंग
ग्यानी तो नींडर भया, माँने नाँही संक।
इंद्री केरे बसि पड़ा, भूंचै विषै निसंक॥
Gyani To Needar Bhaya, Mane Nahi Sank,
Indri Kere Basi Pada, Bhunche Vishe Nisank
ग्यानी : ज्ञानी.तो नींडर भया : वह निडर हो गया है.माँने नाँही संक : मानता नहीं है.इंद्री : इन्द्रियों जनित विषय विकार.केरे : के (इन्द्रियों के)बसि पड़ा : इन्द्रियों के वश में पड़ा रहता है.भूंचै विषै निसंक : विषय विकारों का भोग करता है.बसि पड़ा : के अधीन रहना.भूंचै : भोग करना.विषै : विषय विकार.निसंक : शंका रहित हो जाना. ज्ञानी व्यक्ति निडर हो गया है, उसे अपने ज्ञान पर अहम आ गया है. वह निडर होकर शंका का त्याग करके विषय विकारों का भोग करने में लगा है. भाव है की ज्ञानी को भी आवश्यक है की वह विषय विकारों का त्याग कर दे. यदि वह ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त भी विषय विकारों का भोग करने में लगा रहता है तो वह मुक्ति को प्राप्त नहीं कर पाता है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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