तीरथ तों सब बेलड़ी सब जग मेल्या छाइ मीनिंग कबीर के दोहे

तीरथ तों सब बेलड़ी सब जग मेल्या छाइ मीनिंग Tirath To Sab Beladi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

तीरथ तों सब बेलड़ी, सब जग मेल्या छाइ।
कबीर मूल निकंदिया, कोण हलाहल खाइ॥
Teerath Te Sab Beladi, Sab Jag Melya Chhai,
Kabir Mool Nikandiya, Koun Halaahal Khaai.

तीरथ तों सब बेलड़ी : सभी तीर्थ बेल के समान हैं.
सब जग मेल्या छाइ : सम्पूर्ण जगत में इसने छाया कर रखी है.
कबीर मूल निकंदिया : कबीर साहेब ने इसे जड़ से समाप्त कर दिया है.
कोण हलाहल खाइ : विष को कौन खाएं.
तीरथ : तीर्थ आदि.
तों : तो.
सब बेलड़ी : सब बेल हैं (विष की बेल)
सब जग : समस्त जगत को.
मेल्या छाइ : आच्छादित कर रखा है.
मूल : जड़,
निकंदिया : समूल नष्ट कर दिया है.
कोण : कौन.
हलाहल खाइ : कौन जहर खाता है.

तीर्थ आदि सभी विषय विकारों की बेल की तरह से हैं. विष की इस बेल ने सम्पूर्ण जगत में अपनी छाया कर रखी है, चारों तरफ छाई हुई है.कबीर साहेब ने इसे समूल नष्ट कर दिया है. भला कौन इसके विष के फल को ग्रहण करे. धार्मिक कर्मकांड और आडम्बर एक तरह से भ्रम है क्योंकि इससे इश्वर की भक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती है.
इश्वर की भक्ति के लिए सत्य के मार्ग पर चलकर हरी के नाम का सुमिरन करना होता है. इश्वर प्राप्ति के लिए तीर्थ करना, मूर्ति पूजा करना आदि सभी को कबीर साहेब ने पाखंड बताया है. साहेब ने इसके प्रभाव को विष के समान बताया है और कहा है की साधक ने इसे जद से ही उखाड़ फेंका है, ऐसे विष को कौन खाए.
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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