संत न छाड़ै संतई जे कोटिक मिलै असंत मीनिंग Sant Na Chhade Santayi Meaning

संत न छाड़ै संतई जे कोटिक मिलै असंत मीनिंग Sant Na Chhade Santayi Meaning, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

संत न छाड़ै संतई, जे कोटिक मिलै असंत।
चंदन भुवंगा बैठिया, तउ सीतलता न तजंत॥
Sant Na Chade Satayi, Je Kotik Mile Asang,
Chandan Bhuvanga Baithiya, Tau Shetalta Na Tajant.

संत न छाड़ै संतई : संत जन संतप्रवृति को त्यागते नहीं हैं.
जे कोटिक मिलै असंत : जो करोड़ों असंत मिल जाएं.
चंदन भुवंगा बैठिया : चन्दन पर सांप बैठते हैं.
तउ सीतलता न तजंत : तब भी शीतलता का त्याग नहीं करते हैं.
संत : संतजन,
न छाड़ै :  छोड़ते नहीं हैं.
संतई : संत का स्वभाव.
जे : जो.
कोटिक : करोड़ों ही.
मिलै असंत : असंत, दुष्ट व्यक्ति मिल जाएं.
चंदन : चन्दन का वृक्ष.
भुवंगा : सांप.
बैठिया : बैठता है.
तउ : तब भी.
सीतलता : शीतलता.
न तजंत : तजते नहीं हैं, त्याग नहीं करते हैं.

भाव है की संतों का स्वभाव सदा ही नेक और उदार होता है. वे अपने स्वभाव पर कायम रहते हैं, भले ही वे करोड़ों असंत व्यक्तियों से मिलते हों. उदाहरण के स्वरुप चन्दन के वृक्ष पर अनेकों सांप लिपटे रहते हैं लेकिन फिर भी चन्दन का वृक्ष अपनी शीतलता और गुण का त्याग नहीं करते हैं. प्रस्तुत साखी में दृष्टांत अलंकार की व्यंजना हुई है.
भाव है की संत व्यक्ति अपने निर्मल स्वभाव के लिए जाने जाते हैं और अपने स्वभाव को करोड़ों असंत जन मिलने पर भी छोड़ते नहीं है.
 
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