कबीर कहता जात हौं चेतै नहीं गँवार मीनिंग
कबीर कहता जात हौं, चेतै नहीं गँवार।
बैरागी गिरही कहा, काँमी वार न पार॥
Kabira Kahata Jaat Ho, Chete Nahi Ganvaar,
Bairagi Girahi Kaha, Kami Vaar Naa Paar.
कबीर कहता जात हौं : कबीर साहेब तो कहते हैं, वाणी देते हैं.
चेतै नहीं गँवार : लेकिन गंवार चेतता नहीं है.
बैरागी गिरही कहा : वैरागी हो या गृहस्थ हो.
काँमी वार न पार : कामी को कोई आदि अंत नहीं होता है.
कहता : कहते हुए.
जात हौं : जाते हैं (कहते हुए जाते हैं, निरंतर कहते हैं)
चेतै नहीं : चेतन अवस्था को प्राप्त नहीं करता है.
गँवार : मुर्ख व्यक्ति.
बैरागी : वैराग्य धारण करने वाला.
गिरही : गृहस्थ.
काँमी वार न पार : कामी व्यक्ति का कोई महत्त्व नहीं है, उसका कोई ठिकाना नहीं है.
कबीर साहेब की वाणी है की इस संसार में जो गंवार हैं, अज्ञानी और मुर्ख हैं वे कहने पर भी ज्ञान की बात को समझते नहीं है. बैरागी हो या गृहस्थ, कामी का कोई आदि और अंत नहीं होता है. कामी का कोई आर और पार नहीं होता है. भाव है की कामी पुरुष की कोई मुक्ति संभव नहीं होती है. कामी पुरुष की जो विषय वासनाओं में सदा ही घिरा रहता है और भक्ति भाव में अपना ध्यान नहीं लगाता है वह अवश्य ही विनाश को प्राप्त होता है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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