जप तप दीसै थोथरा तीरथ ब्रत बेसास मीनिंग Jap Tap Dise Thothara Meaning Kabir Dohe

जप तप दीसै थोथरा तीरथ ब्रत बेसास मीनिंग Jap Tap Dise Thothara Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

जप तप दीसै थोथरा, तीरथ ब्रत बेसास।
सूवै सैबल सेविया, यों जग चल्या निरास.
Jap Tap Deese Thothra, Teerath Vrat Besas,
Suve Saibal Seviya, Yo Jag Chalya Niras.

जप तप दीसै थोथरा : जप और तप थोथे हैं, निःसार हैं.
तीरथ ब्रत बेसास : तीर्थ और व्रत आदि सारहीन हैं.
सूवै सैबल सेविया : जैसे तोता सेमल के फूल के पास बैठता है.
यों जग चल्या निरास : ऐसे जग निरास होकर चल पड़े हैं.
जप तप : पूजा अर्चना के तरीके.
दीसै: दिखाई देते हैं,
थोथरा : सारहीन, बेकार., थोथे-खाली,
तीरथ ब्रत बेसास।
सूवै : तोता.
सैबल : सेमल के फूल
सेविया: पास रहता है.
यों : ऐसे ही.
जग चल्या : जगत चला जाता है.
निरास : निरास होकर.

कबीर साहेब की वाणी है की यह जगत में जो लोग जप तप करते हैं, पूजा पाठ करते हैं वह सारहीन होता है. जैसे सुआ सेमल के फूल के पास में इस आशा से बैठा रहता है की इसके फल आयेंगे और वह उन फूलों को प्राप्त करेगा, जबकि यह उसकी एक कल्पना और व्यर्थ की आशा ही होती है. तोते का उदाहरण देकर साहेब समझाते हैं की यह संसार भी इसी तोते के समान है. यह व्यर्थ में पूजा पाठ, वृत्त जप तप करता है लेकिन इससे उसको कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाता है.'
 
उल्लेखनीय है की तोता सेमल के फूल के पास इसी आशा में बैठा रहता है की सेमल का फूल खिलेगा और इसमें से फल प्राप्त होगा लेकिन अंत में उसमें से केवल रुई ही निकलती है. ऐसे ही साधक जो मूर्ति पूजा में रत रहते हैं, कर्मकांड में लगे रहते हैं वे तोते की तरह से निराश ही होते हैं.
 
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