माला
फेरत जुग भया पाया न मनका फेर मीनिंग
माला फेरत जुग भया, पाया न मनका फेर।
करका मन का छाँड़ि दे, मन का मनका फेर॥
Mala Ferat Jug Bhaya, Paaya Na Man Ka Pher,
kar Ka man Ka Chhadi De, Man Ka Manka Pher.
माला फेरत जुग भया : माला को फेरते हुए काफी समय व्यतीत हो गया है.पाया न मन का फेर : मन की चंचल वृति को स्थिर नहीं कर पाए.कर का मन का छाँड़ि दे : हाथों का मनका छोड़ कर.मन का मनका फेर : मन के मनके को फिराओ.माला : हाथों में फिराए जाने वाली माला,फेरत : फेरते हुए.जुग भया :युग बीत गया है.पाया न : प्राप्त नहीं कर पाए हो.मन का फेर : मन की चंचलता को स्थिर नहीं कर पाए हो.कर का : हाथों का.मनका छाँड़ि दे : छोड़ दे.मन का मनका फेर : मन का विश्लेषन करो. कबीर
साहेब की वाणी है की व्यक्ति हाथों में माला को पकड़ कर उसे फेरता रहता है
और मन ही मन यह संतोष करता है की वह भक्ति कर रहा है. लेकिन यह वास्तविक भक्ति
नहीं है. माला को फेरते हुए युगों बीत गए हैं लेकिन मन का भ्रम और शंशय
दूर नहीं हुआ है. हाथों की माला को फेरते हुए तो युग बीत गए हैं, लेकिन मन
का फेर नहीं हुआ है. मन का विश्लेष्ण नहीं हुआ है. अतः कबीर साहेब कहते हैं की हाथों की माला का त्याग कर दो, हृदय की माला को फिराओं.
भाव है की स्वंय का मूल्यांकन करना है की हम इस मार्ग पर बढ़ रहे हैं. क्या हमने अपने इस जीवन का महत्त्व स्वीकार किया है, जीवन के उद्देश्य को समझा है. सद्मार्ग
पर चलकर हृदय से इश्वर के नाम का सुमिरन ही वास्तविक भक्ति है. धार्मिक
आडम्बर और कर्मकांड से कुछ भी लाभ नहीं मिलने वाला है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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