कबीर हरि का भाँवता दूरैं थैं दीसंत मीनिंग Kabir Hari Ka Bhawata Meaning

कबीर हरि का भाँवता दूरैं थैं दीसंत मीनिंग Kabir Hari Ka Bhawata Meaning, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

कबीर हरि का भाँवता, दूरैं थैं दीसंत।
तन षीणा मन उनमनाँ, जग रूठड़ा फिरंत॥
Kabir Hari Ka Bhavata, Door The Disant,
Tan Kheena Man Unmana, Jag Ruthada Firant.

कबीर हरि का भाँवता : इश्वर का प्रिय.
दूरैं थैं दीसंत : दूर से ही दिखाई दे जाता है.
तन षीणा मन उनमनाँ : उसका तन क्षीण होता है और मन उनमना होता है, संसार से विरक्त होता है.
जग रूठड़ा फिरंत : वह जग से रूठा हुआ प्रतीत होता है.
कबीर हरि का भाँवता : इश्वर का प्रिय. इश्वर को भाने वाला,
दूरैं : दूर.
थैं :से.
दीसंत : दिखाई देना, पहचान में आना.
तन षीणा : शरीर से क्षीण होता है.
मन उनमनाँ : मन जगत से विरक्त होता है.
जग : जगत/संसार.
रूठड़ा : विरक्त, रूठा हुआ, कोई सम्बन्ध नहीं रखना.
फिरंत : फिरता है.

कबीर साहेब संतजन की पहचान बताते हैं की संतजन और इश्वर भक्त दूर से ही दिखाई दे जाते हैं. उन्हें पहचानने में कोई मुश्किल नहीं होती है. उनका शरीर क्षीर्ण और मन संसार से उचट चूका होता है. जगत से वे एक भाँती से रूठे हुए होते हैं. मन का उनमना होने से भाव है की साधक का मन उर्ध्वमुखी होता है, जगत की बातों में वह ध्यान नहीं रखता है. वह जगत से निर्लिप्त रहता है. साधू अपने व्यवहार से अन्य लोगों से अलग ही रहता है, पहचाना जाता है.
 
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