काँमी लज्जा ना करै मन मीनिंग Kaami Lajja Na Kare Meaning Kabir Ke Dohe

काँमी लज्जा ना करै मन मीनिंग Kaami Lajja Na Kare Meaning Kabir Ke Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

काँमी लज्जा ना करै, मन माँहें अहिलाद।
नीद न माँगैं साँथरा, भूष न माँगै स्वाद॥
Kami Lajja Na Kare, Man Mahi Ahilaad,
Neend Na Mange Santhra, Bhukh Na Mange Swad.

काँमी लज्जा ना करै : कामी व्यक्ति अपने कार्यों, कुकृत्य के लिए लज्जित नहीं होता है.
मन माँहें अहिलाद : वह मन ही मन प्रसन्न होता है.
नीद न माँगैं साँथरा : नींद बिस्तर नहीं मांगता है.
भूष न माँगै स्वाद : भूख स्वाद को नहीं देखती है.
काँमी : विषय विकारों और माया में पड़ा हुआ व्यक्ति.
लज्जा : शर्मिंदा होना, लज्जित होना, अफ़सोस करना.
ना करै :  नहीं करता है (कामी व्यक्ति लज्जित नहीं होता है)
मन : हृदय, चित्त.
माँहें : के अन्दर, हृदय में.
अहिलाद : आह्लाद, प्रसन्नता.
नीद : नींद/निंद्रा.
न माँगैं : मांगती नहीं है, (जरूरत नहीं होती है.)
साँथरा : साफ़ सुथरा बिस्तर.
भूष : भूख.
न माँगै स्वाद : स्वाद नहीं देखती है.

कबीर साहेब की वाणी है की कामी व्यक्ति, माया में पड़ा हुआ व्यक्ति अपने कार्यों के लिए कभी लज्जित नहीं होता है. उसे अपने कार्यों के लिए कोई पछतावा भी नहीं होता है
क्योंकि वह माया के भ्रम जाल में ही पड़ा रहता है और वह मन ही मन प्रसन्न होता है. जैसे भूखा व्यक्ति भोजन के स्वाद को नहीं देखता है, जिसे नींद आ रही हो वह बिस्तर
नहीं देखता है, ऐसे ही कामी व्यक्ति को भी केवल काम वासना ही दिखाई देती है और उसे कुछ भी स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता है.   
प्रस्तुत साखी का भाव है की व्यक्ति को माया के प्रभाव को समझना चाहिए. यदि वह माया के ही प्रभाव में रहता है तो उसे अवश्य ही आध्यात्मिक, भक्ति मार्ग का कुछ भी
दिखाई नहीं देता है. प्रस्तुत साखी में दृष्टांत अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
 
+

एक टिप्पणी भेजें